बुधवार, 28 जुलाई 2010

शायद वो नाराज है

शायद वो नाराज है ।
बदले जो अंदाज हैं ।
कल तक थी नजदीकियां ,
मगर फासले आज हैं ।
दिल पर क्या है गुजरती ,
करते नहीं लिहाज हैं ।
मैं तो बस नाचीज हूँ ,
वह मेरे सरताज हैं ।
शाहजहाँ मैं तो नहीं ,
लेकिन वो मुमताज हैं .

फडफडाकर रखे हैं

परिंदों ने पर फडफडाकर रखे हें ।
आसमां पर निगाहें जमा कर रखे हें ।
मिले जख्म जितने भी दिल को अभी तक ,
सीने से अपने लगा कर रखे हें ।
कहीं जल न जाए ये दामन वफ़ा का ,
दिये आंसुओं के बुझाकर रखे हें ।
खुदा जानता है मिरे दिल की हालत ,
कई राज जिसने छुपाकर रखे हें ।
ग़मों ने सताया ,रुलाया हमेशा ,
मगर मैंने रिश्ते बनाकर रखे हें ।
नजर लग न जाए कहीं इस जहां की ,
मुहब्बत के किस्से छुपाकर रखे हें .

हो गया दूर है

वह फकत नजरों से मेरी हो गया बस दूर है ।
पर मिरे दिल में उसी का झिलमिलाता नूर है ।
मैं भला कैसे भुला सकता हूँ उसकी याद को ,
जिन्दगी जिसकी मुहब्बत के नशे में चूर है ।
वह मुआफी दे मुझे या गुनाहों की सजा ,
फैसला उसका तहे दिल से मुझे मंजूर है ।
ये उदासी ,ये तड़प बेचैनियाँ दिन रात की ,
इक सफ़र के वास्ते सामान ये भरपूर है ।
जानता हूँ मैं उसे पाना बड़ा आसान है ,
पर बहुत खोने का पहले बन चुका दस्तूर है .

अच्छी बात नहीं

वादा करके फिर ना आना अच्छी बात नहीं ।
आशिक दिल को यूँ तडपाना अच्छी बात नहीं ।
तुम मुझको चाहो ना चाहो ये तेरी मर्जी है ,
पर बेगानापन दिखलाना अच्छी बात नहीं ।
जिससे तेरी खातिर अपना सब कुछ छोड़ दिया ,
उसे छोड़ कर तनहा जाना अच्छी बात नहीं ।
उम्मीदों के दीप जलाकर रखा राह पर जिसने ,
उसे अंधेरों से भर जाना अच्छी बात नहीं ।
तुम क्या जानो सपने कैसे पलकों पर पलते हैं ,
चूर -चूर सारे कर जाना अच्छी बात नहीं .

हर दिन की खुशहाली

तुझे जन्मदिन मुबारक हो तुझे हरदिन की खुशहाली ।
तेरे जीवन में न आये कभी गम की निशा काली ।
तेरे होंठों पे ले हदम तबस्सुम एक अंगडाई ,
तेरे दामन में ही आये बहारों को भी तरुणाई।
तू इस तरह से हो रौशन दिशाएँ भी चमक जाएँ ,
गगन से चाँद -तारे तक उजाला मांगने आयें ।
तेरी शोहरत के चर्चे हों जमीं से आसमानों तक ,
तेरा ही नाम हो लब पर जमाने के जमानों तक ।
सदा मंजिल कदम चूमे नजर से राह मुद जाए ,
इरादा हो बुलंद इतना कि नया इतिहास बन जाए ।
मिले इतनी मुहब्बत कि तुझे नफरत ज़रा न हो ।
सभी पर तू लुटा दे प्यार कि सबको प्यार हो जाए .

संचित नहीं करते

अश्क आँखों में सदा संचित नहीं करते ।
लब तबस्सुम से कभी वंचित नहीं करते ।
प्यार में जोखिम उठाने की रवायत है ,
प्यार करते हैं मगर अनुचित नहीं करते ।
बात दिल की बोलते खामोश रह करके ,
लफ्ज में फिर भी कभी अनुदित नहीं करते ।
है जिन्हें प्यारी बहुत महबूब की इज्जत ,
प़क दामन दाग से कलुषित नहीं करते ।
उम्र की बंदिश लगाकर आशिकी में भी ,
इश्क को सीमाओं में सीमित नहीं करते ।
प्यार में गुस्ताखियाँ हों लाजिमी हैं कुछ ,
पर सजा देकर बड़ी दण्डित नहीं करते ।
टूट कर यूँ दिल कभी जुड़ते नहीं फिर से ,
आइना -ए- दिल कभी खंडित नहीं करते ।
व्यर्थ है उपकार गिनना उंगलियाँ छूकर ,
प्यार में उपकार को अंकित नहीं करते ।
रूठना अक्सर मनाना मान जाना भी ,
प्यार में महबूब को क्रोधित नहीं करते ।
प्यार की खुशबू फिजा में फैलती है जब ,
नफरतों से यह फिजां दूषित नहीं करते ।
प्यार में गुंजाइशें होती नहीं शक की ,
बेबजह दिल को कभी शंकित नहीं कटे ।
जो मिला पाकर उसे खुशहाल होते हैं ,
जो नहीं पाया तो दिल कुंठित नहीं करते ।
चाँद तारे तोड़ने के वायदे करके ,
झूठ के ख्याली किले निर्मित नहीं करते ।
प्यार में भूलें हमेशा माफ़ करते हैं ,
याद कर करके इन्हें चिन्हित नहीं करते .

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

घर आने की

जब से खबर सुनी है तेरे घर आने की ।
सारी दुनिया बदल गई है दीवाने की ।
ढलते ही जो शाम डूब जाता था मय में ,
नहीं जरूरत रही ज़रा भी मैखाने की ।,
अपना दर्द छुपाकर अब तक जीना आया ,
होंठों की आदत छूटी थी मुस्काने की ।
रहता नहीं ख़ुशी के मारे दिल काबू में ,
करता पाकर पंख कोशिशें उड़ जाने की ।
पलकों के सारे खाब अभी तक मुरझाये थे ,
खिलने लगे खिली है सूरत वीराने की ।
बहुत दिनों के बाद प्यार पर यकीं हुआ है ,
वरना तो समझाया हद थी समझाने की ।

गलतियों से

ले लिया होता सबक कुछ काश पिछली गलतियों से ।
वक्त को गुजरे हुए ना फिर पकड़ते उंगलिओं से ।
रंग भरना आ गया होता अभी तक जिन्दगी में ,
सीखते गर ये हुनर भी रंग बिरंगी तितलियों से ।
आशियाँ उजड़ा हुआ हर बार जो फिर हैं बनाते ,
क्यों नहीं डरते परिंदे आँधियों से बिजलियों से ।
एक तिनके का सहारा पार दरिया है कराता ,
कह रहे हैं ये किनारे डूबती हुई कश्तियों से ।
हाथ मलने से भला क्या कब मिला है आदमी को ,
तोड़ दो रिश्ते सभी अब बेहिचक मजबूरियों से .

मनमानी है

रोज -रोज मैं देख रहा हूँ बढती जाती मनमानी है ।
मुझे सताने की क्या तूने अब अपने मन में ठानी है ।
हर एक इशारे पर पर तेरे तो मैंने खुद को वार दिया ,
लेकिन तूने अपनी सूरत करली कितनी बेगानी है ।
जिसे देख कर मैं अपने दिन की शुरुआत किया करता था ,
उसे छुपाकर तूने ये कर डाली कैसी नादानी है ।
तुझको मैंने अपना समझा पर तूने क्या सिला दिया ,
सोच -सोच कर मेरी आँखों में आ जाता पानी है ।
किसी गैर से बातें करते तुझे देखता हूँ मैं जब भी ,
मुझको लगता तूने मुझसे कर डाली बेमानी है .

देने वाला तो बस रब है .

तुम क्या दोगे मुझे सहारा देने वाला तो बस रब है ।
जब तक उसकी मर्जी ना हो कभी किसी को मिलता कब है ।
अपनी दौलत पर इतना जो तुम इतराते फिरते हो ,
वह चाहे तो तुमसे वापिस ले सकता सबका सब है ।
उसके दर पर आने जाने की तहजीब निराली होती ,
उसे पता है तुमने कब कब नहीं किसी का किया अदब है ।
प्यार मुहब्बत की बातें तो करने में अच्छी लगती है ,
लेकिन सच्चा प्यार हमेशा कुर्बानी का रहा सबब है ।
गुणा-भाग या जोड़ घटाना कहाँ प्यार में होता है पर ,
इसका नियम कायदा दिल पर लिक्खा हुआ अजब है ।

पागलपन दीवाने का

तुम क्या जानो क्या होता है पागलपन दीवाने का ।
प्यार भरी नजरों से जीना नफरत से मर जाने का ।
इन्तजार में पलक बिछाए रहता है उस रस्ते पर ,
जिस राह गया था जाने वाला वादा करके आने का ।
हरदम खोये -खोये रहना अपने किन्हीं ख्यालों में ,
दीवारों से बातें करना रोने औ मुस्काने का ।
जिसको दिल दे दिया उसी को खुशियाँ भी दीं सारी ।
इनको बहुत मजा आता है खुद के ही लुटजाने का ।
रुसवाई का जहर पी लिया दर्दे दिल को लिए फिरे ,
अपना प्यार छुपाकर दिल में अफसाना बन जाने का .

कमजोरी होती है

इंसानों की अपनी -अपनी कमजोरी होती है ।
इनकी चादर दाग-दगीली या कोरी होती है ।
सबके सब अपनी मर्जी के मालिक तो होते हैं ,
रब के हाथों में सबकी ही पर डोरी होती है ।
अन्दर से कितने काले होते हैंउनके दिल भी ,
ऊपर से जिनकी चमड़ी गोया गोरी होती है ।
करने को तो चोर सभी करते हैं चोरी छुपके ,
मगर हमेशा खुले आम दिल की चोरी होती है ।
जिसको नींद नहीं आती रातों में अक्सर ही ,
उसे सुलाने वाली भी इक मां की लोरी होती है

फीलिंग होती है

तुमसे मिलकर मुझे अजब सी फीलिंग होती है ।
मानो मेरे जख्मों की कुछ हीलिंग होती है ।
आँखों से आँखें मिल जाती लब मुस्काते हैं ,
दिल ही दिल में ना जाने क्या डीलिंग होती है ।
तरह -तरह की जेहन में तस्वीरें बंटी हैं ,
ख्यालों में फिल्मों सी मेरे रीलिंग होती है ।
तुझको छूकर खाबों को तो पर लग जाते हैं ,
जैसे उड़ते परवाजों की सीलिंग होती है ।
जब तुम कोई बात अचानक ऐसी करती हो ,
मेरे होठों पर थोड़ी सी थिर्लिंग होती है .

सजा मुझको मिली है

प्यार करने की सजा मुझको मिली है ।
कर रहा है वह बराबर बेरुखी है ।
सोचता हूँ ये मुझे क्या हो गया है ,
नींद आँखों में नहीं कुछ भी बची है ।
उठती रही है इक कसक दिल में सदा ,
आ रही है पेश कैसे जिन्दगी है ।
दूर तक फैला हुआ कैसा अंधेरा,
जो नहीं दिखता कहीं भी रौशनी है ।
काश ऐसा भी हुआ होता किसी दिन ,
वह ज़रा महसूस करता दर्द भी है .

नहीं ज़रा भी प्यार

सच -सच कहना तुमको मुझसे नहीं ज़रा भी प्यार ।
रोज -रोज का मिलना जुलना बेमतलब बेकार ।
अगर नहीं तो कह दो मुझसे दिल पर रख कर हाथ ,
मुझको लेकरनहीं कभी भी दिल धडका इक बार ।
मुझे देख कर होठों पर क्यों आ जाती मुस्कान ,
और चमक उठती हैं आँखें होती हैं जब चार ।
जिस दिन मिलता नहीं भला क्यों होती हो बेचैन ,
तेरी सूरत उसदिन लगती मानों हो बीमार ।
अच्छा बोलो जब भी की है किसी और से बात ,
तुमने मुझको किसी बहाने से टोका कितनी बार .

दिल तक जाती है

दिल से निकली बात बराबर दिल तक जाती है ।
कितनी भी हो राह कठिन मंजिल तक जाती है ।
जिसे वक्त ने खिलने का भी मौक़ा नहीं दिया ,
वही प्यार में कली चाह की खिल तक जाती है ।
कितनी भी हो भंवर भयानक बीच समुन्दर में ,
उठती है जो लहर कभी साहिल तक जाती है ।
अरमानों का क़त्ल भले ही हुआ कहीं छुपकर ,
आँखों में बसी उदासी तो कातिल तक जाती है ।
अगर चाह सच्ची हो दिल में कुछ भी पाने की ,
हर कोशिश सीधी चलकर हासिल तक जाती है .

कुछ गम ना होते

पास अगर कुछ गम ना होते ।
इतने खुश हरदम ना होते ।
जख्म कहीं भी मिल जाते पर ,
जख्मों पर मरहम ना होते ।
तन्हाई जीने ना देती ,
अंधियारे भी कम ना होते ।
खुशियाँ साथ हमेशा रहतीं ,
बदले गर मौसम ना होते ।
इश्क मुहब्बत सब करते जो ,
ढेरों पेंच -ओ -ख़म ना होते .

अपने दिल की बात

नहीं किसी से कह पाटा हूँ अपने दिल की बात ।
ऐसे ही दिन कट जाता है कट जाती है रात ।
रह -रह कर इक बात हमेशा मुझे सताती खूब ,
क्या घुट कर रह जायेंगे दिल ही दिल में जज्बात ।
जब भी उसकी याद सताती भर आते हैं नैन ,
धीरे -धीरे होने लगती अश्कों की बरसात ।
तस्वीरों से भी तो आखिर कब तक बोलूं बोल ,
कभी नहीं करती ये खुद से बातों की शुरुआत ।
हरदम साथ निभायेंगे वह कसम निभाते काश ,
बदल न जाते अब तक मेरे बुरे सभी हालात .

खुदगर्ज हो गया

ना जाने क्यों मैं इतना खुदगर्ज हो गया ।
मेरा नाम इन्हीं लोगों में दर्ज हो गया ।
कभी प्यार का नहीं ज़रा भी इल्म हुआ है ,
रब जाने किस तरह मुझे ये मर्ज हो गया ।
एक नजर भर उसने मुझ पर डाली थी पर ,
उसे देखना हरपल मेरा फर्ज हो गया ।
थोड़ा सा हंसकर मुझसे क्या बातें कर लीं ,
मैंने समझा मेरे ऊपर कर्ज हो गया ।
अब तो मेरी बेचैनी का ये आलम है ,
उसे नहीं देखूं तो लगता हर्ज हो गया .

सारी वर्जनाएं

तोड़ कर सारी की सारी वर्जनाएं ।
चाहते हैं हम बहुत आनंद पायें ।
पर कभी मुमकिन नहीं फिलहाल ये ,
गलतियां भी हम कें न दंड पायें ।
हर कर्म की यों एक सीमा है निहित ,
जो सभी को चाहिए होना विदित ,
जब कभी दरिया किनारे तोड़ते हैं ,
हर तरफ प्रलय भयंकर ही दिखाएँ ।
लक्ष्मण रेखा जो लांघी कोई सीता ,
उसका जीवन कष्टमय हरदम ही बीता ,
है जरूरी एक अंकुश जिन्दगी में ,
न मार्ग पर सच्चाई के पग डगमगाएं .

निकलते घर से

रोज देखता हूँ मैं छुपकर उन्हें निकलता घर से ।
मगर मिलाते नहीं नजर वो ना जाने किस डर से ।
सुबह से लेकर शाम तलक मैं राह उन्हीं की तकता ,
मगर निकल जाते हैं वो हर दम ही इधर -उधर से ।
जब तक उनको जी भर कर मैं देख नहीं लेता हूँ ,
भूत प्यार का नहीं उतरता तब तक मेरे सर से ।
मुझे पता है अभी उमर है उनकी कितनी कमसिन ,
लेकिन उनको जो भी देखे पाने को मन तरसे ।
ऊपर वाले से मैं इतनी दुआ सदा करता हूँ ,
उन्हें दूर ना करना गोया मेरी कभी नजर से .

पास तुम्हारे आने का

काश ज़रा सा मौक़ा मिलता पास तुम्हारे आने का ।
पूरी -पूरी कोशिश करता दिल में जगह बनाने का .
लेकिन मेरे जज्बातों की तुमने क़द्र भला कब की ,
तुमने मकसद बना लिया है मुझको बस तडपाने का ।
मैंने जब -जब खाब संजोये तुमको लेकर आँखों में ,
लेकिन तुमने तोड़ दिये सब ना सोचा कुछ दीवाने का ।
मुझे देखकर भी अनदेखा तुम हर दम ही करते हो ,
गोया तुम्हें नजर आता है चेहरा इक बेगाने का ।
बेरुखी तुम्हारी बिजली बनकर मुझपर जिसदम गिरती है ,
बेकार जिन्दगी लगती अपनी जी करता है मरजाने का .

मिल नहीं पायेंगे

चाहकर भी आप मुझसे अब नहीं मिल पायेंगे ।
रास्ते में बो दिये जो खार हैं उग आयेंगे ।
जब कभी तन्हाई में गर आप सोचेंगे मुझे ,
आप अपनी ही नजर में यकबयक गिर जायेंगे ।
बददुआ मेरी नहीं न दिल की कोई आरजू ,
पर कटे पंछी की तरह उड़ते हुए गिर जायेंगे ।
जिन्दगी में छायेंगी जिस रोज गम की बदलियाँ ,
आप डर से इस कदर थरथराते जायेंगे ।
जानता हूँ आपको कितना अपने ऊपर है गरूर ,
क्या करोगे जब खजाने ख़ाक में मिल जायेंगे .

सोमवार, 26 जुलाई 2010

नहीं उठाते वो

फोन लगाता हूँ मैं फिर भी नहीं उठाते वो ।
ना जाने क्यों इतना ज्यादा मुझे सताते वो ।
हरदम ही इंगेज फोन करने पर आता है ,
रब ही जाने किस से घंटों बतियाते हैं वो ।
ऐसा भी तो नहीं कभी नाराज हुए हों मुझसे ,
लेकिन जब भी मिलते मुझसे कतराते हैं वो ।
इतनी सुन्दर उनकी मर मर जाता हूँ मैं ,
लेकिन जी उठता हूँ फिर से नजर उठाते हैं वो ।
मुझ पर इतना सितम नहीं अच्छा लगता है उनका ,
ना ही आते हैं ना मुझको पास बुलाते हैं वो ।
फिर भी उनका इन्तजा रहता है मुझको हरदम ,
हर पल लगता बस अब मुझको फोन लगाते हैं वो .

अगर कुछ ख़त होते

मेरे पास तुम्हारे भेजे नहीं अगर कुछ ख़त होते ।
घुट -घुट कर मर जाता या जीवन कटता रोते -रोते ।
मुझे हमेशा बड़ी तसल्ली दी जब भी ग़मगीन हुआ ,
वरना डूब गया था गम के सागर में खाकर गोते ।
तन्हाई के आलम में जब परछाईं भी साथ न थी ,
ख़त के अल्फाजों ने मेरा साथ दिया जगते -सोते ।
तेरे बिना मुझे लगता था मैं कितना कमजोर हुआ ,
मुझे खतों ने दी ताकत टूटा था गम ढोते-ढोते ।
इल्जामों के दाग लगे थे मेरे दामन पर इतने ,
सारा जीवन भी कम पड़ता इनको बस धोते-धोते .

वक्त लेकर आ गया मुझको कहाँ

वक्त लेकर आ गया मुझको कहाँ ।

कामयाबी दूर तक फैली जहां ।

हाथ अपना जो बढ़ाया गर कभी ,

उंगलिओं ने छू लिया आसमां ।

ख्वाहिशें दिल की सभी पूरी हुईं ,

मुश्किलों का मिट गया नामों निशाँ ।

मैं चली थी तो अकेली थी मगर ,


यकबयक बनता गया इक कारवाँ ।

पूछते हैं लोग मुझसे आजकल ,

जिन्दगी की खूबसूरत दास्ताँ .

तेरे हर ख़त का

मैंने इक -इक लफ्ज पढ़ा है तेरे हर ख़त का ।
जिनमें तुमने जिक्र किया है अपनी चाहत का ।
लेकिन बीच हमारे कितना बड़ा फासला है ,
नहीं दिखाई देता कोई रस्ता राहत का ।
तकदीरों का खेल समझकर सब कुछ सहना है ,
तन्हाई को बना लिया अब हिस्सा आदत का ।
मुस्काना चाहा तो आंसू मिले नसीबा में ,
बढ़ता गया खजाना पाकर तोहफा नफरत का ।
टूटा हुआ लिए दिल अपना एक खिलोना -सा ,
टुकडा -टुकडा ढूंढ रहा हूँ अपनी कीमत का .

एक इबादत होती है

जिनके लिए मुहब्बत एक इबादत होती है ।
दिल लेने देने की उनकी आदत होती है ।
ज़रा प्यार से बोला कोई अपना लिया उसे ,
अपने दुश्मन से भी नहीं शिकायत होती है ।
दूर -दूर तक नहीं जफा से रिश्ता होता है ,
रिश्तों के दरम्यां वफ़ा की चाहत होती है ।
औरों को खुशियाँ देकर खुद गम लेते हैं ,
अश्कों की कीमत पर खूब तिजारत होती है ।
ऊँगली कोई उठे प्यार पर सहन नहीं होता ,
रुसवाई से सदा बचाना फितरत होती है .

अच्छी बात नहीं

प्यार में झूठी कसमें खाना अच्छी बात नहीं ।
किसी के दिल को यूँ तडपाना अच्छी बात नहीं ।
तुम क्या जानो इन्तजार में मुझ पर क्या गुजरी ,
वादा करके फिर ना आना अच्छी बात नहीं ।
मैंने तुमको जबसे चाहा सब कुछ भूल गया ,
भूली बातें याद दिलाना अच्छी बात नहीं ।
अगर नहीं आना है तुमको साफ़ -साफ़ कह दो ,
रोज -रोज का नया बहाना अच्छी बात नहीं ।
जब भी तुमको फोन करो तो नो रिप्लाई रहता ,
जान बूझकर चुप रह जाना अच्छी बात नहीं .

शिकायत करूँ क्या किसी से

भला मैं शिकायत करूँ क्या किसी से ।

मुझे गम मिले हैं मिरी ही ख़ुशी से ।

तरस तुम न खाओ यूँ हालत पे मेरी ,

अभी रिश्ता तोड़ा नहीं है ख़ुशी से ।

सुनो मेरी खातिर दुआ अब न करना ,

मुझे जीना आता नहीं बुजदिली से ।

तुम्हें देखकर भी न देखूं अगर मैं ,

समझना मैं मिलता नहीं अजनबी से ।

परेशां न हो जुगनुओं तुम जरा भी ,

अँधेरे मिले हैं मुझे रौशनी से .

मुहब्बत करने वाले

कैसे हैं ये लोग मुहब्बत करने वाले ।
इस दुनिया से नहीं ज़रा भी डरने वाले ।
इन्हें जरूरत नहीं जमाने की चीजों की ,
चाँद सितारों को दामन में भरने वाले ।
उड़ते हैं दिन रात आसमां में खाबों में ,
भला कहाँ ये पाँव जमीं पर धरने वाले ।
इनकी आँखों में कैसे ये सपने रहते हैं ,
जहां अश्क हैं झरनों जैसे झरने वाले ।
जीने की है बड़ी तमन्ना ताकयामत ,
एक नजर पर ये किसी की मरने वाले .

नाम हमारे साथ जुड़ा है

जब से उसका नाम हमारे साथ जुड़ा है ।
तबसे वह रहता मुझसे उखडा -उखडा है ।
उसने खुद को कैद कर लिया अपने घर में ,
नहीं दिखाई पड़ता उसका अब मुखड़ा है ।
शाम ढले चौकन्नी सी बाहर आती है ,
भला सुनाएँ किस किसको अपना दुखड़ा है ।
उसे कहाँ था पता इश्क आसान नहीं है ,
कदम कदम पर इम्तहान यूँ बहुत कड़ा है ।
ऊंची -ऊंची दीवारें हैं जात -पांत की ,
ये मजहब भी दुश्मन की मानिंद खडा है .

बहुत बुरा लगता है मुझको तेरा जाना

बहुत बुरा लगता है मुझको तेरा जाना ।
हर तरफ नजर आता है मानो इक वीराना ।
भूले से भी कभी आइना दिख जाता है ,
अपनी ही सूरत लगती खुद को बेगाना ।
तेरे साथ गुजारे लम्हे याद आते हैं ,
और याद आता है तेरा वह शर्माना ।
रह रह कर ये आँखें गीली हो जातीं हैं ,
कितना मुश्किल होता खुद को समझाना ।
इक सूनापन दिल को हरदम घेरे रहता ,
अच्छा लगता नहीं ज़रा सा भी मुस्काना .

बोलो सीधा क्या

सारी दुनिया ही उल्टी है बोलो सीधा क्या ।
जनम -जनम भर जिसे निभाना उसका वादा क्या ।
घट सागर में घट में सागर दोनों एक हुए ,
कहने वाले तो कहते हैं पूरा आधा क्या ।
नाप सका है कौन प्यार की गहराई अब तक ,
एक बार डूबा है जो भी बाहर आया क्या ।
जितना जिसको मिलना था वह प्यार मिला उसको ,
अपनी अपनी तकदीरें हैं इससे ज्यादा क्या ।
प्यार मिला है जितना भी सब मिला सदा औरों से ,
अगर ज़रा सा कोई ले ले अपना जाता क्या .

खफा किसलिए

मुझसे तुम हो खफा किसलिए ।
गैरों से है वफ़ा किसलिए ।
या तो मेरा जुर्म बता दो ,
वरना इतनी सजा किसलिए ।
मैंने सच्चा प्यार किया है ,
इसपर शक बेबजह किसलिए ।
प्यार कोई व्यापार नहीं है ,
जो नुक्सान नफ़ा किसलिए ।
पहले जख्म मुझे देते हो ,
फिर जख्मों पर दवा किसलिए .

तुम्हारी जितनी भी तस्वीरें हैं

मेरे पास तुम्हारी जितनी भी तस्वीरें हैं ,
तुम चाहो तो मुझसे ले जा सकते हो आकर ।
लेकिन इसके पहले तुम बस इतना भर करना ,
मुझसे प्यार नहीं करतेहो कहो कसम खाकर ।
मैंने तो हरदम ही तुमको अपना माना था ,
नहीं दूसरा सिवा तुम्हारे कोई जाना था ,
जानबूझ कर मैंने अबतक कोई खता न की ,
फिर भी ना जाने क्यों तुमने मुझसे वफ़ा न की ,
सच कहता हूँ कभी सामने मैं ना आउंगा ,
शहर तुम्हारा छोड़ बसूँगा कहीं दूर जाकर .

इतना भी क्या डरना डर से

इतना भी क्या डरना डर से ।
जो निकलो ना बाहर घर से ।
हर तरफ निगाहें चौकन्नी सी ,
मानो खतरा इधर -उधर से ।
हर समय कांपते थर -थर ,थर -थर ,
झर ही जाओगे पतझर से ।
झुके चले जाते हो इतना ,
बोझा बाँध रखा हो सर से ।
नजर मिलाने से कतराते ,
दिखते भी कातर -कातर से ।
ज़रा किसी ने कुछ कह डाला ,
चिपक गए इक दम बिस्तर से .

शनिवार, 24 जुलाई 2010

मुझे मंजूर नहीं

सिवा तुम्हारे किसी और का प्यार मुझे मंजूर नहीं ।

बीच हमारे कोई खड़ी दीवार मुझे मंजूर नहीं ।

चलो तुम्हारी पहली गलती समझ के मैंने माफ़ किया ,

लेकिन पहली -सी गलती हर बार मुझे मंजूर नहीं ।

तुम रूठोगे भी तो मुझसे तुम्हें मना भी लूँगा मैं ,

मगर गैर का बन जाना मुख्तार मुझे मंजूर नहीं ।

तुम कह दो तो प्यार की खातिर मैं कुछ भी कर सकता हूँ ,

वरना करना लोगों की बेगार मुझे मंजूर नहीं ।

जब तक तुमको देख नहीं लूं चैन मुझे न आता है ,

किसी और सुन्दर चेहरे का दीदार मुझे मंजूर नहीं .

सच कहते पर हम हें

कहने को तुम कुछ भी कह लो सच कहते पर हम हें ।
तुमने केवल जख्म दिये हैं नहीं कभी मरहम हैं ।
तुमने कब महसूस किया है हम पर क्या -क्या गुजरी ,
जब भी मुझ से रूठे हो तुम रहे मनाते हम हैं ।
हमने तो आसान समझ कर तुमसे प्यार किया था ,
मुझे पता न था प्यार में इतने पेंच -ओ -ख़म हैं ।
अपना दर्द बताएं किसको फुर्सत भला किसे है ,
इस दुनिया में औरों के गम नहीं किसी कम हैं ।
औरों के संग बातें करके इतना भी ना सोचा ,
जीवन में आजायेंगे यूँ पतझड़ के मौसम हैं .

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

मुहब्बत मुझे इस कदर है

नशा -ए-मुहब्बत मुझे इस कदर है ।
न उसके सिवा कुछ भी आता नजर है ।
तसव्वुर उसी का उसी की है बातें ,
जमाने की बातों से दिल बेखबर है ।
नजर में भी वो है नज़ारे में भी वो ,
जिधर देखता हूँ वो दिखता उधर है ।
बड़ी खूबसूरत लगे जिन्दगी ए ,
बना है वो जबसे मेरा हमसफ़र है ।
वही मेरी पूजा वही है इबादत ,
उसी की दुआओं का मुझ पे असर है ।

चलन आजकल

नफरतों की हवा का चलन आजकल ।
दुश्मनों से वफ़ा का चलन आजकल ।
हम यकीं भी करें तो करें किस तरह ,
दोस्ती में दगा का चलन आजकल ।
प्यार में कोई भी रिश्क लेता नहीं ,
बस नफ़ा ही नफ़ा का चलन आजकल ।
हर तरफ साजिशों का बुना जाल है ,
हर बगल में छुरा का चलन आजकल ।
ये हरे जख्म दिल के मिटें किस तरह ,
जख्म ही हैं दवा का चलन आजकल .

आंसू बहायें

बंद कमरे में रहें आंसू बहायें ।
बैठकर गजलें लिखें बिलबिलायें ।
आग लगती है कहीं लगती रहे पर ,
फोन नंबर जो मिलें उसको गुमायें ।
चीख होंठों से ही पहले घोट दें ,
एक कोने में खड़े बस बड़बड़ायें
क़त्ल हो जो सामने मुंह फेर लें ,
मुट्ठियाँ भीन्चें ज़रा सा तिलमिलाएं ।
गर कभी अखबार में छाप भी जाए हादसा ,
मजहबों में बाँट दें मातम मनाएं .

सजा के देख

पलकों पे आंसुओं को अपने सजा के देख ।
ये गम है चार दिन का तू मुस्कराके देख ।
हो किस लिए परेशां किसकी तुझे तलाश ,
वह तो करीब ही है नजरें उठा के देख ।
इक बेवफा की खातिर क्या अश्क बहाना हैं ,
दुनिया बड़ी हंसी है बस दिल लगा के देख ।
कतरा के गुजरते हैं जो देखकर तुझे यों ,
कल वो ही तलाशेंगे तू गुनगुना के देख ।
हो जाएगा तुझको यकीं खुद अपने आप पर ,
आँखों पे पड़े धोखे के परदे हटा के देख .

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

लेकिन कटती रात नहीं

कट जाते हैं दिन तेरे बिन लेकिन कटती रात नहीं ।
सब कुछ सब से कह सकते हैं केवल दिल की बात नहीं ।
मैंने तुमको हरदम चाहा सबसे बढ़कर प्यार किया ,
फिर भी आज तलक समझे तुम दिल के ये जज्बात नहीं ।
रह रह कर उठता है मेरे दिल में हरपल ख्याल यही ,
तेरी नजरों में थोड़ी सी भी दिल की क्या औकात नहीं ।
जब से तुमने मुंह फेरा है मुझे बनाकर बेगाना ,
आँखों से सावन भादों की रुकती है बरसात नहीं ।
तेरी याद छुपाये दिल में घुट घुट कर जीता हूँ मैं ,
जाने कितने मौसम बदले ,बदले पर हालात नहीं .

भुलाना चाहता हूँ

मैं उसे दिल से भुलाना चाहता हूँ ।
यूँ वफ़ा को आजमाना चाहता हूँ ।
ये हकीकत है कि वो मेरा नहीं है ,
पर यकीं खुद को दिखाना चाहता हूँ ।
हम मिलेंगे फिर कभी न जिन्दगी में ,
मोड़ ऐसा कोई लाना चाहता हूँ ।
इस कदर नफरत मुझे उससे हुई है ,
दुश्मनी भी दोस्ताना चाहता हूँ ।
वो रहे हरदम सलामत ये दुआ है ,
एक बदला में चुकाना चाहता हूँ .

छोटे छोटे घर

बड़े -बड़े दरवाजों वाले छोटे -छोटे घर ।
जिनमें चलते -फिरते हरदम आते प्रेत नजर ।
आशंका से पुते हुए इन लोगों के चेहरे ,
प्रायः सोचा करते कोई आ ना जाए इधर ।
भीतर ही भीतर कितने हो चुके खोखले हैं ,
बाहर से दिखते हैं फिर भी इकदम ठोस मगर ।
होठों पर मुस्कान हमेशा कायम फीकी सी ,
आँखों में हर खाब है जैसे उजड़ा हुआ नगर ।
अविश्वास है फैला ऐसे ज्यों बिखरा कोहरा ,
दूर -दूर तक जिसमें पड़ती नहीं दिखाई डगर .

जिन्दगी के लिए

इक सबक मिल गया जिन्दगी के लिए ।
आदमी अब नहीं आदमी के लिए ।
सिर्फ दौलत की खातिर हैं रिश्ते सभी ,
कोई रिश्ता नहीं मुफलिसी के लिए ।
जब तलक रौशनी साथ परछाईं है ,
पर नहीं साथ वह तीरगी के लिए ।
मुहब्बत की पढ़ते किताबें सभी ,
एक रंजिश मगर आशिकी के लिए ।
जिसे याद रखने की कसमें कहीं ,
भूल जाते हैं इक दिन उसी के लिए .

जब निगाहें निगाहों से टकरा गईं .

जब निगाहें निगाहों से टकरा गईं ।
देखती ही रहीं जैसे पथरा गईं ।
होश आया अचानक कि ये क्या हुआ ,
सोच कर मन ही मन में वो घबरा गईं ।
न इन्हें होश था न उन्हें होश था ,
वक्त ठहरा हुआ जैसे मदहोश था ,
थी उमंगें उमड़ती हुईं साँसों में ,
हर कोई इक जुनू में बेहोश था ,
मुहब्बत की ऐसी थी खुशबू उडी ,
उम्र भर के लिए रूह महका गईं .

अपने पास रखो

सब पर अपना प्यार लुटा दो नफरत अपने पास रखो ।
फिर कोई कच्छ ना चाहेगा इतना भर विश्वास रखो ।
अपने खाबों की दुनिया में खुदको बस खुश रहने दो ,
उन्हें जमीं पर रह लेने दो तुम सारा आकाश रखो ।
हर पत्थर के आगे झुकना होती नहीं इबादत है ,
जो मिलना है वही मिलेगा कितने भी उपवास रखो ।
गुजरा हुआ भुलाना दिल से इंसानों की फितरत है ,
जिसे भुला ना पाए कोई ऐसा इक इतिहास रखो ।
माना दुनिया से सच्चाई हर पल उठती जाती है ,
फिर भी सच तो सच ही होगा इस सच पर विश्वास रखो

बदली भागी जाए

सुनकर सावन के आने की बदली भागी जाए ।
आगंतुक के अभिनन्दन में पपीहा गीत सुनाये ।
नाच रहा है आनंदित हो पत्ता -पत्ता बूटा -बूटा ,
शाख -शाख पर जुगनू जैसे अगणित दीप जलाए ।
वायु फिरती द्वारे -द्वारे सुख सन्देश सुनाती ,
वसुंधरा भी आकुल होकर अपनी नजर उठाये ।
आया सावन तो बिजली ने छोड़ी ज्यों आगौनी ,
लिपट -लिपट बदली ने भी आंसू खूब बहाए ।
मिलकर दो दिल तृप्त हो गए बरसों के ज्यों बिछुड़े ,
नील गगन ने हर्षित होकर सतरंगी हार चढ़ाए .

जिस दिन उसने दस्तक दी थी

मेरे दिल के दरवाजे पर जिस दिन उसने दस्तक दी थी ।
खुशियों से महरूम जिन्दगी में जैसे मस्ती भर दी थी ।
लगा नाचने मन मयूर सा थिरक उठी थी दिल की धड़कन ,
तन के साज पे एक अनोखी साँसों ने सरगम छेदी थी ।
उसने जिस पल लहराया था आँचल अपना खुली हवा में ,
चारों ओर फिजां में खुशबू भीनी -भीनी सी भर दी थी ।
अरमानों के दीप जल उठे खाब सभी रंगीन हो गए ,
उसने मुस्काकर धीरे से जिस दम अपनी हामी दी थी .

जब से मय को पीना सीखा

जब से मय को पीना सीखा ।
हंस -हंस कर के जीना सीखा ।
जब भी याद किसी की आई ,
अपने आंसू पीना सीखा ।
कभी मांगकर ख़ुशी मिली न ,
आगे बढ़ कर छीना सीखा ।
शिकवा गिला भला क्या करना ,
चाक जिगर को सीना सीखा ।
अब तिनके को नहीं ढूंढता ,
खुद ही बनूँ सफीना सीखा .

दिवाली दियों को जलाने का मौसम

दिवाली दियों को जलाने का मौसम ।
अन्धेरा जमीं से भगाने का मौसम ।
किसी बात पर जो बुरा मान बैठे ,
ये रूठे हों को मनाने का मौसम ।
जिसे भूल कर भी भुला हम न पाए ,
उसे भूल कर के भुलाने का मौसम ।
जहां भूल कर भी न कोई हंसा हो ,
उसी घर में खुशियाँ बुलाने का मौसम ।
कभी टूट कर दिल जो तनहा हुआ हो ,
उसे प्यार देकर निभाने का मौसम .

प्यार में पागल न होगा

आदमी जब तक किसी के प्यार में पागल न होगा ।
नफरतों के मसअलों का मुस्तकिल कोई हल न होगा ।
जुगनुओं को मुट्ठियों में कैद करने से भला ,
जो अन्धेरा आज है फैला हुआ क्या कल न होगा ।
मुस्करा कर चंद मीठी बातें गर दुश्मन करे ,
सोचना ये भूल है कि साथ कोई छल न होगा ।
इक पपीहे की प्यासी रूह को हरगिज कभी भी ,
स्वांति बूंदों के सिवा मंजूर दीगर जल न होगा ।
जख्मे दिल को कोई मरहम फायदा देगा भी क्या ,
सर पे उसके जब तलक स्नेह का आँचल न होगा .

मेरी ख्वाहिशें

मेरी तंग -दस्ती में पैदा हुईं मेरी ख्वाहिशें /
कर्ज की आब -ओ -हवा में /
कुछ इस तरह बढीं /
ज्यों बढ़तीं हैं हदस किसी हादिल की /
देखकर औरों की शान -ओ -शौकत /
तंग दर तंग होती गई चादर /
निकलते गए पैर बाहर /
जैसे किसी बचालन औरत का /
निकलता है बाहर कदम /
लांघकर घर की मुक़द्दस दहलीज /
मैंने चेहरे पर ओढली नकाब /
महज धोखा देने के लिए आईने को /
क्यों कि आइना वही दिखाता है /
जो उसके सामने होता है /
और वह नहीं दिखाता जो नहीं होता है आदमी .


रखना इसे संभाल

नाजुक सी है चीज मीरा दिल रखना इसे संभाल ।
ऐसा न हो कभी भूल से तुम दो इसे उछाल ।

इसके भीतर जाने कितने ऐसे राज छुपे हैं ,
अगर उजागर हो जौयें तो आ जाए भूचाल ।

जाने कितनी प्रेम कहानी इसमें दबी पड़ीं हैं ,
जिनका दर्द यदि कोई सुनले हो जाए बेहाल ।

कसमें -वादे प्यार वफ़ा कुछ नफरत कुछ रुसवाई ,
दिल में क्या क्या सहा आज तक नहीं है पुरसाहाल ।
अब तक दिल ने जो भी चाहा उसे कभी भी नहीं मिला ,
मगर आज माँगा जो तुमसे मत देना तुम टाल.

दिल को ख़ुशी मिली

तुझसे मिला तो इस कदर दिल को ख़ुशी मिली ।
मानो किसी मरीज को नयी जिन्दगी मिली ।
तेरी नजर थी मयफिशां जो प्यास बुझ गई ,
वरना अभी तक कब मिटी जो तश्नगी मिली ।
फैला हुआ था हर तरफ अशियार का धुंआ ,
तुम मुस्कराए शायरी को ताजगी मिली ।
तकदीर थी रूठी हुई जो मानती न थी ।
तुमने न जाने क्या कहा हंसती हुई मिली ।
दिल में किसी के प्यार का अहसास भी न था ,
होने लगा जो इश्क की दीवानगी मिली ।

जगा दे मुझे

अपने क़दमों में थोड़ी जगा दे मुझे ।
मुहब्बत का कुछ तो सिला दे मुझे ।
तुझको सोचा है जबसे तसव्वुर तिरा ,
दीद दीदार की अब ज़रा दे मुझे ।
है नज़ारे में तू हर नजर में भी तू ,
कम से कम अपने घर का पता दे मुझे ।
मैं गुनाहों से लबरेज हूँ किस कदर ,
तू करम मुझपे कर या सजा दे मुझे ।
चाहता हूँ में तुमको खुदा की कसम ,
तू वफ़ा मुझसे कर या दग़ा दे मुझे .

अपनी शैली है

गुलशन में जितने फूल खिले हैं सबकी अपनी शैली है ।
दूर -दूर तक इसी लिए तो खुशबू इतनी फैली है ।
भँवरे भी मस्ती में अपनी गुनगुन गाते हैं ,
रंगबिरंगी तितली के दल मधुर पराग खाते हैं ,
यहाँ खोल दी खुशियों की ज्यों रब ने थैली है ।
यहाँ नहीं कोई रंजिश है जैसी मिलती इंसानों में ,
होंठों से मधुरस टपकाते नफरत दिल के तहखानों में ,
ऊपर से है साफ़ पैरहन मगर रूह तो मैली है .

ऐसा न था ये शहर

हमेशा से ऐसा न था ये शहर ।
न मिलता था लोगों के दिल में जहर ।
सभी थे सभी के लिए बवफा ,
न होता था कोई किसी से खफा ,
मुहब्बत से लबरेज थी दोपहर ।
न अपने पराये का कुछ फर्क था ,
न बातों में करता कोई तर्क था ,
वक्त लगता था जैसे गया है ठहर ।
यहाँ मजहबों की न दीवार था ,
रियाया यहाँ एक परिवार थी ,
न धाता था कोई किसी पे कहर .

तेरी तस्वीर

आखिर कब तक दिल बहलायें हम तेरी तस्वीर लिए ।
सारी दुनिया दुश्मन जैसे हाथों में शमशीर लिए ।
जग के सारे रिश्ते -नाते तुम्हें तोड़कर आना होगा ,
घुट -घुट कर दिन रात जियें क्यों पैरों में जंजीर लिए ।
दीवानों ने कब मानी हैं उंच -नीच की दीवारों को ,
कितने आंसू और बहायें विरहा की तकदीर लिए ।
जीना लगता है बेमानी मिला तिरा जो साथ नहीं ,
ऐसा जीना भी क्या जीना आंसू की जागीर लिए ।
पैरों के कांटे तो सारे इक इक कर हैं खींच लिए ,
मगर अभी भी जीते हैं हम दिल में कितने तीर लिए .

बुधवार, 21 जुलाई 2010

अधूरी कविता -6

कोई डाकिया चिट्ठी लेकर जब भी आता है ,
उसके प्रश्नों से बचने को वह कतराता है ,
आँखों से झर-झर झरने लगता सावन है ।
कितने ही मौसम बीत गए अनजानी यादों के ,
गाये ढेरों गीत विरह के सावन भादों में ,
तडपी सारी रात मीन सी किया क्रंदन है ।
सुबह शाम पूजा करती वह दत्त चित्त होकर ,
घंटों रहती ध्यान मग्न अपनी सुध बुध खोकर ,
माँगा करती हाथ जोड़कर प्रिय का दर्शन है ।
जब तक घर में रहती घर लगता भरा -भरा ,
जैसे सावन में लगता है सब कुछ हरा हरा ,
उसकी अनुपस्थिति में लगता बस सूनापन है ।
जब भी मन घबराने लगता एकाकीपन से ,
घंटों जाने कितनी बातें करती दर्पण से ,
करती क्वांरी संग ब्याहता ज्यों पति वर्णन है ।
ऑटो रिक्शा से प्रतिदिन वह जाती थी स्कूल ,
इधर -उधर की बातों में न करती वक्त फिजूल ,
ध्यान लगा कर मनोयोग से करती अध्ययन है ।
प्रतिदिन करती बात फोन पर नियमित वह मुझसे ,
दुनिया भर की ख़बरें सारी कह देती झट से ,
उसके होम वर्क में शामिल हुआ कनेक्शन है

अधूरी कविता -5

हिरनी जैसी चाल उफनती नदिया सा यौवन ,
नागिन जैसे बाल सुगन्धित काया ज्यों चन्दन ,
बदली जैसी मडराती फिरती गलियन -गलियन है ।
वैसे उसका मुखड़ा बिलकुल भोला भाला है ,
परियों जैसा रूप रंग सांचे में ढाला है ,
उसकी सूरत में मरियम का सा होता दर्शन है ,
उसका दामन पाक साफ़ लगती सीता -सी है ,
निर्मल मन करनी पवत्र पावन गीता -सी है ,
उसपर शक गंगा पर जैसे दोषारोपण है ।
जो देखे इकबार दृष्टि टिककर रह जाती है ,
देखूं बारम्बार यही इच्छा रह जाती है ,
बरबस लेता खींच किसी को भी आकर्षण है ।
दिन भर करती धमाचौकड़ी पैर नहीं थकते ,
शाम ढले घर आती सबकी नजरों से छुपके ,
उस पर चलता नहीं किसी का भी अनुशासन है ।
वह जब खोई -खोई होती अपने आप ख्यालों में ,
या फिर खोई होती उलझे हुए सवालों में ,
तब रह -रह खनकाती चूड़ी खन-खन खन -खन है ।
बैठे -बैठे ही अक्सर वह रोने लगती है ,
धीरे -धीरे अपना आपा खोने लगती है ,
रब जाने छा जाता कैसा दीवानापन है .

अधूरी कविता -4

जब से पाया यौवन ,आया शर्मीलापन है ,
दिन में कई -कई बार निहारा करती दर्पण है ,
कड़ी -कड़ी वह जाने किसका करती चिंतन है ।

दरवाजे से छिप -छिप कर वो देखा करती है ,
दूर -दूर तक जाने किसको खोजा करती है ,
किसके पीछे -पीछे पीछा करती चितवन है ।
जब भी आता कोई सामने झट छुप जाती है ,
खुद से करती बात यकायक चुप हो जाती है ,
करती यों व्यवहार झलकता बेगानापन है ।
गुड्डा -गुडिया कभी खेलती पढती दिन -दिन भर ,
बोले सबसे कभी प्यार से कभी लादे जमकर ,
उसके ऊपर केवल उसके मन का शासन है ।
बच्चों जैसी कभी ,कभी जिद करने लगती है ,
कोई डांट पिला दे तो फिर डरने लगती है ,
दूर -दूर रहती पकड़ो तो करती रोदन है ।
चाकलेट ,टाफी से उसको बड़ी मुहब्बत है ,
देने वाले की करती वह काफी इज्जत है ,
कर लेती खुश होकर उसका वह आलिंगन है ।
ढेरों करती बात पक्षियों से संकेतों में ,
दौड़ा करती संग तितलियों के वह खेतों में ,
ढूंढा करती फूल पत्तियों में अपनापन है .

अधूरी कविता -३

जब भी मैं कुछ लिखने बैठूं कलम छिपा लेती ,
होता यदि मैं परेशान तो खूब मजा लेती ,
पर सूरत से जाहिर करती अनजानापन है ।
उसकी आँखों में तिरती नित नयी शरारत है ,
पकड़ी जाती नहीं कभी भी उसे महारत है ,
कोई करे शिकायत तो बन जाती दुश्मन है ।
इतना सब होने पर भी वह अच्छी लगती है ,
करती यों व्यवहार कि छोटी बच्ची लगती है ,
उसका हर दुःख दर्द भिगो देता सबका मन है ।
यदि होती नाराज मनाना हो जाता मुश्किल ,
ऐसी वैसी बात नहीं सह पाता भावुक दिल ,
खाना पीना छोड़ शुरू कर देती अनशन है ।
इसीलिये उसकी हर इक जिद पूरी होती है ,
पूरी करने की सबकी मजबूरी होती है ,
सम्मोहित कर लेता बातों का सम्मोहन है ।
उसकी प्यारी -प्यारी बातें मन हर लेती है ,
कैसा भी हो जख्म ह्रदय का झट भर देती है ,
करती है मुस्कान सदा अमृत उत्सर्जन है ।
एक सांस में जाने कितने प्रश्न किया करती ,
हर उत्तर पर वह कितनी ही बहस किया करती ,
उसकी प्रखर बुद्धि पर करता मन अभिनन्दन है ।

सोमवार, 19 जुलाई 2010

अधूरी कविता -2

आप सभी को मम्मी ने आने को बोला है ,

शाम हमारे साथ डिनर खाने को बोला है ,

बड़े अनुग्रह से पापा ने किया निवेदन है ।

मैंने पूछा नाम तो थोडा सा शरमाई वो ,

उसे बुलाया पास तो आने में सकुचाई वो ,

बड़ी देर मैं नाम बताया उसने 'गुंजन ' है ।

बेलन लाकर मैंने जिस क्षण उसे थमाया था ,

बड़ी अदा से लेकर बेलन उसने मुस्काया था ,

थैंक्यू कहकर उसने फैंकी तिरछी चितवन है ।

समझी जबतक बात रह गया मैं इकदम हैरान ,

कहने को कुछ कहता जबतक हो गई अंतर्ध्यान ,

पीछे अपने छोड़ गई वो इक मन - मंथन है ।

कुछ दिन से उसका मेरे घर आना जाना है ,

मेरी बीवी को उसने निज चाची माना है ,

लगता दोनों में कई जन्मों का बंधन है ।

जब भी मिलता समय दौड़कर वह आ जाती है ,

घर में रक्खा भोजन ले खुद चट कर जाती है ,

उस पर चलता नहीं किसी का कोई नियंत्रण है ।

उसकी कोई बात किसी को बुरी नहीं लगती ,

जिस दिन आती नहीं अगर तो कमी बड़ी खलती ,

लगने लगा सभी को उससे इक अपनापन है ।

धीरे धीरे वह मुझसे भी बात लगी करने ,

बिन मौसम दिन रात जूही के फूल लगे झरने ,

नाच उठा घर आँगन सारा हर्षित कण -कण है .

अधूरी कविता 1

यारो अब तक सुलझ सकी न मन की उलझन है ।
पागल लडकी है या लडकी का पागलपन है ।
मेरे घर के ठीक सामने वाला है इक घर ,
जिसको मैं देखा करता था बंद पड़ा अक्सर ,
करने लगा अचानक इक दिन वह स्पंदन है ।यारो..
कोई आता कोई जाता दिखती है हलचल ,
कल तक था खामोश वहां अब होता कोलाहल ,
खिड़की दरवाजों पर करती छुन -छुन चिलमन है ।यारो...
जब भी जाती नजर उस तरफ तो ऐसा लगता ,
जैसे कोई छिप छिप कर मुझको देखा करता ,
आखिर हुआ उजागर इक दिन सारा गोपन है .यारो...
छुपा -छपी का खेल खेलने वाली बाला थी ,
मुखड़े पर लावण्य देखने में मधुबाला थी ,
होती थी प्रतीत सादगी का विज्ञापन है । यारो...
यूँ ही इक दिन मेरे घर की कुंडी थी खडकी ,
खोला दरवाजा तो देखि सुन्दर सी लडकी ,
बोली दोनों हाथ जोड़कर ' अंकल बेलन है ? ' यारो...
पूरे घर में इधर -उधर सब बिखरा है सामान ,
बेलन कहाँ रखा ,मम्मी को नहीं ज़रा भी ध्यान ,
इसीलिए मम्मी ने भेजा लेने बेलन है । यारो ॥
पापा के कुछ मित्र शाम को आने वाले हैं ,
रुक सारा दिन कहीं फिर जाने वाले हैं ,
उन्हें डिनर का पापा जी ने दिया निमंत्रण है, यारो...

श्रधांजलि -2

बिना आपके सारा घर लगता था खाली -खाली ।
होंठों पर मुस्कान हमें लगती थी जैसे गाली ,
दिल पर मानों रखा हुआ था पत्थर एक विशाल ।
भगवान् किसी को भी भूले से ऐसा गम न दे ,
घन दौलत दे या न दे पर आँखें नम न दे ,
करे किसी का भी न ऐसा दुःख से बदतर हाल ।
इक दिन तो सबको जाना है रुकना किसी भला है ,
लेकिन कोई समय से पहले जाता क्यों चला है ,
हर वक्त परेशान करता रहता हमको यही सवाल ।
शायद हमसे ही गलती हुई जो बाबा रूठ गए ,
पकडे पकडे हाथ अचानक हमसे छूट गए ,
अब न जाने कौन जनम में संग होंगे हम खुशहाल ।
आज आपको भारी मन से हम करते हैं याद ,
परम धाम दे प्रभू आपको करते हैं फ़रियाद ।
याद आपकी हम रखेंगे दिल में सदा संभाल ।
पुण्य तिथि पर अश्रुपूरित श्रधांजलि देते हैं ,
हमसे जाने लोग आपका नाम वचन देते हैं ,
हमें बिछुड़ने का जीवन भर होगा सदा मलाल .

श्रद्धांजलि -1

हमसे बिछुड़े हुए आपको हुआ है केवल साल ।
पर इस साल के इक इक दिन में कई सदियों का हाल ,
रोज सुबह आती थी यादों का संदेशा लेकर ,
शाम ढले वापिस जाती थी एक दिलासा देकर ,
विधि का लिखा मिटा नहीं सकता कोई माई का लाल ।हमसे ..
आप अभी आने वाले हैं फिर भी सबको लगता ,
जैसे दी आवाज आपने भाव ह्रदय में जगता ,
काश कि यह सब सच हो जाता ,मिथ्या पिछला साल । हमसे...
गुमसुम गुमसुम सी शा - शा हरदम ही रहती थी ,
बेजुबान मासूम जानवर मन ही मन रोती थी ,
' मम्मी ,कहाँ गए हैं बाबा ? ' कहकर बची सोती थी ,
बच्चों के कैसे समझाता क्रूर काल की चाल । हमसे ...
चित्र आपका सम्मुख रख कर मां घंटों बातें कहती थी ,
पथराई आँखों से अविरल गंगा -जमुना बहती थी ,
सबने देखा है मां के अश्कों को होते लाल । हमसे ...
कभी -कभी रोते -रोते दिल पत्थर हो जाता था ,
और कभी पत्थर दिल आंसू बहकर बह जाता था ,
पहले कभी नहीं देखा था दुःख इतना विकराल । हमसे ...
इसी बीच होली आई पर रंग सभी फीके थे ,
भैया डोज पर इन्तजार में बहिनों के टीके थे ,
सबके चेहरों पर ईश्वर ने कैसा रंगा गुलाल । हमसे ...
जगमग -जगमग आई दीवाली ढेरों खुशियाँ लेकर ,
घोर अंधेरों में डूबा था पर बाबा अपना ये घर ,
जलते आंसू के दीपक थे सजे थे गम के थाल .हमसे ...

दुनिया बुरी हो गई

ना जाने क्या हुआ कि दुनिया बुरी हो गई ।
मुंह में जिसके राम बगल में छुरी हो गई ।
जिस मुरली की धुन पर राधा गोपीन नाचीं ,
आज कोलाहल युक्त बड़ी बेसुरी हो गई ।
धर्म कर्म की पृथ्वी जिस पर टिकी हुई थी ,
अपने पद से विचलित सच की धुरी हो गई ।
सारे रिश्ते नाते केवल देह हो गए हैं ,
परिभाषा मन की जब से इन्द्रपुरी हो गई ।
टहनी पर इक कलि भला खिलती भी कैसे ,
माली के हाथों ही घायल पांखुरी हो गई ।
पैर जमा कर जिस धरती पर खड़े हुए थे हम ,
आज अचानक पैरों के नीचे गहरी भुरभुरी हो गई ।
जिस प्रवृत्ति के लिए जहां ने जाना हमको ,
जाने किसकी नाहर लगी जो आसुरी हो गई .

जन्म दिन मुबारक हो तुमको शुभम

जन्म दिन मुबारक हो तुमको शुभम ।
तुम्हारी ख़ुशी में बहुत खुश हैं हम ।
हर पल तुम्हारा हो खुशियों भरा ,
तुम्हें दुःख न पहुंचे कभी भी जरा ,
जिन्दगी में न घेरे कभी कोई गम ,
तुम्हें आज आशीष देते हैं हम ।
तुम सदा मुस्कराओ व फूओ फलो ,
सूर्य बन जाओ तुम रौशनी में ढलो,
तोड़ देना सभी का ये झूठा भरम ,
एक लडकी यों होती है लड़के से कम ।
जो उठाओ कदम तो कदम ठोस हो ,
अपने अच्छे बुरे का तुम्हें होश हो ,
ताकि तुमको खुद ही से न आये शर्म ,
हर कोई तुम्हारा करे वैलकम ।
करम ऐसा करो खुद की पहचान हो ,
नाम ऊंचा करो खूब सम्मान हो ,
लेखकों की चले जब कभी भी कलम ,
कागजों पर लिखे बस शुभम ही शुभम ।
बस यही है दुआ बस यही इल्तजा ,
हम सभी की है तुम्हारी राजा में राजा ,
तुम मिलो हम सभी को यूँ ही हर जनम ,
प्यार से हम बुलाएं शुभम ओ शुभम .

कप्तान की बातें

याद आएँगी हमें कप्तान की बातें ।
नेक दिल सच्चे भले इंसान की बातें ।
डूब जाते थे सदा जो काम में अपने ,
पर नहीं डूबे कभी भी जाम में अपने ।
मस्त मौला आदमी की आन की बातें ।
खेल का मैदान हो या रेल का परिसर ,
बात समता की कही हर हाल में अक्सर ।
प्यार ही बांटा न की अपमान की बातें ।
बात दुःख -सुख की रही या बात पीने की ,
साथ मरने की रही या साथ जीने की ,
ईमान से करे रहे ईमान की बातें ।
जानते थे ये सभी को नाम से उनके ,
साथ चल देते हमेशा काम से उनके ,
अजनबी के साथ भी पहचान की बातें ।
अज्ज जब पहना रहे हैं हां फूलों का ,
एक विनती है न रखना ख्याल भूलों का ,
माफ़ कर देना सभी विषपान की बातें ।
आप जैसे भी जहां जिस हाल में भी हों ,
उम्र के गुजरे हुए जिस साल में भी हों ,
काम आयें आपके भगवान् की बातें .

सच कहने का अभ्यास करें

आओ हम तुम मिल जुलकर सच कहने का अभ्यास करें ।
न तुम झूठे न हम सच्चे इस सच पर विश्वास करें ।
शब्द -शब्द की अपनी इक तासीर हुआ करती है ,
जाने अनजाने जो सबकी रूह छुआ करती है ,
धूप -छाँव से इन शब्दों का पल पल हम अहसास करें ।
कल की बातों में से अच्छी बातें अपने पास रखें ,
मन में जो कडुवाहट घोलें उनसे हम संन्यास रखें ,
शब्दों को आकार मिले नव शब्दों का विन्यास करें ।
हर पल का मकसद केवल सच कायम करना भर है ,
वर्ना तो यह सारी दुनिया शब्दों का इक घर भर है ,
सब्दों के इस घर में कुछ पल खुशियों के संग वास करें ।
नए वर्ष में नयी सोच की ऐसी हम शुरुआत करें ,
शब्दों को बस प्यार मिले कुछ शब्दों की हम बात करें ,
नए शब्दों की संरचना में नित नए शब्द समास करें .

रविवार, 18 जुलाई 2010

हम क्या कोई पत्थर हैं

हम क्या कोई पत्थर हैं देखें और कुछ न कहें ।
आओ हम बात करें बैठे यों चुप न रहें ।
मंदिर की , मस्जिद की , गिरजा ,गुरुद्वारों की ,
जन्म की मृत्यु की जीतों की हारों की ,
बहते लहू की सरयू किनारे की ,
लहलहाती फसलों की बंजर फुल्वारे की ,
देश की अखंडता की धर्म के पाखंड़ताकी ,
वोटों की नोटों की ,बड़े और छोटों की ,
अपने परायों की ,एकता के उपायों की ,
प्रेम भाई चारों की वादों की नारों की । आओ हम बात करें ...
हत्या ,डकेती की ,बलात्कार ,फिरोती की ,
बारूदी ढेरों की ,गीदड़ और शेरोन की ,
शहरों की जंगल की ,मंगल और अमंगल की ,
नारी के शोषण की ,दलितों के पोषण की ,
दुश्मन की ,यारों की ,देश के गद्दारों की ,
जनसंख्या वृद्धि की कल के सुख सम्रद्धि की .आओ हम बात करे ...
स्वतंत्रता और शहीदों की भटकते हुए बदनसीबों की ।
देश और विदेशों की ,बढ़ते उपनिवेशों की ,
शक्ति प्रदर्शन की ,रेडिओ दूरदर्शन की ,
प्रजातंत्र बहाली की ,शेयर और दलाली की ,
शिक्षा और गरीबी की ,दूरी और करीबी की ,
धरती और अम्बर की ,लाटरी के नंबर की ,
आरक्षण और मंडल की ,राजनीतिक कमंडल की ,
राज्यों के निर्माण की ,आदमी के निर्वाण की । आओ हम बात करें ...
हिंदी के वकास की ,सरकारी प्रयास की ,
कर्मचारी -हड़ताल की ,जांच और पड़ताल की ,
पूँजी और निवेश की ,विदेशी प्रवेश की ,
प्रेस पर प्रहार की ,निर्दोषों के संहार की ,आयोग के नतीजों की ,चाचा और भतीजों की ,
हवाला और घुटाला की ,चारा और निवाला की ,
न्यायालय के अपमान की ,संसद के सम्मान की । आओ हम बात करें ....

जाके पिया मोह भूल न जाना

जाके पीया मोह भूल न जाना .सावन बीत न जाए आना ।
तुम बिन सब जग सूना लागे ,
पास तुम्हारे मन मेरा भागे ,
तुब बिन नहीं मेरा और ठिकाना ।
जाके पिया ...
देखो साजन बैरी जमाना ,
याद तुम्हारी एक बहाना ,
सौतन के भरमा न जाना ।
जाके पिया ...
गीत विरह के जब मैं गाऊं,
प्रीतम जिस दिन तुम्हें बुलाऊं ,
छोड़ के सब कुछ तुम चले आना ।
जाके पिया ...

दो रंगी दुनिया

दो रंगी दुनिया में रोज यही होता है ।
कोई कहीं हँसता है कोई कहीं रोता है ।
किसी को फूल मिले शूल किसी दामन में ,
कहीं पे दीप जले दिल तो किसी आँगन में ,
कोई पतझड़ कहीं गुलजार कोई होता है । दो रंगी ...
कोई महफ़िल को तलाशे ,तो कोई तन्हाई ,
कोई चुपचाप चला साथ कहीं शहनाई ,
कोई आबाद तो बर्बाद कोई होता है .दो रंगी ...
कोई गिर कर उठे तो उठके कोई गिरता है ,
कोई मरकर कोई ज़िंदा लाश फिरता है ,
कोई शोले सा जला शबनम से कोई होता है .दो रंगी ...
कोई पीता है जहर कोई पिए पैमाने ,
अपने देते हैं दर्द प्यार मगर बेगाने ।
कोई शैतान तो भगवान् कोई होता है .ओ रंगी ..

होंठ थे उसके सिले

डबडबाई थी नजर और होंठ थे उसके सिले ।
वह मेरे नजदीक आई लेके जब शिकवे गिले ।
कंपकंपाते जिस्म के संग चीखकर इक दम कहा ,
बेमुरव्वत ,बेवफा तेरे लिए सब कुछ सहा ;
किन्तु तूने दे दिये मुझको ग़मों के सिलसिले ।
ये बहारें ,ये फिजायें ,ये चमकते छंद तारे,
सब के रहते भी फिरे हम दरबदर मारे -मारे ;
खोज में तेरी मेरे हैं पाँव के तलुवे हैं छिले ।
रात दिन कैसे गुजारे हैं जुदाई में तेरी ।
तू न आया लौट कर लेने खबर अब तक मेरी ;
एक दम मुरझा गए हैं फूल खुशियों के खिले .

शनिवार, 17 जुलाई 2010

कुछ ये भी -2

यहाँ प्रेम के गीत हैं प्रेम भरा संगीत ।
प्रेम गीत गर गाओगे मिल जाएगा मीत ।
मिल जाएगा मीत कई जन्मों जन्मों का ,
खुशबू से लबरेज हवा का जैसे झोका .

कुछ ये भी

चाहे जितने भी रहो श्रीमान जी दूर ।
पास मेरे ही आओगे होकर के मजबूर ।
होकर के मजबूर हार कर अपने दिल से ,
जाने का न नाम कभी लोगे महफ़िल से ।
प्रायः होते ही रहे वैचारिक मतभेद ।
यदि गलत कुछ कह दिया व्यक्त किया न खेद ।
व्यक्त किया न खेद यही थी भूल हमारी ,
वर्ना सहते क्यों सदा तकलीफें भारी ।
मन के अन्दर प्रेम था पर बाहर था रोष ।
सच था यों संज्ञान में फिर भी थे खामोश ।
फिर भी थे खामोश झूठ खुद ही से बोले ,
पर समझा न कोई बन गए इतने भोले ।
प्रेम समर्पण चाहता स्वार्थहीन निष्पाप ।
बंधन को स्वीकारता बंध जाता मन आप ।
बंध जाता मन आप दासता इसमें कैसी ,
स्वयं नियंत्रित और से ये धड़कन जैसी ।
कोई किसी की याद में नहीं छोड़ता प्राण ।
पर रखता दिल में सदा उसी शख्स का ध्यान ।
उसी शख्स का ध्यान हार तेरी है भारी ,
भुला नहीं पाने की क्यों कर है लाचारी ।

दोहे -14

पढ़ पढ़ तेरी चिट्ठियाँ लगता तुम हो पास ।
दिल को मिला सुकून है जब भी हुआ उदास ।
तेरा मेरा है मिलन ज्यों धरती आकाश ।
दूर दूर रहते मगर हैं क्षितिज से पास ।
ढेरों भेजी चिट्ठियाँ किये सैकड़ों फोन ।
लेकिन तुम हर दम रहे चुप्पी साधे मौन ।
तेरे मेरे बीच में बंधी प्रीत की डोर ।
पड़ने देना मत कभी इसे जरा कमजोर ।
इतने भी न बाम्धिये तारीफों के पुल ।
कि लोगों के सामने जाए हकीकत खुल ।
ऊपर वाले पर जिन्हें होता है विश्वास ।
उन्हें जिन्दगी में वह सदा देता है कुछ ख़ास ।
सच्चाई की राह में कांटे बिछे अपार ।
कर पाते हैं पार वो जिनको होता प्यार .

दोहे -१३

तुमने मुझ पर है किया बहुत बड़ा अहसान ।
अपने दिल में दे दिया जो मुझको स्थान ।
पाकर तेरे प्यार को बदल गई तकदीर ।
खुद ब खुद ही खुल गई तकल्लुफ की जंजीर ।
तुझसे बातें क्या करीं दिल को मिला सुकून ।
सारा ठंडा पद गया दिल में उठा जूनून ।
हर दम प्रभू का ही रहे अपने दिल में ।
फिर देखो कैसे नहीं होता है कल्याण ।
सब कुछ उसके हाथ में जो चाहे वह दे ।
फिर काहे चिंता करे दुःख दे या सुख दे ।
यह दुनियां नाटक बड़ा हम इसके किरदार ।
निर्देशक रब है वही है सबका करतार .

दोहे -12

अपनी -अपनी घडी सभी की वक्त सभी का जुदा जुदा ।
किस वक्त निकाले सूरज चंदा मुश्किल में पद गया खुदा ।
जब से उनकी बन गई बिल्डिंग आलिशान ।
इधर उधर वह खोजते अपनी ही पहचान ।
कर्जा लेकर बढ़ गया उन पर इतना ब्याज ।
अब सब्जी में डालते मुश्किल से वह प्याज ।
वेतन सा काटने लगा जबसे भारी लोन।
अब जल्दी से काटते जब भी करते फोन ।
ना जाने किस दौड़ में शामिल है इन्सान ।
जिससे उसके छीन गई होंठों की मुस्कान ।
अपने हाथों खो दिया उसने मन का चैन ।
इधर उधर अब घूमता होकर के बेचैन ।
तुमसे मिलकर मी गया मेरे दिल को चैन ।
वर्ना तो ये रात दिन रहता था बेचैन ।
जाने कैसी लग गई मेरे दिल को लत ।
इश्क मुहब्बत के सिवा नहीं और चाहत ।
सब कुछ मंहगा हो गया पर सस्ता ईमान ।
बिकने को तैयार सब क्रय करलें श्रीमान ।
तेरा मेरा कुछ नहीं रुपया सब का मी ।
रुपया गर है पास में सबका मन लो जीत ।
भाई भाई के बीच में रुपये की दीवार ।
एक खड़ा इस पार है दूजा है उस पार ।
आकर्षण और प्रेम में बहुत बड़ा है भेद ।
जैसे पुस्तक हो कोई उसके सम्मुख वेद.

दोहे -11

कल की नफरत भूल कर शुरू करें हम आज ।
प्यार मुहब्बत इश्क का एक नया अंदाज ।
आड़ा - तिरछा था सरल सीधा था मुश्किल ।
हर एक ने रास्ता चुना जिसके जो काबिल ।
हमारे पास कहने को बहुत मगर इस पल ।
तुम्हें सुनना हमारा दिन चाहता केवल ।
सबको निज आलोचना लगती बहुत बुरी ।
जैसे दिल को काटती कोई तेज छुरी ।
सबके घर में चल रहे घन घन घन घन फैन ।
जिसको देखो हो रहा गर्मी में बेचैन .

दोहा -१०

चाटुकारिता से भरे सुनकर मीठे बैन ।
फूले फूले फिर रहे अफसर जी दिन रैन ।
केबिन पर पर्दा पड़ा जलती बत्ती लाल ।
ऊपर वाला जनता भीतर के सब हाल ।
टेबिल पर है लग गया फाइलों का अम्बार ।
श्रीमानजी क्या करें पहले है परिवार ।
नहीं किसी की सुन रहे श्रीमान फ़रियाद ।
इन्हें फर्क किस बात का हो कोई बर्बाद ।
बढ़ता जाता मेज पर फाइलों का अम्बार ।
सुबह से लेकर शाम तक लगा हुआ दरबार ।
सरे बाबू मौन हैं खोले कौन जुबां ।
न जाने किस बात पर बरस पड़ें श्रीमान ।
मन में अपने सैकड़ों कुत्सित लिए विचार ।
फिर भी वह हैं चाहते उन्हें करें सब प्यार ।
सूरत से मासूम पर साजिश के उस्ताद ।
जाने कितने कर दिये घर उनने बर्बाद ।
अपनी दौलत का उन्हें रहता बड़ा गरूर ।
लेकिन सबसे चाहते अपनी मदद जरूर ।
तेरे मेरे बीच में राष्ट बड़ा अजीब ।
दूर बहुत रहते मगर लगते बड़े करीब ।
दो दिन गर मिलते नहीं मन होता बेचैन ।
इधर उधर हैं ढूंढते ये बेचारे नैन .

दोहे -9

आँखों में आंसू लिए होठों पर मुस्कान ।
इस दुनिया से कर गए दो प्रेमी प्रस्थान ।
मिलने में बाधक रहा रूढ़ी ग्रस्त समाज ।
जिसको निज कुकृत्य पर आई कभी न लाज ।
अंग्रेजी में भेजता मुख्यालय परिपत्र ।
फिर हिंदी कैसे भला फैलेगी सर्वत्र ।
मंदिर में अल्लाह नहीं न मस्जिद में राम ।
सबका मालिक एक है ये कैसा पैगाम ।
अलग अलग हैं रास्ते अलग अलग हैं नाम ।
सजदा सब उसको करें पर सजदा बदनाम ।
सबके अपने कायदे अपने ही क़ानून ।
हर मजहब पर नाम पर होते लाखों खून ।
मन माफिक मिलता नहीं कभी कभी किसी को प्यार ।
कभी मिले इनकार तो कभी मिले इकरार ।
इस दुनिया में प्यार का नहीं जरा भी मोल ।
लगे सुहाना इस तरह बजे दूर का ढोल ।
सब कुछ हासिल है यहाँ सिवा प्यार के बोल ।
पैसे के बल पर सुलभ इसका करना मोल ।
दुनियां में जो ढूंढते अब भी सच्चा प्यार ।
उनकका जीवन व्यर्थ है जीना भी बेकार .

दोहे -8

रिश्ते सारे हो गए वस्तु में तब्दील ।
रुपया जिसके पास था उसने करली डील ।
मन से हर दम पास है तन से मीलों दूर।
मिलने को तड़पें मगर फिर भी हैं मजबूर।
चिट्ठी -पत्री तक नहीं न कोई सन्देश ।
मेरी राशि कुम्भ है उनकी राशि मेष ।
इक दूजे का जुड़ गया जबसे मन का तार ।
फूट पड़ा संगीत नव बजने लगा सितार ।
सूरत देखे हो गया लम्बा अरसा एक ।
अपने अपने दायरे अपनी अपनी टेक ।
मैंने खोली खिड़कियाँ उसने खोले द्वार ।
देखा अब तक प्रेम का ये अद्भुत व्यवहार ।
एक तरफ से छेनता देता दूजी ओर
उसकी कृपा का कभी पाया किसने छोर ।
उन्हें किसी से हो गया निसंदेह ही प्यार ।
वर्ना वह क्यों देखते दर्पण बारम्बार ।
ना जाने किस बात पर वो मुझसे नाराज ।
कसमें वाडे प्यार वफ़ा लगते झूठे आज ।
तन्हाई है आजकल आते हैं वो याद ।
पर उन तक जाती नहीं इस दिल की फ़रियाद ।
छुप छुप कर वो देखते नहीं रूबरू अब ।
उन पर जब से आ गया यौवन बड़ा गजब ।
मेरे दिल में उठ रहा ये कैसा तूफ़ान ।
अपने पर काबू नहीं लगता अब श्रीमान ।
उन्हें न जब तक देख लूँ आता नहीं है चैन ।
उनकी वह ही जानते वो कितने बेचैन .

दोहे -7

जब से माँगा हो गया आपस का वव्हार ।
फीका फीका सा लगे दीपों का त्यौहार ।
एक तरफ है रौशनी तिमिर दूसरी ओर।
दीवाली का रूप ये मन देता झझकोर ।
कुछ बच्चे सहमे हुए खड़े हुए इक ओर ।
लालायित से देखते दीप जले चहुँ ओर ।
दुःख की छाया सुख की धुप ।
प्रभू कृपा के हैं दो रूप ।
दुःख में प्रभू की चाहना सुख में निज अभिमान ।
ऐसे में कैसे मिले खुशियों का वरदान ।
पीले पत्ते पद गए नईं कोंपलें शेष ।
जीवन का सच है यही बृक्ष देत उपदेश ।
आने की जो है ख़ुशी तो जाने का गम ।
वर्ना जीवन तो यही साँसों की सरगम ।
न आने की है ख़ुशी न जाने का गम ।
इससे जो निस्पृह रहे सच्चा साधक सम ।

दोहे -६

बच्ची का क्या दोष है उसका क्या है पाप ।
जिससे न स्वीकारते उसके ही मां बाप ।
पत्थर कैसे हो गया मां का नाजुक दिल ।
अपनी बच्ची की बनी जो खुद ही कातिल ।
बच्ची लावारिश पड़ी रोटी थी नादाँ ।
कुत्ता रक्षक बन गया जैसे हो भगवान् ।
मानव पशु सम हो गया पशु जैसे इंसान ।
कुत्ते के इस प्यार पर मानवता कुर्बान ।
ज्यादा भावुक मत बनो भावुकता बदनाम ।
भावुकता के आये हैं अब तक दुष्परिणाम ।
तुझसे मिलने की लिए मन में छ प्रबल ।
जाने कितने कट गए कल आज और कल ।
रह -रह कर सूरत तेरी मुझको आती याद ।
पर कैसे तुझसे करूँ मैं दिल की फ़रियाद ।
तेरी सूरत पर फ़िदा मेरे मन का चोर ।
चोरी किस तरह से करे पहरे चरों ओर।
मेरे दिल में हो गया जब से उसका वास ।
अपनी मुट्ठी में लगे ज्यों सारा आकाश ।
नफरत के नासूर का एक मात्र उपचार ।
सच्चे मन से सौंपिए औरों का अधिकार .

दोहे -5

इतने वर्षों बाद भी वह आता है याद ।
जिसको देखा था महज हुआ न था संवाद ।
तरह -तरह के खाब हैं तरह तरह के ख्याल ।
तरह तरह की उलझनें उलझे हुए सवाल ।
मेरी आँखों में बसी उसकी ही तस्वीर ।
है मेरा मालिक खुदा वह मेरी तकदीर ।
जो तेरा न हो सका उसकी करके याद ।
रेमूरख क्यों कर रहा निज जीवन बर्बाद ।
पति -पत्नी के बीच में नहीं और का काम ।
सुबह कलह गर हॉट है सुलह होत है शाम ।
आंसू सारे पी गए जज्ब कर गए गम ।
मुस्कानों के साथ साथ जुदा हुए थे हम
मेरी आँखों में बसा जब से उसका रूप
ठंडक बरसाती लगे मई जून की धुप ।
काली नागिन से सदा बिखराए निज केश ।
यौवन की दहलीज पर अब कैसा उपदेश ।
खुली हुई है खिड़कियाँ खुला हुआ है द्वार ।
आने वाला आएगा लगता है इस बार ।
हरी भरी हैं वादियाँ खिली -खिली है धूप ।
निखरा -निखरा सा लगे प्रकृति का ये रूप .

दोहे -4

जब भी कोई आयना देखे बारम्बार ।
समझो उसको हो गया अवश्यमेव ही प्यार ।
दिल में अपने पालिए बड़े शौक से गम ।
पर बहने न दीजिये अश्कों को हर दम ।
जब भी दिल के द्वार पर दे कोई आवाज ।
धीरे .धीरे खोलिए रखिये दर की लाज ।
आखिर कैसे हम करें गैरों पर विशवास ।
जब अपनों ही से मिला गैरों जैसा त्रास ।
अपनी पत्नी छोड़ के धरे और का ध्यान ।
ऐसे कवि की कल्पना क्या कहिये श्रीमान ।
अपनों को दुत्कारते बेगानों से प्यार ।
बोलो सभ्य समाज का ये कैसा व्यवहार ।
बेगानों में ढूंढते अपनों सी पहचान ।
अपनों को जब कर दिया बेगाने श्रीमान ।
न ही ली उसने खबर न ही भेजा ख़त ।
फिर भी कम होती नहीं उसके प्रति चाहत ।
उस दिन से फिर न मिले जब से बिछड़े हम ।
इक दूजे से बेखबर किसे ख़ुशी किसे गम .

दोहे -३

देती है तारीफ़ अब रसगुल्लों का स्वाद ।
जिन्हें सुगर का रोग है वह इसके अपवाद ।
अखबारों में आजकल छपा -छपा निज नाम ।
तुकबंदी को कह रहे कविता राधेश्याम ।
शब्दों की जिनको नहीं थोड़ी भी पहचान ।
अपने मुख से कर रहे निज महिमा का गान ।
है तुम्हारे गाल पर जो खूबसूरत तिल ।
ले गया इक दिन चुरा कर मुझ से मेरा दिल ।
साडी पहने सिल्क की पश्मीने का शाल ।
सैंडिल ऊंची हील की हिरनी जैसी चाल
अन्दर से खोखला बाहर से है ठोस ।
देख मनुष्य के रूप को होता है अफ़सोस ।
मानव का है दोगला इस युग में व्यवहार ।
दिल के भीतर है जहर बाहर बाहर प्यार ।
मानव को है चाहिए यदि मानव से प्यार ।
दिल से उसको कीजिये बिना शर्त स्वीकार ।
पूर्ण समर्पण के बिना नहीं प्रेम का बोध ।
चाहे तो कर लीजिये इस पर यारो शोध ।
प्रेम बिना मिलता नहीं ह्रदय पर अधिकार ।
फीका -फीका बीतता खुशियों का त्यौहार ।
सदा नियंत्रित जो रखे होठों पर मुस्कान ।
चेहरे पर गंभीरता सज्जन की पहचान ।
आँखों से लुच्चा लगे चेहरे से मक्कार ।
ऐसों के संग दोस्ती करने पर धिक्कार .

दोहे -2

आलोचक आलोचना जब करते निर्दोष ।
हर रचना के देखते वह केवल गुण दोष ।
पुरस्कार जब से हुए सांठ -गाँठ की देन ।
साहित्य में उनका महत्त्व ज्यों सागर में फैन ।
कविता के अस्तित्व का जबसे उठा सवाल ।
आयोजित कवि - गोष्ठी में मचता सदा बवाल ।
कविता के जबसे हुए अलग -अलग उपनाम ।
कवियों में छिड़ने लगा नित-नवीन संग्राम ।
अपने -अपने ज्ञान पर सबको घोर घमंड ।
मौक़ा पाकर दे रहे कवि इक दूजे को दंड ।
कविता का जबतक कवि जानेगा नहीं मर्म ।
कविता करने का नहीं वह अपना सकता धर्म ।
जो रचना आनंद दे हरे और का दुःख ।
वह कविता सर्वोच्च है कालजयी प्रमुख ।
व्यलती से रचना बड़ी या रचना से व्यक्ति।
यह उत्तर बिलकुल सरल जिसकी जितनी शक्ति।
भाषा -शैली से बड़ा अभिव्यक्ति का मान ।
बिन दोनों के पर नहीं रचना की पहचान .

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

दोहे -१

जिन्हें नहीं सुरताल का किंचित सा भी ज्ञान ।
उनको भी मिलने लगे तिकड़म से सम्मान ।
जिसकी जैसी गायकी उसकी वैसी तान ।
मत तौलो इक बाँट से सबको एक समान ।
किसकी क्या उपलब्धियां किसका कितना ज्ञान ।
पुरस्कार देते समय सदा रहे यह ध्यान ।
हर पद की महिमा अलग हर पद का निजमान।
हर पद की गुरुता अलग हर पद का स्थान ।
जब भी कोई संस्था दे कोई सम्मान ।
व्यक्ति के कृतित्व को बारीकी से छान ।
पुरस्कार से यों कोई होता नहीं महान ।
हो सकता है भूल से पर उसका अपमान ।
श्रोताओं का भूल से मत समझो कम ज्ञान ।
रचना की बारीकियां लेते हैं पहचान ।
रचनाएं भाषण नहीं न जादू का खेल ।
श्रोतागण होकर विवश जिसको लेंगे झेल ।
अच्छा लिखने की जगह मन में लिए छपास ।
इक दिन में हैं चाहते छूना ये आकाश ।
पढने की फुर्सत नहीं न लिखने का अभ्यास ।
प्रस्कार के वास्ते करते सतत प्रयास ।
आयोजन की खोज में संचालक बेचैन ।
गली -गली में घूमते बेचारे दिन रैन .

मन कब तलक बहलायेगा

चाँद के प्रतिबिम्ब से मन कब तलक बहलायेगा ।
उम्र मुट्ठी में पकड़ कर किस तरह रख पायेगा ।
एक दिन हो जायेगा जब स्वप्न भंग तेरा अचानक ,
अपनी ही परछाईं को न साथ अपने पायेगा ।
माना वैभव आज तेरे दर पे दस्तक दे रहा ,
और तू मदमस्त होकर आसमान छु ले रहा ,
किन्तु दौलत ने बताओ साथ हरदम कब दिया है ,
आदमी को आदमी से ही जुदा इसने किया है ,
फिर तेरा इसके प्रति मोह करना क्या उचित है ,
ये अमूल्य जीवन भी क्या पाया किसी ने अनवरत है ,
इसलिए जब उम्र के सोपान अंतिम तै करेगा ,
भीड़ में रहकर भी तू खुद को अकेला पायेगा ।
आज तू प्रमाद में यों खुद को ही भूला हुआ है ,
पाके बस इक तुच्छ सी उपलब्धि पर फूला हुआ है ,
किन्तु तूने ये न सोचा दृष्टि के कुछ पार भी है ,
देह की आसक्तियों में जिदगी की हार भिया है ,
इसलिए जब आईने से सामना होगा तेरा ,
अपनी ही सूरत से फिर कब तलक कतरायेगा ।
आज तू उड़ने लगा जैसे कोई परवाज है ,
आकांक्षाओं पर यूँ झपटता जैसे तू इक बाज है ,
नाप लेना चाहता है एक पल में आसमां,
मार देना चाहता है अपनी अंतरआत्मा,
किन्तु जब उड़ता हुआ एक दिन थक जायेगा ,
एक क्षण में इस जमीं से आ के तू टकराएगा ।
इसलिए कहता हूँ तुझसे खुद को पहचानो जरा ,
लक्ष्य अणि जिन्दगी का देख सन्धानो जर ,
और अपने आप को कुछ इस तरह मुखरित करो ,
चारों दिशाओं में तेरी ही कीर्ति का यशगान हो ,
वर्ना हाथों में तेरे वक्त फिर न आएगा ,
शेष कुछ भी न बचेगा उम्र भर पछतायेगा .

मैं आवारा बदली थी

जब नीला था आसमान मैं आवारा बदली थी ।
फूलों के मौसम में मैं ,इक खिलती हुई कली थी ।
झरनों के सरगम में मेरे हंसने के ही स्वर थे ,
दीपक की लौ जैसे मेरे जलते हुए अधर थे ,
काजल की रेखाओं में मैं तिल तिल खूब जली थी ।
सागर के तट पर रहकर भी जन्मों की प्यासी थी ,
खुशियों के आँगन में मेरे छाई गहन उद्दासी थी ,
दिन महीने ,महीने वर्षों में मेरी उमर ढली थी ।
कल तक लगे जहां पर मेले आज वहां वीरानापन है ,
अपनों की आँखों में तिरता दीखता इक बेगाना पन है
होकर अब सुनसान पड़ी है कल तक जो आबाद गली थी .

रात के अंधेरों में जन्मी कहानी

रात के अंधेरों में जन्मी कहानी ।
महलों का राजा और झुग्गी की रानी ।
जीवन की उजड़ी हुई खंडहर हवेली ,
भटकती है जिसमें इक चाहत अकेली ;
किस्मत के टूटे झरोखे और आले ,
चिंता की मकड़ी ने तान दिये जले ,
हड्डी के ढांचों में शेष है निशानी ।
चिथड़ों में लिपटाए गदराया यौवन ,
देखकर सिसकता है धुंधलाया दर्पण ,
सीने में दफनाये सपनों की लाश ,
होठों पर हँसता है कुचला परिहास ,
चांदी के सिक्कों में बिकती जवानी ।
मजबूरियों के दुशासन हैं घेरे ,
अबला की इज्जत के बनके लुटेरे ,
पांडवों ने सदियों से द्रोपदी है हारी ,
रावण के चंगुल में सीता बिचारी ,
बहाती है आँखों से विरहा का पानी .

मन ही मन -17

जब तक मंजिल नहीं आ जाती /चलना ही होगा /
थकाना ही होगा वहां तक /
जब तक थक नहीं जाते /
चलने और थकने का अटूट रिश्ता है ।

प्राण वहां रहते हैं /
जहां रहते हैं अहसास /
और अहसास तुम्हें देखने पर /
प्राण आते हैं अहसासों में तब ।

भरोसा ही तो है अपने भरोसे पर /
तुम भी मुझे प्यार करते हो /
जैसे मैं तुम्हें करता हूँ ।

तुम भी सोचती होगी /
जैसे मैं सोचता हूँ /
तुम क्या सोचती हो ।

अभी अभी कोई गया है यहाँ से /
गंध बसी हुई है माहौल में /
खामोशी व्याप्त है सागर में ।

उसने एक बार होंठों से चूमा था /
अब कहाँ रह गया हूँ मैं /
वैसे का वैसा .

मन ही मन -16

उँगलियों में उंगलियाँ डाले /
न जाने कितनी बातें की थीं /
अब तो उंगलियाँ बातें करतीं हैं /
उन दिनों की ।

कसे तारों पर साज बड़ी /
सावधानी से बजाया जाता है /
पर सावधानी कहाँ रह जाती है /
तार कसते हुए ।

जोर से खिलखिला उठे फूल /
अब झरना ही था उन्हें /
झर गए जमीन पर ।

पदचाप कितना कुछ कह जाती है /
सीढियां चढ़ते उतरते वक्त भी ।

होंठों तक पहुंचा ही कहाँ था अहसास /
दिलों तक उतरा ही कहाँ था अहसास /
यही अहसास सताता है आज तक ।

घुली हुई है जेहन में यादों सी /
रूठी हुई है आज तक टूटे हुए वादों सी /
कहीं तो होना था उसे /
मेरे इर्द गिर्द .

मन ही मन -15

अभी भी बाकी है बहुत कुछ कहना /
कुछ भी बाकी ही कहाँ रहा /
बहुत कुछ कहने के बाद ।

जब तक लिखी जाती रहेगी /
पूरी न होगी /
अधूरे काम पूरे ही कहाँ होते हैं ।

तुम धूप भी नहीं /
तुम छाँव भी नहीं /
बरसात भी तो नहीं /
भीग न जाता मैं ।

न जाने क्यों रात छोटी /
और दिन बड़े लगते हैं /
तुम नहीं होते हो /
तब ऐसा तो नहीं लगता।

पन्नों के बीच रखा सूखा फूल /
न जाने कितने दिनों को /
हरा कर देता है ।

खामोशियाँ कभी तो टूटेंगीं /
श्मशान भी कहाँ चुप रहता है सदा .

मन ही मन 14

प्रतीक्षा कितनी अच्छी लगती थी तब /
प्रतीक्षा अब अच्छी नहीं लगती /
अब किसी की प्रतीक्षा भी तो नहीं ।

चिंगारी सी पैदा की थी तुमने /
जल रहा हूँ मैं सूखी लकड़ियों सा अब ।

रात दिन महसूस करता हूँ उसे /
उसके सिवा महसूस ही नहीं होता कुछ/
कुछ भी तो नहीं मैं ।

कितने व्यर्थ से लगे हैं /
दिन रात सुबह शाम /
इनके लिए किसी का होना /
कितना जरूरी है ।

हर एक लहर छोड़ जाती है /
किनारे पर दुःख /
किसी दिन खुद बहा भी /
ले जायेगी तूफ़ान में सब का सब।

जाकर भी कहाँ जा पायीं तुम /
यहीं तो हो हर पल /
न होकर भी मेरे साथ ।

कितनी भारी लगती है उदासी /
उस समय और भी /
जब उदासी नहीं होती .

मन ही मन -13

औरत एक किताब होती है /
सभी कहते हैं /
अक्सर हम यह गलती करते हैं /
जहां औरत होनी चाहिए /
वहां किताब रख देते हैं /
जहां किताब होना चाहिए वहां औरत ।

पहले बोले बिना रहा नहीं जाता था /
अब रहा जाता है बोले बिना /
शब्द कितने व्यर्थ हो जाते हैं /
अंतराल में ।

चाँद हँसता है रात भर /
पहले भी हँसता था /
जब हम हँसते थे /
अब हम नहीं हँसते /
चाँद हँसता है हम पर ।

सभी कुछ तो वही है /
हम भी वही तुम भी वही /
आखिर हमारे बीच क्या बदला है /
शायद हवा ।

सड़क कितना भ्रम पैदा करती है /
जैसे चलती हो /
जब इसका प्रयोग चलने के लिए /
नहीं करता है कोई .

मन ही मन -12

तुम्हारे होठों से पिया था अमृत /
घुल गया जिन्दगी में /
विष की तरह /मरने को ।

पत्तियाँ होती ही हैं झरने के लिए /
ठूंठ रहते खड़े हरे होने की आस में ।

अभी -अभी कोयल कह कर गई है /
वसंत फिर आयेगा /
आखिर कितने बसंत ।

कितना शंकित रहता है प्यार /
पाने के बाद /पाने के पहले /
कितना विशवास था ।

कितनी तपती है जमीन /
दिन भर जून में /
जैसे तपती है देह विरह की आग में ।

एक नजर ही तो होती है /
बांधे रहती है कच्चे धागे सा /
रिश्तों को .

मन ही मन -11

सुगंध की तरह फ़ैल न जाता /
काश खिला भी होता कभी /
फूल सा ।

पुनर्जन्म के भरोसे कितना कुछ /
झेल लेते हैं आज का /
पुनर्जन्म पर सभी तो विश्वास/
नहीं करते ।

घटाएं एक साथ हर जगह तो नहीं बरसतीं /
घटाएं हवा के संग चलतीं हैं /
हवा भी तो एक साथ नहीं बहती हर जगह /
फिर तो तुम्हारी मजबूरी है ।

भला अपने को देखना आईने में /
कितना आश्वस्त करता है खुद /
आईने कहाँ आश्वस्त होते हैं खुद ब खुद ।

पीना भी कितना न्रार्थक होता है /
जब तलक होश खो न जाये /
तुम्हें पाकर होश ही कहाँ रहा पीने का ।

हम कहाँ खुल कर मिलते हैं /
उघडते पर्त दर पर्त /
प्याज की तरह आंसुओं के साथ .

गुरुवार, 15 जुलाई 2010

मन ही मन -10

होंठों पर खामोशी चटक जाती है /
ठीक धरती की तरह सूखा पड़ने पर /
दर्द बहने लगता है बाढ़ सा /
तट बंधों को तोड़कर ।

न जाने क्यों लोग उसे /
पाना चाहते हैं /
जिसके खोने का डर /
हमेशा रहता है ।

गीली लकड़ियों की तरह जलाते लोग /
महज धुधियाने के लिए ही /
तो नहीं होती जिन्दगी ।

खुले दरवाजे पर पर्दा /
कितना रहस्मयी होता है /
रहस्य होते ही हैं परदे में ।

जाते -जाते मुस्कराना धीमे से /
सारी उम्र के लिए कितना बड़ा /
आश्वासन होता है आने का /
आश्वासन होते ही हैं उम्र भर के लिए ।

आप ,आप जैसे कहाँ होते हैं /
लोग जैसा कहते हैं /
आप वैसे होते हैं ।

हरियाली कहाँ हरदम हरियाली रहती है /
घटाएं भी कहाँ हरदम बरसतीं हैं /
मौसम तो बदलते ही हैं वक्त की तरह आदमी के .

मन ही मन -9

फूल खिलते हैं मुरझाते हैं /
बिलकुल एक जिन्दगी की तरह /
आदमी की ।

मानना चाहो तो मानेगा कैसे /
बच्चों की तरह जिद किये है /
भला बच्चे आसानी से /
कब मानते हैं ।

कल तुम मेरा सपना थीं /
आज सपने में तुम हो ।

भूल सकता हूँ तुम्हें /
यदि याद न आने का वादा करो /
तुम वादा कभी नहीं करतीं /
जानता हूँ ।

मैं हमेशा एक गीत सुनता हूँ /
पता नहीं किसी और को /
क्यों नहीं सुनाई देता मेरी तरह ।

तुम सावन भादों के आंसू बहती रहीं /
और मैं आसिक गरीब की झुग्गी की तरह बह गया /
जब तुम विदा हुईं थीं .

मन ही मन -8

सब कुछ भूलने पर ही तो /
तुम्हें याद करता /
सब कुछ तभी भूल पाता /
जब तुम्हें याद करता ।

तुम पुकारते ही नहीं हो /
वर्ना मैं आ न जाता /
न जाने के लिए /
बदनसीबी -सा ।

सपना हकीकत लगता है /
और हकीकत सपना /
आखिर दोनों के बीच /
आदमी महसूस क्या करता है ।

तुम वह बिलकुल नहीं कहतीं /
जो मैं सुनता हूँ /
मैं वो नहीं सुनता हूँ /
जो तुम कहती हो ।

जमीन पर खड़े होकर /
उड़ना चाहता था /
और उड़ते हुए जमीन /
तलाश रहा है वो ।

बच्चे बहुत रोते हैं /
और रोने के लिए /
बच्चा होना जरूरी है /
बड़े कहाँ रो पाते हैं बच्चे की तरह .

मन ही मन -७

वह मुस्काया था शिशु -सा /
रोया भी तो था शिशु की तरह /
न जाने अपने आप क्यों हँसे /
रोते हैं ये शिशु ।

धडकनें बिलकुल काबू में नहीं रहतीं /
जब कोई चला जाता है /
बिलकुल पास आकर ।

नींद आते ही जाग जाता हूँ /
जागते ही नींद आने लगती है /
अजब जिन्दगी है प्यार की ।

जिस्म को तलाश थी रूह की /
रूह थी /
कि जिस्म की तलाश में /
रूह ही अब तक ।

मौन भी चीख पड़ता है कभी -कभी /
मौन रहकर /
मगर चीख घुट कर रह जाती है ।

हर बार एक शक सा रहता है /
शक न होते हुए भी /
ऐसा क्यों होता है किसी के साथ ।

यकीं करते करते अब कहाँ रहा यकीन /
वर्ना यकीं भी कोई करने की चीज है /
यकीं तो होता ही यकीं है .

मन ही मन -6

अकबका जाना उसके आने से /
छटपटा जाना /
जाने से उसके /
खुला दरवाजा इसी लिए तो है ।

अजनबी की तरह /
एक दुसरे को देखना /
कितनी पीड़ा होती है /
कुछ न कह पाने में ।

किसी और के साथ उसे देखना /
खुद को अनदेखा करना आईने में ।

उसके साथ पूरी रात काट कर भी /
रात काटी सी नहीं लगती ।

तुम इतनी सर्द भी तो नहीं /
कि पास आऊँ /
तुम इतनी गर्मभी तो नहीं /
कि दूर जाऊं /बरसात भी तो नहीं कि भीग जाऊं ।

खुद ही बनाया वीराना /
कहाँ दूर होता है अपने ही हाथों /
जलती चिता से कब जीवन /
आया है वापिस ।

मन ही मन -5

हर रंग फीका है /
उसके रंग के आगे /
पता नहीं वैसा रंग /
कौन सा रंग है ।

जितना भी भरा होता है /
खाली रह जाने को /
कर नहीं परा है पूरा कभी ।

फैला हुआ अकेलापन /
कभी इतना गहरा हो जाता है /
कि उफनने लगता है /
लावा की तरह भीतर ही भीतर ।

गीली लकड़ियों की तरह /
धुधियांती रहती हैं /
जब तक कि सूख नहीं जाती /
जलने के लिए ।

सुबह शाम कहाँ एक सी होती है /
हमारी तुम्हारी तरह ।

क्या फर्क पड़ता है /
पात्र की तरह /
तुमने मुझे भरा /
या खाली किया ।

न तुम तस्वीर थीं /
न तस्वीर तुम/
तुमसे घर था /
तुम नहीं घर से .

मन ही मन -4

बस्तियां उजड़ जातीं हैं /
लोग बसाने के जड़ दो जहद में /
भूल जाते हैं /
उजाड़ने वाले का नाम ।

अपना होकर भी अपना न था /
किसी का होना तो होना ही न था ।

अँधेरे में चमकती हैं /
दीवारें घर की अकेले में /
हर तरफ झिलमिला उठता है /
तुम्हारे साथ गुजारे हुए पलों का ।

गुनगुनाना कोई गीत /
वक्त बेवक्त /
अपने होने के अहसास को/
खुद अहसास कराता है ।

जो कुछ न कर सका /
न जाने क्यों /
खारिज कर देता है /
कुछ भी किये को ।

यह पागलपन नहीं तो क्या है /
हर एक चेहरे में उसी को /
तलाशना जो /
दूसरा हो ही नहीं सकता .

मन ही मन -3

बरसों बाद हम करीब बैठे /
बरसों बाद बातें भी की
मगर लगा /
आत्मा कहीं भूल आये हैं ।

प्यार करने के लिए चाहिए /
जितना साहस /
उससे भी कठिन है किसी से /
नफरत करते रहना ।

प्यार की अग्नि में /
उड़ जाता है /
वाष्प बन कर /
नाराजगी का पानी ।

वह कोई सैलाब था /
मगर ठहरा नहीं /
काश रेगिस्तान भी /
न ठहरा होता ।

धुनें कितनी भी सघन हों /
टूटे हुए साज पर /
बजाई नहीं जातीं ।

किसी के कहने से क्या होता है /
हम तो हम हैं /
तुम्हारी तुम जानो ।

दूर तक जाती हुई सड़क /
अचानक जब मुड जाती है /
हमेशा लगता रहता है /
उधर से कोई आने वाला है .

मन ही मन -2

उसके होठों पर अमृत /
ही अमृत फैला था /
मैं भला कैसे पी सकता था /
विषैले होठों से ।

हर तरफ उसे ही /
महसूस करना /
साँसों में उसकी ही गंध /
मगर सांस भी तो सांस भर है ।

हर तरफ एक मधुर संगीत /
फैला है दिगदिगान्तर /
भ्रम ही तो है सुनाई देना /
अपने सिवा ।

घाव भरने से पहले /
अभी दे सकते हो /
नया घाव /
घावों के लिए भी तो /
चाहत जरूरी है ।

ऊबड़ खाबड़ जमीन पर /
लहुलुहान होते नंगे पाँव /
की तकलीफ हर लेता है ये प्यार /
अनास्थिया सा ।

आग तो आग है /
भीतर भी आग /
बाहर भी आग /
आग ,ठंडी नहीं होती .

मन ही मन -१

प्रायः ऐसा क्यों होता है /वह कभी नहीं सुनता /
जिसके लिए की जाती है प्रार्थना /
लिखी जाती है गजल ।

फूल होने के खतरे से /
अनभिज्ञ है कली /
कमजोर उंगलियाँ भी /
मसल सकती हैं उसे ।

कापसे सिलती हुई बीवी /
के बगल में बैठ कर /
कितना मुश्किल होता है /
कोई कविता लिखना ।

तुम्हारा पास बैठ कर मुस्कराना /
स बात की गारंटी है /
कल अकेले में /
मुझे उदास रहना है ।

अभी नाच रहा है जो /गा रहा है गीत/
कल इन्तजार करेगा /
फिर इसी आज का ।

जब तलक तुम देवी /
नहीं बन जातीं /
तब तलक नहीं जुड़ सकते /
मेरे हाथ प्रार्थना में .

चिड़िया

चिड़िया जब सोच लेती है /
बनाना कोई घोंसला /
तो कोई भी पस्त नहीं कर पाता है /
उसका होंसला /
एक बा ऐसा ही हुआ था /
एक चिड़िया ने मेरे घर में /
घोसला बनाना सोच लिया था /
मैंने कई बा उसके घोंसले को /
तहस नहस किया था /
किन्तु उसने घोंसला बनाना नहीं छोड़ा /
इसी बनाने के चक्कर में /
घनघनाते बिजली के पंखे से/
टकराकर अपने प्राण खो बैठी /
परन्तु उसके द्वारा बनाया गया घोसला /
अभी भी विद्यमान है .

एक ही मिटटी से निर्मित ये भवन हैं

बाबरी मस्जिद हो या मंदिर तुम्हारा /

एक ही मिटटी से निर्मित ये भवन हैं ।/

इनमें रहने वालों में झगडा नहीं है /

झगडा करने वाले तो कुत्सित मन हैं ।

कहते हैं कुछ लोग अयोध्या राम की है /

एक अजन्मा पार ब्रह्म घनशयाम की है /

माना दोनों बातें एकदम सही हैं /

गीता में जिसके जनम की बात कही है /

ना ही वह जन्मता कभी /ना मृत्यु पाता/

फिर कहाँ से ये मनुष्य है जन्म गाता ।/
फिर भी माना वह कभी जन्मा यहाँ था /
क्या उस समय मंदिर मस्जिद का पता था /
फिर बताओ दोनों को किसने बनाया /
राम ने या अल्लाह ने खुद बनाया /
गर नहीं तो आदमी की ये कृति हैं ।
भाई चारे प्रेम की आकृति हैं /
उस खुदा या राम की बस याद में हैं /
कितने ही वर्षों से दोनों साथ में हैं /
इनके कण कण में है उसका ही वजूद /
ये बात भी अच्छी ताः सब जानते हैं खूब /
फिर तुम इतिहास का अस्तित्व मिटा कर /
सरयू के किनारे रक्त की नदियाँ बहा कर /
राम या अल्लाह को तुम खुश करोगे /
और मरकर मोक्ष की कल्पना करोगे /
काश तुममें राम का इक अंश होता /
और अल्लाह का भी कोई वंश होता /
इंसानियत कहते हैं किसको जान जाते /
राम अल्लाह एक हैं ये मान जाते /
हिन्दू मस्जिद को बनता /मंदिर बनता मुसलमां/
सदियों तलक देता गवाही ये नीला नीला आसमां.

ना जाने क्यों

ना जाने क्यों मुझे आज तक चन्द्रमा /
प्रेयसी का मुखड़ा न लगा /
मुझे तो बस नाक बहाते /भूख से बिलबिलाते /
नंग -धडंग बच्चे को बहलाने का /
रोटी का टुकड़ा सा लगा ।
मैं ठंडी -ठंडी शीतल बयार में /
कोई रोमांटिक गीत न गुनगुना सका /
क्यों कि रिक्शे में बैठी चार सवारियों को /
जून की चिलचिलाती धूप में /
खींचते हुए रिक्शा चालक का /
यह हवा आँचल न बन सकी ।
मैं सावन की रिमझिम फुहारों में /
भीगती हुई नवयौवना का सौंदर्य /
ना निहार सका /क्यों कि मैं देख रहा था /
बरसात की कलि रात /
और झ्प्दी में भरा पानी /
पानी को हथेलियों से /
उलीचती औरतें ।
मैं अपनी बीवी /प्रेमिका की आँखों में /
तिरता मौन आमंत्रण न पढ़ सका /
क्यों कि मैं पढ़ रहा था /
एक युवती और उसके चारों ओर फैली /
विवशताए ,बिडम्बनाएँ ।
मैं अपने चारों ओर इर्द गिर्द व्यंग /
वक्त्रोक्तियों /घृणा /तिरस्कार को मसूस न कर सका /
क्यों कि मैं महसूस कर रहा था फर्क /
चारपाई पर खांसती ,कराहती बूढ़ीमाँ की /
आवाज में तथा पलंग पर /
बगल में लेटी बीवी के फुसफुसाते स्वरों में .

तुम्हारी शून्य की ओर देखती हुईं आखें

तुम्हारी शून्य की ओर देखती हुईं आखें /
और अपने आँचल में /
सितारों को ताकने की योजना /
उसी दिन शुरू हो गई थी /
जिस दिन तुम्हारे माथे पर /
उभरी थे पहली शिकन /और कंपकपाये थे होंठ /
सहमे थे कदम चलन से /
वक्त की पैनी धा पर /
क्यों कि संस्कारों की /जकड़न महसूस की थी तुमने /
तब पिरो डाले थे मोती /
रिक्त हो गया था आसमान /
सपनों के बादलों से /
चल पड़ा था सिलसिला /
तलाशने का किसी को /तब बेबसी से हताश होकर /
भींच ली थीं मुट्ठियाँ /मुझे ज्यों का त्यों याद है /
क्यों कि मैं साक्षी हूँ गत ,आगत और ....?

जहां हम रहते हैं

इस विशाल धरती जहाँ हम रहते हैं /
इसे हिन्दुस्तान कहते हैं /
जब कभी एकांत में हम /
स्वच्छंद विचरण करना चाहते हैं /
तो रोटी का सवाल पैदा हो जाता है /
मान ,बहिन ,बीवी -बच्चों का ख्याल पैदा हो जाता है /
तब हम नौकरी रुपी सलीब की तलाश में निकल पड़ते हैं /
इस पर लटक जाते हैं /अपने को मसीहा कहते हैं /
इस विशाल धरती को जहाँ हम रहते हैं /
हिंदुस्तान कहते हैं .

कल जब तुम मेरे पास थीं

कल जब तुम मेरे पास थीं /
मैं सदा तुम्हारा अस्तित्व नकारता रहा /
असंभव को अनवरत पुकारता रहा /
पर तुम जो मेरे लिए अनपढ़ गवांर थीं /
कड़ाके की शर्दी में मेरे लिए किसी से पूछ कर /
सलाइयों पर उन से मेरे लिए अपना उपेक्षित /
प्यार बुनती रहती थीं /मरते द्वारा उड़ाया गया उपहास /
चुपचाप सुनती रहती थीं /
तुमने जाने अनजाने में कई बार /
स्वेटर खोल डाला था /मेरी आँखों में /
बस प्यार की एक चमक भर देखने के लिए /
अपनी शक्ति को तौल डाला था /
तुम मेरी हर इच्छा को पूरा करने की /कोशिश करती थीं /
पर मैं तुम्हारी आँखों की नमी का /
अर्थ नहीं समझ पाया था /
क्यों कि तुम मेरे लिए अनपढ़ गवांर थीं ।
और मैं किताबी शिक्षा को महत्त्व देता था /
अर्थ देह की सुन्दरता में करता था /
मैंने तुम्हें कितना प्रताड़ित किया था /
पर तुमने इसे सहज ही लिया था /
और अब जब कि /
तुम मेरे पास नहीं हो /
मुझे बहुत रुलाती हो /
बीते हुए वक्त की याद दिलाती हो /
पर बीता हुआ वक्त कभी वापिस नहीं आता है .

आज फिर मैं तनहा हो गया हूँ

आज फिर मैं तनहा हो गया हूँ /
सोचता हूँ उस दिन की ताः ही /
मेरे सर में फिर दर्द हो /
तुम्हारी नाजुक नाजुक कोमल उँगलियों के /
शीतल शीतल स्पर्श द्वारा माथे को /
धीरे -धीरे सहलाया जाए /
मेरी मदहोश हो रहीं पलकों पर /
कोई सपना सुनहरा सा जन्म ले /
क्यों कि आज फिर मैं तनहा हो गया हूँ ।
मेरे कानों में फिर कोई गीत शहद घोले /
मेरे ख्यालों में पायल की रुनझुन बोले /
और फिर मैं अपने होने के अहसास /
को भूल जाऊं /
क्यों कि आज फिर मैं तनहा हो गया हूँ ।
आज फिर तेरे क़दमों की आहट/
मेरी तन्हाई भंग कर दे /
मेरे मुरझाते हुए जीवन में /
सतरंगी रंग भर दे /
और फिर आकाश को मैं अपनी /कल्पना मैं कैद कर लूँ /
तारों को मुट्ठी में बंद कर लूँ /
वक्त को अपने आगोश में /तंग कर लूँ /
क्यों कि आज मैं फिर तनहा हो गया हूँ .

मुहब्बत के फूल

मुहब्बत के फूल /उपेक्षा के शूल/हर पल का साथ /

दिन हो या रात/चुभन ही चुभन /जख्मी तन मन /

डबडबाई पलक/दर्द की इक झलक/बेरहम बेवफा /

अश्क ही हैं दवा /जहरीली हवा /कौन है हमनवा /

दम तोड़ें सपन /है फुर्सत किसे /जो समझे इसे /

जख्म हँसते भी हैं /फूल रोते भी हैं /

सपने

मुझे बहुत शौक है देखने का सपने ।
वह हों पराये अथवा हों अपने ,
मगर मेरे सपने हमेशा सच होते हैं ,
कुछ मुस्कराते हैं और कुछ रोते हैं ,
कल ही की बात झिलमिलाती रात /
मैंने भींच लिया मुट्ठी में आसमान /
यदि यकीन न हो तो देख लो हथेली पर मेरी /
भींचने के अब तक बने हैं अमित निशाँ .

मैं रात भर सुलगता रहा

मैं रात बहर सुलगता रहा /
ढूंढता रहा वेदना का अर्थ /
बंद कमरे की घुटन के दर्पण में /
उकेलता रहा हर एक क्षण /
तुम्हारे पहलू में गुजरे हुए वक्त का /
बदलता रहा करवटें फूटते रहे फफोले /
तुम्हारे गर्म शीशे की तरह टपकते हुए /
आंसुओं से उभर आये मेरे जिस्म पर /
तुम्हारे दहकते हुए माथे पर बंधा रूमाल /
उपेक्षा के हाथों घोटता रहा मेरा दम/
कुचलते रहे सहानुभूति भरे शब्द /
कांपते हुए शुष्क होंठों के बीच /
होती रहीं घायल धडकनों की आवाज /
टकराकर खामोश दीवारों से /
गूंजता रहा साँसों का शोर /
चीखता रहा मौन /
पहल करे बोलना दोनों में कौन .

कवि

आकांक्षाओं का एक पाषाण /
होना था जिससे नव निर्माण /
आंसुओं से इसे धोकर /
समाज की छैनी की ठोकर /
से तराशा गया विधि के हाथ /
अनेक कलात्मक उभारों के साथ /
इस प्रकार जो प्रतिमा बनाई गई /
विभिन्न दर्द युक्त रंगों से सजाई गई /
रख दी गई दुर्भाग्य के बाजार में /
किसी अच्छे ग्राहक के इन्तजार में .

बुधवार, 14 जुलाई 2010

क़दमों की आहट लगती है

सुनो सुनो ये किसके क़दमों की आहट लगती है ।
क्या तुमको भी सूने घर में घबराहट लगती है ।
भला यहाँ क्या नहीं सभी सुख सुविधाएं है ,
फिर भी ना जाने क्यों मन में उकताहट लगती है ।
हाड कंपकपाने वाली सर्दी जो इस बार पड़ी है ,
पिछली यादों से थोड़ी सी गर्माहट लगती है ।
वक्त ने सारे जज्बातों को राख कर दिया इकदम ,
मगर राख के नीचे भी कुछ सुलगाहट लगती है ।
जाने मैं क्या खोज रहा था अब तक पागल बन कर ,
सोच सोच कर अपने ऊपर झल्लाहट लगती है ।
अब तो खुद के भीतर इतनी आवाजें उठतीं हैं ,
कुछ भी बोलो धीरे से तो चिल्लाहट लगती है .

वैसे औरों की बातों को सुनने का जी करता ,

वर्ना अपनी बात कहो तो हकलाहट लगती है .

आते जाते थे

पहले भी तुम अपनी मर्जी से आते जाते थे ।
मगर आज ये शर्त बुलाने की तुमको क्या सूझी ।
आज तलक ये मुझे हमेशा हंसी लबों पर दी है ,
यकबयक ये मुझे रुलाने की तुमको क्या सूझी ।
मैंने तुमको कितना चाह हाथ जिगर पर रखना ,
लेकिन प्यार मीरा ठुकराने कि तुमको क्या सूझी ।
तुम्हें पता है मेरे दिलो पर अब तक क्या क्या गुजरी ,
फिर भी मुझ को और सताने की तुमको क्या सूझी ।
प्यार भरे रिश्तों में तेरा मेरा कब होता है ,
बीच मगर दीवार उठाने की तुमको क्या सूझी ।
मैंने तो इक शमा जलाई थी नफरत के घर में ,
अपने हाथों इसे बुझाने की तुमको क्या सूझी ।
साडी गुत्थी सुलझ चुकी थी रही न कोई बाकी ,
इनको दोबारा उलझाने की तुमको क्या सूझी .

रिश्तों का नाम नहीं होता है

इस दुनियां में कुछ रिश्तों का नाम नहीं होता है ।
ऐसी भी चीजें हैं जिनका दाम नहीं होता है ।
दरम्यान दिलों के जब रिश्ता इक कायम होता है ,
भूले से भी औरों का कुछ काम नहीं होता है ।
एक अजब सी प्यास लबों पर कायम रहती हरदम ,
जिसे बुझाने वाला कोई जाम नहीं होता है ।
इक दूजे के बिना कहीं भी चैन नहीं मिलता है ,
उठता है इक दर्द जिसे आराम नहीं होता है ।
इक बार उठी जो चाह यही आगाज हुआ करता है ,
पर इस चाहत का बेशक अंजाम नहीं होता है ।
दीवानों के दिल पर क्या क्या गुजरा करती है ,
इसका कभी ज़माने को इल्हाम नहीं होता है ।
सारी उमर बिना कुछ बोले ही कट जाती है ,
आता जाता तक भी इक पैगाम नहीं होता है .

मुझे सताने में

तुम्हें भला क्या मिल जाता है बोलो मुझे सताने में ।
एक झलक दिखला कर अपनी यकबयक छुप जाने में ।
तुम ही होते हो परदे के पीछे छुपे हमेशा ही ,
ये महसूस किया है मैंने हरदम आने जाने में ।
वादा करके भी आने का मगर नहीं आते जब ,
आंसू छलक उठा करते हैं धोड़ा भी मुस्काने में ।
तुम आते ही होगे शायद काम आगया होगा कुछ ,
सारा वक्त गुजरता मेरा खुद को ही समझाने में ।
दिन तो कट जाता है फिर भी रात मगर कठिनाई से ,
नींद नहीं आती पलकें थम जाती है झपकाने में ।
इश्क का रोग लगाया तुमने तुम्हें दावा का पता नहीं ,
तुम क्या जानो क्या कर बैठे हो गलती अनजाने में .

मैंने तुझसे प्यार किया तू भी मुझ से कर

मैंने तुझसे प्यार किया है तू भी मुझसे कर ।

दुनियां वाले कुछ भी बोलें नहीं किसी से डर ।

प्यार बिना इस दुनियां में जीना है मुश्किल ,

पैरों की जंजीरों को तू टुकड़े -टुकड़े कर ।

अब तक सपनों ने तुझको कितना तरसाया है ,

खुली हुई आँखों से देखो उनको तू जी भर कर ।

अब तो दिल की बात लबों पर आ भी जाने दो ,

बे मतलब बेबजह न आहें चुपके चुपके भर ।

प्यार पे पहरे बैठाने की रही रवायत है ,

इन पहरों से बाहर आने का जरा होंसला कर ।

कितना सुन्दर मौसम है कुछ इसका लुत्फ़ उठा ,

अपने दामन मेंखुशियाँ जितना जी चाहे भर .

मुरादें पूरी करता है

ऊपर वाला दिली मुरादें पूरी करता है ।
कभी पुकारो पल भर में तय दूरी करता है ।
सारी दुनियां भले छोड़ दे नहीं छोड़ता वो ,
सदा निभाता साथ नहीं मजबूरी करता है ।
कितना भी हो घुला जुबां पर जहर किसी के ,
नाम लबों पर रब का सब अंगूरी करता है ।
ना समझी का चाहे कितना घना अँधेरा हो ,
अपनी एक नजर से सारा नूरी करता है ।
उसे चाहने वाले उसको ढूंढ़ ही लेते हैं ,
वर्ना तो वह मन हिरना कस्तूरी करता है .
सारे दुःख हर लेता है जो कभी चाहता है ,
जैसे दीगर अपने काम जरूरी करता है .

मेरे मन की मैं जानूं पर तेरे मन की तू .

मेरे मन की मैं जानूं पर तेरे मन की तू ।
मैं तो तुझको छूना चहुँ तू भी मुझको छू ।
तुझको छूकर महक गया है तन मन वैसा ही ,
संदल छूकर हाथ किसी के बस जाए खुशबू ।
मुझ पर तेरा जाने कैसा नशा छ गया है ,
मुझे नजर आती है अब तो तू ही तू हर शू।
जब से तुझको देखा दिल में बेचैनी सी है ,
अपने जज्बातों को रखना मुश्किल है काबू ।
तुम चाहो तो मुझे समझ लो पागल दीवाना ,
लेकिन क्या जानो तुमने क्या कर डाला है जादू ।
वैसे तो मेरी बातों का मतलब है सीधा ,
लेकिन तुम्हें नजर आयेंगे कितने ही पहलू .

दूरी दूर करो

रिश्तों के दरम्यां पनपती दूरी दूर करो ।
अगर करो जो प्यार किसी से तो भरपूर करो ।
शक शुबहा के लिए जरा भी जगह नहीं करना ,
पाक मुहब्बत मिले किसी का बस मंजूर करो ,
इश्क इबादत और मुहब्बत सजदा ये समझो ,
रब खुश जो जाएगा इतना महज हुजूर करो ।
कभी नफा नुक्सान सोचना है फिजूल बातें ,
अपने जेहन में बेमतलब नहीं फितूर करो
प्यार में केवल खोना ही है पाना कभी नहीं ,
पाने की ख्वाहिश में खुद को मत मगरूर करो ।
दुनियां क्या कहती है तुमसे दुनियां को कहने दो ,
रूह तुम्हारी क्या कहती है उसे जरूर करो ।
प्यार का मतलब समझ सकोगे तुम केवल उस दिन ,
जिस दिन अपने दिल को तुम खुद ही मजबूर करो ।
जब भी एक हकीकत बन कर सपना हो जाये ,
आँखों के इस सपने को मत चकना चूर करो .

हम नेता बन जाते

काश कि हम नेता बन जाते ।
जी भर के हम रिश्वत खाते ।
बड़े बड़े बंगलों में रहते ,
कारों कसे हम आते जाते ।
सरकारी ठेकों को अपने ,
रिश्तेदारों को दिलवाते ।
जनता चाहे रोटी मरती ,
हम तो हरदम ही मुस्काते ।
कागज़ पर स्कीमें बनतीं ,
रुपया सारा चट कर जाते ।
जनता को सपने दिखला कर ,
चुनाव समय पर ही हम आते ।
देश भक्ति की बातें करते ,
और कमीशन जी भर पाते ।
हिंदी की करते सदा वकालत ,
बच्चों को इंग्लिश पढवाते .

अजब दस्तूर है

इस ज़माने का चलन में ये अजब दस्तूर है ।
चाहता खुशियाँ मगर गम दे रहा भरपूर है ।
जी नहीं सकता बिना जिसके कभी भी एक पल ,
आज लेकिन कर दिया उसको नजर से दूर है ।
दौड़ कर अपने गले से जो लगाता था कभी ,
अब नहीं मिलता न जाने क्यों हुआ मजबूर है ।
कामयाबी पर मिली है कामयाबी इस कदर ,
हो गया इक दिन यकायक वो नशे में चूर है ।
तोड़कर बंधन मुहब्बत के अकेला हो गया ,
साथ रहना पर हुआ उसको नहीं मंजूर है ।
फिर रहा है वह भटकता इस शहर से उस शहर ,
चाहता होना न जाने किस तरह मशहूर है .

अदा कर रहा है

कर्ज है जो बराबर अदा कर रहा है ।
वो मुसलसल किसी वफ़ा कर रहा है ।
मुद्दतें हो गईं चोट खाते हुए यूँ ,
दर्द शायद उसे फायदा कर रहा है ।
फिर रहा है भटकता हुआ दर बदर जो ,
हो न हो वो किसी का पता कर रहा है ।
आग में दिल किसी की जला जा रहा है ,
रात दिन पर जिसे वो हवा कर रहा है ।
जो कभी भूल कर भी न उसका हुआ है ,
वो उसी के लिए इक दुआ कर रहा है ।
एक दिन जो ख़तम टूट कर हो चूका था ,
वो वही फिर शुरू सिलसिला कर रहा है ।
जिन्दगी भर तरसता रहा जिस ख़ुशी को ,
आज दिल से उसी को जुदा कर रहा है .

क्या करूँ

झूठ का वातावरण है क्या करूँ ।
विष भरा पर्यावरण है क्या करूँ ।
आयना पहचानता मुझ को नहीं ,
मुख पे भारी आवरण है क्या करूँ ।
अब किसी पर भी यकीं होता नहीं ,
संदिग्ध सारा आचरण है क्या करूँ ।
ढूढता अवशेष सच के हर कहीं ,
छ्द्म्मय अंतःकरण है क्या करूँ ।
भाग कर भी अब कहाँ मैं जाऊं यूँ ,
जिन्दगी खुद में मरण है क्या करूँ .

इक थैली के चट्टे बट्टे हैं

हम तुम दोनों इक थैली के चट्टे बट्टे हैं ।
राजनीति में साल पीढ़ियों तक के पट्टे हैं ।
जब भी कुर्सी मिल जाती हम खुश हो जाते हैं ,
जनम जनम के पाप अचानक ही धुल जाते हैं ,
वर्ना तो अंगूर बने पद लगते खट्टे हैं ।
काले धन के बिना सभी कुछ लगता सूना है ,
जितना ज्यादा लगा सको जनता को चूना है ,
गुंडा गर्दी की दम पर ही हंसी ठट्टे हैं ।
होकर खड़े मंच पर सरते नारी का सम्मान ,
और सिद्ध कटे इसको देवी सिया समान ,
किन्तु अकेले में मारें हम गिद्ध झपट्टे हैं ,
वैसे तो हम इक दूजे के घोर विरोधी हैं ,
अगर दुश्मनी हो जाये तो बहुत क्रोधी हैं ,
वर्ना हमने जाम हमेशा पिए इकठ्ठे हैं ।
राजनीति में आने का ध्येय नोट कमाना है ,
देश भक्ति की बातें करना महज बहाना है ,
वर्ना तो इसमें कितने ही लफड़े -रट्टे हैं ।
नहीं किसी से हुई हमारी कभी दुश्मनी है ,
मगर देश के गद्दारों से रही अंबानी है ,
इसीलिए तो चमचों को दे रक्खे कट्टे हैं ।
खेल भावना से हम हरदम राजनीति खेले हैं ,
चले भीड़ के साथ कभी या चले अकेले हैं ,
मगर लगाये नहीं कभी भी हमने सट्टे हैं .

जुबां पर न लाइए

बेवफा का नाम जुबां पर न लाइए ।
हो सके तो जाम वफ़ा का पिलाइए ।
दोस्तों की शक्ल तो पहचान चूका हूँ ,
दुश्मनों के नाम तो न अब गिनाइये ।
गम मिरा मेरे अँधेरे मेरी मुफलिसी ,
हैं मुझे अजीज बहुत छोड़ जाइए ।
बन गईं हैं जिन्दगी तन्हाइयां मेरी ,
उम्र सजा की मिरी बेशक बढ़ाइए ।
बार बार हादसों को याद क्या करूँ ,
अब खुदा के वास्ते न जिक्र लाइए ।
रास्तों ने इस कदर धोखे दिये मुझे ,
हटने दो मुझे राह से न डगमगाइये ।
लोग हैं वाकिफ सभी उसके गुनाह से ,
इस हकीकत पे न पर्दा गिराइए ।

उसने मुझे आवाज दी है

जब कभी उसने मुझे आवाज दी है ।
फुसफुसाकर सरसरी सी बात की है ।
दिल उछल कर आ गया पहलू से बाहर ,
धडकनों को प्यार की सौगात दी है ।
पास आकर फिर जरा सा दूर जाकर ,
अपने आँचल को उड़ाकर लाज की है ।
या किया कोई इशारा मुस्करा कर ,
पैर से अपने थपक पदचाप की है ।
बज उठी पाजेब जब भी छन छनन छन,
चूड़ियों की खनखनाहट साज सी है ।
सिसकियों सी सांस लेना खींच कर ,
जाग कर करवट बदलते रात की है .

आपका जब से मेरे दिल में ठिकाना हो गया .

आपका जब से मेरे दिल में ठिकाना हो गया

देखते ही देखते दुश्मन जमाना हो गया ।

अब हवाएं भी शहर की करतीं हैं सरगोशियाँ ,

हर जुबां पर मेरा ही काबिज फ़साना हो गया ।

हर गजल ,हर शेर में बस आपका ही जिक्र है ,

लफ्ज का जबसे मिजाज आशिकाना हो गया ।

हर तरफ महसूस होती आपकी मौजूदगी,

आजकल मैं किस कदर खुद से यगाना हो गया ।

अब नहीं आता मेरे ख्यालों में कोई दूसरा ,

आपकी सूरत का जबसे दिल दीवाना हो गया ।

पूछिए न अब मेरे दीवानगी की इन्तहां ,

आयना भी गुफ्तगू का इक बहाना हो गया ।

फासले कम होगये दूरियां भी कम हुईं ,

हर ख़ुशी का एक दम रुख दोस्ताना हो गया .

शादी को अनुबंध न समझो

शादी को अनुबंध न समझो ।
देहों का संबंद न समझो ।
यह तो जनम जनम का रिश्ता ,
महज इसे सौगंध न समझो ।
शादी इक संसका है यारो ,
दो रूहों का प्यार है यारो ।
कभी ख़त्म न होने वाला ,
ऐसा इक अधिकार है यारो ।
शादी कोई प्रतिबन्ध नहीं है ,
समझोता या द्वन्द नहीं है ।
शादी तो है पूर्ण समर्पण ,
रस्मों का प्रबंध न समझो .

जख्म गहरा था बहुत हल्का नहीं

जख्म गहरा था बहुत हल्का नहीं ।
दर्द का दरिया मगर छलका नहीं ।
प्यार का मुझसे हुआ सौदा नहीं ,
वर्ना हासिल था मुझे क्या क्या नहीं ।
रात दिन मांगी दुआ उसके लिए ,
देखकर जिसने कभी देखा नहीं ।
छोड़कर जिस दम मुझे खुशियाँ चलीं ,
दो कदम बढ़कर उन्हें रोका नहीं ।
उम्र भर का था किया वादा मगर ,
टूट जायेगा कभी सोचा नहीं ।
दर्द देकर जो भुला बैठा मुझे ,
दिल कभी उसके बिना धड़का नहीं .

नसीहत गलतियों से

जो शख्स लेता है नसीहत गलतियों से ।
लिखता वही तकदीर अपनी उँगलियों से ।
तय कर लिया काँटों भरा जिसने सफ़र ,
थकते नहीं उसके कदम फिर दूरियों से ।
परवाज पाई तितलियों से जिस किसी ने ,
डरता नहीं है वह ग़मों की आँधियों से ।
कैसे डूबा सकता उदासी का समुन्दर ,
पाया हुनर -ए- तैरना जो मछलियों से ।
जो जान लेता है मिजाजे वक्त को गर ,
वह खौफ खाता नहीं तारीकियों से ।
आता जिसे है मुफलिसी में मुस्कराना ,
वह हारता है कब भला मजबूरियों से ।
जितनी मुसीबत सामने आतीं किसी के ,
वह और भी लबरेज होता खूबियों से .

आखिर मन तू डरता क्यों है

आखिर मन तू डरता क्यों है ।
वक्त से पहले मरता क्यों है ।
जीवन तो है आना जाना ,
भाग दौड़ फिर करता है ।
गंगा जल में धोने वाले ,
मैली चादर करता क्यों है ।
क्या खोया क्या पाया जग में ,
गुना भाग ये करता क्यों है ।
अपने सच को खुद में खोजो ,
झूठ उजागर करता क्यों है ।
तेरे भाग का तूने पाया ,
लम्बी आहें भरता क्यों है ।
पल की खबर किसे है पगले ,
काक का वादा करता क्यों है .

काश कभी मैं बड़ी न होती

काश कभी मैं बड़ी न होती ।
डांट बड़ों की पड़ी न होती ।
पंख लगा कर मैं न उडती ,
आँख किसी से लड़ी न होती ।
इधर -उधर आने जाने पर ,
पाबंदी यों कड़ी न होती ।
इन्तजार न करती ख़त का ,
नजर राह में गडी न होती ।
दिन -दिन भर मैं बेमतलब ही ,
छत पर आकर खड़ी न होती ।
सारी रात न तारे गिनती ,
रात विरह की बड़ी न होती ।
शाम ढले बेचैन न होती ,
दुश्मन भी तो घडी न होती ।
आँखों से आंसू न बहते ,
धार मूसला झड़ी न होती ।
इश्क अगर अंधा न होता ,
मुझसे धोखा धडी न होती .

मंगलवार, 13 जुलाई 2010

हम क्या दें मोल तेरे उपकार का

समझ नहीं आता हम क्या दें मोल तेरे उपकार का ।
तेरे आगे हार गया है हार हमारे प्यार का ।
तेरे साथ गुजरे हमने जितने भी दिन हंसी ख़ुशी ,
याद बहुत आएगा हमको पल पल उस व्यवहार का ।
तूने हरदम माफ़ किया है जब भी हमने गलती की ,
हंस कर टाला हर इक मसला अपने ही अपकार का ।
तूने समझा नहीं कभी भी अपने से दोयम हमको ,
माना हमको जैसे हम हों हिस्सा इक परिवार का ।
जिसका खाया नमक बजाया हुक्म सदा तामील किया ,
वफादार सेवक की मानिंद भला किया सरका का ।
भूले से भी नहीं सोचना रिश्ता केवल इतना था ,
जैसे नाटक में होता है रिश्ता इक किरदार का ।
चाहे जहां रहे तू खुशियाँ हर पल तेरे साथ रहें ,
तेरे शेष बचे जीवन का हर दिन हो त्यौहार का ।
तुझे विदा करने की यह तो केवल रस्म अदाई है ,
आंसू ख़ुशी मिले हैं संग संग नियम अजब संसार का ।
आते आते मिलते रहना सबकी यही गुजारिश है ,
हम तेरे कृतज्ञ रहेगें शब्द नहीं आभार का .

फिर -फिर क्या हुआ है

पूछते हैं लोग फिर फिर क्या हुआ है ।
किसलिए चेहरा मेरा उतरा हुआ है ।
मैं भला कैसे बता दूँ राज उनको ,
वक्त मेरा आजकल रूठा हुआ है ।
देखकर जिसको ख़ुशी से झूमता था ,
वो चमन हद -ए-नजर उजड़ा हुआ है ।
इक धुंधलका सा नजर के सामने है ,
रास्ता जिसने मेरा रोका हुआ है ।
इस हकीकत पर यकीं होता नहीं है ,
दोतों का रुख अभी बदला हुआ है ।
एक उलझन की तरह आता नजर है ,
उलझनों में इस तरह उलझा हुआ है .

प्यार से बोलो या बोलो बेरुखी से

प्यार से बोलो या बोलो बेरुखी से ।
है मुझे मतलब तुम्हारी दोस्ती से ।
तुम मेरी नजरों से चाहे दूर रहना ,
पर नहीं रहना कभी भी जिन्दगी से ।
तुम मिलो या ना मिलो मर्जी तुम्हारी ,
युएँ नहीं मिलना लगो जो अजनबी से ।
छंद तारे तोड़ कर न दे सकूँगा ,
चाहता हूँ पर तुम्हें संजीदगी से ।
ये वफ़ा क्या है हकीकत जनता हूँ ,
दर्दे दिल कहता नहीं हूँ हर किसी से ।
तुम भले ही सजदा -ए-हक़ छीन लेना ,
पर नहीं महरूम करना बंदगी से .

सोचता हूँ में

चैन दिल को कैसे आये सोचता हूँ मैं ।
कोना कोना मुस्कराए सोचता हूँ मैं।
महफ़िलें उजड़ी हुईं हैं वो गए जबसे ,
कहकहों का दौर आये सोचता हूँ मैं ।
एक मुद्दत से उदासी दिल पे है काबिज ,
कौन मेरा हक़ दिलाये सोचता हूँ मैं ।
ख़त लिखा न कोई उसने न खबर भेजी,
बेकरारी बढ़ न जाये सोचता हूँ मैं ,
कैद हूँ घर में अकेला बंद दरवाजे नहीं ,
किस तरफ से आया जाये सोचता हूँ मैं .
राज -ए-दिल कब तक छुपाकर रख सकूँगा मैं ,
बात लब पे आ न जाये सोचता हूँ मैं .

सोचता हूँ में

चैन दिल ko kaise aaye सोचता हूँ मैं ।
kona kona muskaraye सोचता हूँ मैं।
mahfilen ujdin hui hain vo gaye jabse ,
kahkahon ka daur aaye सोचता हूँ मैं ।
aik muddat se udaasi दिल men hai kaabij ,
kaun mera hak dilaaye सोचता हूँ मैं ।
khat likha na koi usne na khabar bheji ,
bekaraari badh na jaye सोचता हूँ मैं ।
kaid हूँ ghar men akela band darvaaje nahin ,
kis taraf se aaya jaye सोचता हूँ मैं ।
raaj -ye-दिल kab tak chhupakar rakh sakunga मैं ,
baat lab pe aa na jaye सोचता हूँ मैं .

सोमवार, 12 जुलाई 2010

निर्दोष रखिये

अपनी द्रष्टि को जरा निर्दोष रखिये ।
क्या बुरा है क्या भला है होश रखिये । ।
दूसरों पे जब उठाओ उँगलियाँ तो ,
संकलित जुर्मों का अपने कोष रखिये ।
कल की कडवाहट भला क्या याद रखना ,
आज मीठा है यही संतोष रखिये ।
टेड़े -मेडे रास्ते पर जिन्दगी के ,
जब रखो आगे कदम तो ठोस रखिये ।
अपने होंठों पर पड़ा ताला हटा कर ,
चीखिये खुद को न अब खामोश रखिये ।
प्यास सागर की है ये यूँ न बुझेगी ,
इन लबों पर भूल से न ओस रखिये ।

किसी के प्यार में

क्या क्या नहीं सहता रहा हूँ मैं किसी के प्यार मैं ।
शायद छपे इसकी कहानी भी कभी अखबार में।
जो दौलतें सरे ज़माने की न दे पाइन ख़ुशी ,
बेशक मिलीं हैं वह फकत महबूब के दीदार में ।
उछली बहुत तूफ़ान में पर साथ था जब यार का ,
महफूज थी कश्ती बराबर तैरती मझधार में ।
रहने दिया बेदाग दामन पर कभी सोचा न था ,
धोना पड़ेगा एक दिन ये आंसुओं की धार में ।
अब याद भी आता नहीं कुछ याद करता हूँ अगर ,
पीछे बहुत कुछ रह गया है वक्त की रफ़्तार में ।
जिसकी मुहब्बत पर हमेशा ही रहा मुझको गुरुर ,
वह थी अछानक बिक गई यूँ दौलते बाजार में .

ये जिन्दगी क्या है

तुम गए तो यूँ लगा ये जिन्दगी क्या है ।
दर्दे दिल मेरा मेरे दिल की ख़ुशी क्या है ।
रात भर जलती रहीं सब बत्तियां घर की ,
सुबह तक जगा तो जाना रौशनी क्या है ।
होंठ हँसते हैं तो पलकें भीग जाती हैं ,
कुछ समझ आया नहीं ये बेबसी क्या है ।
याद आती ही गई जो भूलना चाहा ,
कोई बतलाये मुझे ये बेरुखी क्या है ।
है सभी कुछ पास मेरे इक सिवा तेरे,
सोचता रहता हूँ हरदम ये कमिं क्या है ।
अब नहीं आता नजर कुछ है नजर में तू ,
या खुदा तू ही बता ये बेखुदी क्या है .

कितनी नीरवता है

घर मेरा है मैं घर में हूँ फिर भी कितनी नीरवता है ।
अपने ही क़दमों की आहट सुनकर मुझको डरलगता है ।
चारों तरफ उदासी घर में फैली गहरी खामिशी है ,
दीवारों के इक घेरे में पल पल मेरा दम घुटता है ।
घुमा करता अन्दर बाहर बेचैनी को साथ लिए ,
जैसे वीराने में कोई चम्गादर घूमा करता है ।
जब भी अपना चेहरा देखूं भूले से भी दर्पण में ,
बड़ी भयानक दिखने लगती तन की साडी सुन्दरता है ।
सारी रात सताती मुझको यादें उसकी यमदूतों सी ,
प्राण बचाकर भागा करती मन की सारी निष्ठुरता है .

जिन्दगी लगती नहीं अब जिन्दगी है

जिन्दगी लगती नहीं है अब जिन्दगी है ।
हर तरफ तन्हाई की मोजूदगी है ।
मुस्कराना चाहते हैं लब मेरे भी ,
पर न जाने कौन सी ये बेबसी है ।
एक शीतल चांदनी फैली हुई है ।
लग रही है आंच फिर भी धुप सी है ।
कौन जाने किन गुनाहों की सजा है ,
बात सच्ची भी लगे जो झूठ सी है ।
किसलिए रूठा हुआ है इसकदर,
वो जो नहीं करता मुझे अब याद भी है ।
अब भरोसा भी नहीं होता किसी पर ,
खो दिया जो प्यार पर अपना यकीं है .

घर नहीं होता

ईंट पत्थर से बना घर घर नहीं होता ।
खाब आँखों का हकीकत हर नहीं होता ।
मर गए लाखों पतंगे जलके शम्मा पर ,
ये वो चाहत है जिसे कुछ डर नहीं होता ।
नींद आती है तो बस ये आ ही जाती है ,
हर समय इसके लिए बिस्तर नहीं होता ।
जिसने की सच्ची दुआ खाली नहीं जाती ,
पर दुआओं में असर अक्सर नहीं होता ।
मान जिसे कहते हैं उस औरत के सीने में ,
दिल धड़कता है कोई पत्थर नहीं होता ।
बात छोटी सी अगर चुभ जाती है दिल में ,
हर वक्त टीसती है मगर नश्तर नहीं होता .

सीधे सीधे चल

आड़े तिरछे चलने वाले सीधे सीधे चल ।
रस्ता सेज नहीं फूलों का सम्हल- सम्हल कर चल ।
इस दुनियां में हर वस्तु है क्षण भंगुर यारो ,
जो स्थिर है आज वही अस्थिर होना कल ।
अपने चेहरे पर इतने न तुम चेहरे डालो ,
इक दिन तुम जो भूल ही जाओ अपनी सही शकल ।
बड़े दर्प से आसमान में जो सूरज चढ़ता था ,
शाम हुई तो सबने देखा सागर गया निगल ।
कब तक यों ही खोये रहोगे तुम झूठे सपनों में ,
ऐसा न हो तुम पछताओ जाए वक्त निकल ।
श्रम की कीमत पहचानी है जिसने भी सचमुच में ,
उसने जाना कर्म किये न होता कोई सफल .

बंद घरों में रहने वाले

बंद घरों में रहने वाले खुली हवा में आकर देखो ।
बाहर बहुत सुहाना मौसम तन मन को नहला कर देखो ।
अन्दर से तो बंद रखा है ,बाहर से कोई कैसे खोले ,
आने वाला लौट न जाये दरवाजे से आकर देखो ।
पानी ,हवा ,रौशनी ,मौसम नहीं किसी की जागीरें हैं ,
सांस -सांस यों जीने वालों अपने को आजमाकर देखो ।
जनपथ से जाती है सीढ़ी सड़क राजपथ तलक यहाँ ,
गलियारों में चलने वालो चौबारों तक आकर देखो ।
पढ़ कर खबर मौत की तुमने समझा कोई इश्तहार है ,
शायद कोई अपना ही हो फिर से नजर जमकर देखो ।
औरों की आँखों के आंसू हो सकता है पानी हों ,
स्वाद लबों पर आ जायेगा अपना लहू बहाकर देखो ।
खुली किताबें बहुत पढ़ चुके बंद किताबें भी तो खोलो ,
लफ्ज -लफ्ज में अर्थ नया है वाक्य -वाक्य अजमाकर देखो ।
मंदिर ,मस्जिद ,गुरूद्वारे ,गिरजाघर तो मिटटी भर हैं ,
रब तो पास तुम्हारे ही है अपने भीतर जाकर देखो ।
गीता और कुरआन ,बाइबिल ,गुरुग्रंथ रब की वाणी है
मजहब कहाँ सिखाते नफरत सच्ची प्रीत जगाकर देखो .
दिल के रिश्तों को क्या कहिये कच्चे धागे कांच का दर्पण ,
कभी दोबारा से न जुड़ते इनको मत चटका कर देखो ।
माना मैंने बहुत कठिन है जीवन की गुत्थी सुलझाना ,
पर चुटकी में हल होती है थोडा सा मुस्काकर देखो ।
फूलों की खुशबू से बढ़ कर प्यार की खुशबू होती है ,
सारा जीवन महक उझेगा थोड़ी सी महका कर देखो .

हम बहुत नजदीक थे

कल तलक तो हम बहुत नजदीक थे ,आज लेकिन बढ़ गईं कुछ दूरियां हैं ।

चाह कर भी मिल नहीं सकते कभी हम ,दरम्यां दीवार सी मजबूरियाँ हैं ।

सोचते थे ख़त लिखेंगे एक दिन हम ,पूछ लेंगे हाल -ए-दिल इक दूसरे के ,

पर कभी न दी इजाजत बंदिशों ने ,लांघ न पाए मुक़द्दस दायरे तक ।

आयने में शक्ल अपनी देखते हैं ,करते हैं अंदाज ओढ़ी उम्र का ,

वक्त कितना बेरहम है झुर्रियों सा ,जो कभी देता नहीं मोहलत जरा भी ।

कि कदाचित देखते हम भी पलटकर ,कुछ कदम चलते पुरानी राह पर ही ,

पर कहाँ देते दिखाई नक्श -ए -पा ,एक भटकन के सिवा कुछ भी नहीं ।

आंसुओं से धो सको तो धोलो यादें ,या कि सीधे चल पडो आगे ही आगे ,

ये बिना सोचे कि मंजिल दूर कितनी ,और पावों में पड़ेंगे कितने छाले ।
प्यार तो बस प्यार है नहीं शर्त कोई ,खुशबू तो अहसास का इक नाम है बस ,
ये भला छूने की कोई चीज कब है ,बंद आँखों से दिखाई दे खुली तो कुछ नहीं .

मुझे गम पराये मिले हैं .

उमर भर मुझे गम पराये मिले हैं ।
सभी आंसुओं में नहाए मिले हैं ।
सुलगने को हरदम यूँ ही जिन्दगी भर ,
सीने में शोले छुपाये मिले हैं ।
भटकने को तनहा मुझे तीरगी में ,
बस्ती -ए- वीरां बसाए मिले हैं ।
नशेमन पे मेरे गिराने को बिजली ,
हाथों में मेंहदी रचाए मिले हैं ।
कहीं देख न लूँ मैं बेबस निगाहें ,
चेहरे पर पर्दा गिराए मिले हैं ।
मेरी आरजू की दफ़न लाश करने ,
मैयत का सामान सजाये मिले हैं .

सागर पुकारे

आस भरी वाणी में सागर पुकारे ।

कभी तो मिलेंगे क्षितिज के किनारे ।

वचनों कि नौका की धुंधली सी छाया ,
बह रही प्यार की लहर के सहारे ।

छोड़ आई तट पर जो यादों के साए ,
उदास -उदास आँखों से उनको निहारे ।
इक दिन रुकेगा ये तूफां समय का ,
मंजिल पे होंगे तब कदम हमारे ।
यूँ ही फिर न हमको भटकना पड़ेगा ,
बताएँगे रस्ता गगन के सितारे ।
हौंसला पस्त होंने न देंगे कभी भी ,
ताकत बनेंगे अब आंसू हमारे .

रविवार, 11 जुलाई 2010

रुकना मना है

अनवरत चलते चलें रुकना मना है ।
वक्त का पहिया रुका कब सोचना है ।
लक्ष्य के ऊँचे शिखर पर हम चरण रख ,
कीर्तिमानों की करें स्थापना है ।
राह जीवन की भले मुश्किल भरी हो ,
किन्तु निर्धारित गति नहीं रोकना है ।
दूसरों से प्रेरणा लें पर कदापि ही ,
बेबजाह न हम करें आलोचना है ।
हम वहां पहुंचें जहाँ पहुंचा न कोई ,
स्वप्न में पाने की गर संभावना है ।
जब परस्पर हो कोई सहयोग तो फिर ,
किसलिए करते फिरें हम याचना है ।
हम हकीकत के धरातल पर चलें ,
क्यों न होगी सच हर इक कल्पना है .

फिर से नया इक नाम देना

मीत मेरे तुम मुझे फिर से नया इक नाम देना ।
गर कभी गिरने लगूं तो हाथ मेरा थाम देना ।
खोज में मंजिल की पैरों में भी छाले पड़ गए ,
थक गया हूँ चलते चलते अब मुझे विश्राम देना ।
तन बदन झुलसा बहुत तन्हाइयों की धूप में ,
सब तपिश मिट जाए यों पलकों की शीतल छाँव देना ।
करके मैखाने से रिश्ता फिर भी प्यासा दिल रहा ,
जो मुझे मदहोश कर दे यार ऐसा जाम देना ।
उम्र भर टूटे हुए घुँघरू सा मैं बजता रहा ,
बाँट लें गम जिसकी रुनझुन ऐसे घुँघरू बाँध देना ।
गीत बन कर दर्द मेरे गूँज जाएँ इस फिजां दमन ,
बस वफ़ा को यार मेरे इस तरह अंजाम देना .

अपना दर्द सुनाने निकले

औरों को दुःख देने वाले अपना दर्द सुनाने निकले ।
घेर लिया जब अंधियारों ने दीपक बुझे जलाने निकले ।
औरों के किस्से चटखारे ले लेकर जो कहते थे ,
उनके अपने घर से कितने मजेदार अफ़साने निकले ।
तन्हाई से घबराए तो भीड़ में जाकर बैठ गए ,
जब लोगों के दिल में झाँका अन्दर से वीराने निकले ।
चिंगारी को खुद भड़का कर शोलों में तब्दील किया ,
लपटों ने जब घेर लिया घर बाहर आग बुझाने निकले ।
भोली भाली सूरत लेकर जो औरों को ठगते थे ,
इक दिन ऐसा धोखा खाया थाने रपट लिखाने निकले ।
सबकी नाव डूबने वाले वक्त आखिरी जब आया तो ,
इक कागज़ की कश्ती लेकर खुद को पार लगाने निकले ।