शनिवार, 28 जुलाई 2012

किसी से

काश  ना करता मुहब्बत मैं किसी से .
जिन्दगी पूरी गुजर जाती ख़ुशी से .
आंसुओं का इस कदर दरिया न  बहता ,
खाब करते ख़ुदकुशी क्यों बेबशी से .
देखना जाते हुए होकर जुदा फिर ,
दर्द पीकर मुस्कराना हर किसी से .
एक सन्नाटा लिए दिल मेंमु ड़ा   मैं ,
आ गया बाहर अँधेरा रौशनी से .
अब न जाने और क्या क्या देखना है ,
मैंखड़ा चिपका हुआ हूँ इस जमीं से .

इसतरह ना आजमांयें

दोस्तों को इस तरह ना आजमायें .
लोग करना दोस्ती ही भूल जाएँ .
मुस्कराकर कलतलक जो मिल रहे थे ,
रास्ता अपना बदल लें दामन बचाएं .
आइना सब की हकीकत जानता है ,
बेबजह ना और पर ऊँगली उठायें.
अश्क की इक बूँद को  ना कम समझना ,
क्या पता सागर बने हम डूब जाएँ .
जुल्म सहकर ख़ुदकुशी करते नहीं जो ,
ये जरूरी तो नहीं उनको सताएं .
रूठ कर जो दूर दिल से हो गए हैं ,
प्यार से उनको मना लो लौट आयें 

शुक्रवार, 18 मई 2012

हरकत गिरी न हो

हरगिज किसी के प्यार में हरकत गिरी न हो.
नजरें मिलें जो फिर कभी तो किरकिरी न हो .
यह सोच कर दहलीज के बाहर  रखो कदम ,
जो राह तुमने है चुनी वह सिरफिरी न हो .
दिल का छुपाओ राज गर कुछ इस तरह छुपे ,
कोई मिलाये आँख तो फिर मुखबिरी न हो .
आगाज जैसा इश्क का अंजाम भी वही,
लिक्खी गई जिस पर अभी तक शाइरी न हो .
वादा किया जो जिन्दगी भर के लिए अभी ,
सोचो जरा ये आपकी वादागिरी न हो .
रखना कदम है इश्क की इक राह पर अगर ,
ये देखना बढ़ते हुए ये आखिरी न हो .

तितलियाँ देखीं

फूल पर बैठी हुईं जो तितलियाँ देखीं .
अर्श से गिरती हुईं फिर बिजलियाँ देखीं .
एक तिनके  ने बचाया उस समय उसको ,
डूबती जातीं हजारों   कश्तियाँ देखीं .
रात दिन आता रहा जो ख़ाब में अबतक ,
आज उसकी बेबजह नाराजियां देखीं .
सुन नहीं सकता था जो इक लफ्ज भी बेजा ,
हर  तरफ उठती हुईं फिर उँगलियाँ देखीं .
रह नहीं सकते थे जो होकर जुदा इकपाल ,
दरम्यान उनके दिलों के तल्खियाँ देखीं .
दुश्मनी की ये अदा सीखो जरा उससे ,
जब कभी देखीं कमी तो खूबियाँ देखीं . 

बुधवार, 16 मई 2012

मुझसे तुझको प्यार प्रिये

आखिर क्यूँ करती हो खुद पर इतना अत्याचार प्रिये .
दिल पर रख कर हाथ कहो ना मुझसे तुझको प्यार प्रिये.
प्रतिदिन देखा करता हूँ  मैं  सुबह -सुबह सूरत तेरी,
जैसे कोई देखा करता है ताजा अखबार  प्रिये .
जबसे तुझको देखा मैंने तू ही तू है आँखों में ,
हर सुन्दर चेहरे में होता तेरा ही दीदार प्रिये .
पहली बार हुआ  था जिस दिन जिस्म तेरा स्पर्श मुझे ,
वही छुंअन महसूस हुआ करती है कई -कई बार प्रिये.
जब भी तुझे सोचता हूँ मैं एक गजल बन जाती है ,
या फिर एक कहानी जिसमें नए -नए किरदार प्रिये .
तेरे बिना जिन्दगी मेरी लगती थी वीरान सदा ,
तुझको जबसे पाया मैंने हो गई ये गुलजार प्रिये .
वैसे तो दुनिया हर दम ही रही प्यार की दुश्मन है ,
दरम्यां दिलों के खड़ी करी इसने बस दीवार प्रिये .
तोडके सारे बंधन आना बने हुए इस दुनिया के ,
तेरे बिना मुझे लगता है जीना अब दुशवार प्रिये .

कमी रह गई

ना जाने क्या कमी रह गई .
आँखों में जो नमी रह गई .
मौसम यों तो बहुत गर्म था ,
बर्फ मगर  थी जमी रह गई .
वैसे तो वह बहुत हंसी थी ,
दिल में फिर भी ग़मी रह गई .
दिल टूटा जल जला आ गया ,
लेकिन धरती थमी रह गई . 
उसने चाहा वक्त रोक लूं ,
बनकर मानो ममी रह गई .
सोचा  बहुत नतीजा निकले ,
चाहत पर मौसमी रह गई .

कल निकलेगा


आज नहीं तो कल निकलेगा .
कुछ न कुछ तो हल निकलेगा 
रखो हौसला पास हमेशा ,
कर्म किये जा फल निकलेगा .
खोदे जाओ खोदे जाओ ,
गहराई में जल निकलेगा .
वक्त भला कब रुकने वाला ,
गुजर रहा पल -पल निकलेगा .
जो भाग रहा है पैसों के पीछे ,
बेशक वह पागल निकलेगा .
खोटी किस्मत वाला सिक्का ,
मेहनत करलो चल निकलेगा .

प्यार की बातें

कौन करता है यहाँ अब प्यार की बातें .
जिन्दगी भर के लिए इकरार की बातें .
कौन करता है यहाँ अब प्यार की बातें .
जिन्दगी भर के लिए इकरार की बातें .
किस कदर सहमा हुआ है आदमी या रब ,
रह गया बनकर छपी अखबार की बातें .
अब नहीं फुर्सत जरा भी सांस लेने की ,
रात -दिन दौड़ा रहीं कलदार की बातें .
कौन जाने कब बदल जाए यहाँ मौसम ,
अब नहीं लगती भली अभिसार की बातें .
याद रहता है किसे किस से किया वादा ,
तोड़ देती हैं सभी कुछ हार की बातें .

वक्त बुरा है कहते रहना

रखे हाथ पर हाथ भला क्या बैठे रहना .
वक्त बुरा है वक्त बुरा है कहते रहना .
अपने भीतर जोश जगाओ उठकर बैठो ,
ऐसा भी क्या यार ग़मों को सहते रहना .
सुख दुःख तो हैं बने किनारे इस जीवन के ,
जिसकी उच्छल धार हमेशा बहते रहना .
कैसा भी हो वक्त एक सा कब रहता है ,
पर इसके ही साथ -साथ तुम चलते रहना .
एक नया सूरज फिर देखो कल निकलेगा ,
इसका तो  है काम शाम तक ढलते रहना .
आगे बढ़ कर रोक सको तो रोको उसको ,
वर्ना बैठे हाथ हमेशा मलते  रहना . 

शुक्रवार, 11 मई 2012

आज़ादी तो हो

इक पिंजरे में कैद परिंदे को उसकी आज़ादी तो हो .
हर बच्चे को उसका बचपन वृद्धों की इक लाठी तो हो .
उफन रही नदिया के बेशक नहीं किनारे होते हैं ,
लेकिन हर यौवन का अपना सच्चा  जीवन   साथी तो हो .
ऊंचे -ऊंचे महल अटारी ,ढेर कीमती दौलत के ,
नहीं सभी को मिलें ,जिन्दगी इक सीधी सादी तो हो .
माना तिल धरने को जगह  नहीं जरा सी शहरों में ,
लेकिन उजड़े हुए गाँव में बस्ती इक आबादी तो हो . 
पूंजीपति सब निगल रहे हैं हर प्राकृतिक संसाधन को ,
चाँद सितारे ,पर्वत नदिया आखिर कुछ सरकारी तो हो .
जीने में आशंका कितनी मरने में विश्वास बड़ा है ,
भविष्य अँधेरा ही हो  जाए इतनी ना बेकारी तो हो .
एक तरफ रोटी के लाले ,गेहूं सड़ता मैदानों में ,
खून पसीना धरती -पुत्रों का  बहता ना माटी तो हो.
धरे हाथ पर हाथ भला क्यों बैठे पत्थर के बुत -से तुम ,
इक दिन दुनिया सुन लेगी आवाज गले तक आती तो हो .

गुरुवार, 10 मई 2012

जिन्दगी

जिसका वेतन कट जाता है उसकी जिन्दगी नहीं कटती ,
जिसका वेतन नहीं कटता उसकी जिन्दगी कट जाती है .