शनिवार, 17 जुलाई 2010

दोहे -14

पढ़ पढ़ तेरी चिट्ठियाँ लगता तुम हो पास ।
दिल को मिला सुकून है जब भी हुआ उदास ।
तेरा मेरा है मिलन ज्यों धरती आकाश ।
दूर दूर रहते मगर हैं क्षितिज से पास ।
ढेरों भेजी चिट्ठियाँ किये सैकड़ों फोन ।
लेकिन तुम हर दम रहे चुप्पी साधे मौन ।
तेरे मेरे बीच में बंधी प्रीत की डोर ।
पड़ने देना मत कभी इसे जरा कमजोर ।
इतने भी न बाम्धिये तारीफों के पुल ।
कि लोगों के सामने जाए हकीकत खुल ।
ऊपर वाले पर जिन्हें होता है विश्वास ।
उन्हें जिन्दगी में वह सदा देता है कुछ ख़ास ।
सच्चाई की राह में कांटे बिछे अपार ।
कर पाते हैं पार वो जिनको होता प्यार .

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