गुरुवार, 15 जुलाई 2010

सपने

मुझे बहुत शौक है देखने का सपने ।
वह हों पराये अथवा हों अपने ,
मगर मेरे सपने हमेशा सच होते हैं ,
कुछ मुस्कराते हैं और कुछ रोते हैं ,
कल ही की बात झिलमिलाती रात /
मैंने भींच लिया मुट्ठी में आसमान /
यदि यकीन न हो तो देख लो हथेली पर मेरी /
भींचने के अब तक बने हैं अमित निशाँ .

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