फूल पर बैठी हुईं जो तितलियाँ देखीं .
अर्श से गिरती हुईं फिर बिजलियाँ देखीं .
एक तिनके ने बचाया उस समय उसको ,
डूबती जातीं हजारों कश्तियाँ देखीं .
रात दिन आता रहा जो ख़ाब में अबतक ,
आज उसकी बेबजह नाराजियां देखीं .
सुन नहीं सकता था जो इक लफ्ज भी बेजा ,
हर तरफ उठती हुईं फिर उँगलियाँ देखीं .
रह नहीं सकते थे जो होकर जुदा इकपाल ,
दरम्यान उनके दिलों के तल्खियाँ देखीं .
दुश्मनी की ये अदा सीखो जरा उससे ,
जब कभी देखीं कमी तो खूबियाँ देखीं .
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