शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

मन ही मन -15

अभी भी बाकी है बहुत कुछ कहना /
कुछ भी बाकी ही कहाँ रहा /
बहुत कुछ कहने के बाद ।

जब तक लिखी जाती रहेगी /
पूरी न होगी /
अधूरे काम पूरे ही कहाँ होते हैं ।

तुम धूप भी नहीं /
तुम छाँव भी नहीं /
बरसात भी तो नहीं /
भीग न जाता मैं ।

न जाने क्यों रात छोटी /
और दिन बड़े लगते हैं /
तुम नहीं होते हो /
तब ऐसा तो नहीं लगता।

पन्नों के बीच रखा सूखा फूल /
न जाने कितने दिनों को /
हरा कर देता है ।

खामोशियाँ कभी तो टूटेंगीं /
श्मशान भी कहाँ चुप रहता है सदा .

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