सोमवार, 26 जुलाई 2010

नाम हमारे साथ जुड़ा है

जब से उसका नाम हमारे साथ जुड़ा है ।
तबसे वह रहता मुझसे उखडा -उखडा है ।
उसने खुद को कैद कर लिया अपने घर में ,
नहीं दिखाई पड़ता उसका अब मुखड़ा है ।
शाम ढले चौकन्नी सी बाहर आती है ,
भला सुनाएँ किस किसको अपना दुखड़ा है ।
उसे कहाँ था पता इश्क आसान नहीं है ,
कदम कदम पर इम्तहान यूँ बहुत कड़ा है ।
ऊंची -ऊंची दीवारें हैं जात -पांत की ,
ये मजहब भी दुश्मन की मानिंद खडा है .

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