काश ना करता मुहब्बत मैं किसी से .
जिन्दगी पूरी गुजर जाती ख़ुशी से .
आंसुओं का इस कदर दरिया न बहता ,
खाब करते ख़ुदकुशी क्यों बेबशी से .
देखना जाते हुए होकर जुदा फिर ,
दर्द पीकर मुस्कराना हर किसी से .
एक सन्नाटा लिए दिल मेंमु ड़ा मैं ,
आ गया बाहर अँधेरा रौशनी से .
अब न जाने और क्या क्या देखना है ,
मैंखड़ा चिपका हुआ हूँ इस जमीं से .