शुक्रवार, 18 मई 2012

तितलियाँ देखीं

फूल पर बैठी हुईं जो तितलियाँ देखीं .
अर्श से गिरती हुईं फिर बिजलियाँ देखीं .
एक तिनके  ने बचाया उस समय उसको ,
डूबती जातीं हजारों   कश्तियाँ देखीं .
रात दिन आता रहा जो ख़ाब में अबतक ,
आज उसकी बेबजह नाराजियां देखीं .
सुन नहीं सकता था जो इक लफ्ज भी बेजा ,
हर  तरफ उठती हुईं फिर उँगलियाँ देखीं .
रह नहीं सकते थे जो होकर जुदा इकपाल ,
दरम्यान उनके दिलों के तल्खियाँ देखीं .
दुश्मनी की ये अदा सीखो जरा उससे ,
जब कभी देखीं कमी तो खूबियाँ देखीं . 

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