शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

मन ही मन -16

उँगलियों में उंगलियाँ डाले /
न जाने कितनी बातें की थीं /
अब तो उंगलियाँ बातें करतीं हैं /
उन दिनों की ।

कसे तारों पर साज बड़ी /
सावधानी से बजाया जाता है /
पर सावधानी कहाँ रह जाती है /
तार कसते हुए ।

जोर से खिलखिला उठे फूल /
अब झरना ही था उन्हें /
झर गए जमीन पर ।

पदचाप कितना कुछ कह जाती है /
सीढियां चढ़ते उतरते वक्त भी ।

होंठों तक पहुंचा ही कहाँ था अहसास /
दिलों तक उतरा ही कहाँ था अहसास /
यही अहसास सताता है आज तक ।

घुली हुई है जेहन में यादों सी /
रूठी हुई है आज तक टूटे हुए वादों सी /
कहीं तो होना था उसे /
मेरे इर्द गिर्द .

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