शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

मन ही मन -17

जब तक मंजिल नहीं आ जाती /चलना ही होगा /
थकाना ही होगा वहां तक /
जब तक थक नहीं जाते /
चलने और थकने का अटूट रिश्ता है ।

प्राण वहां रहते हैं /
जहां रहते हैं अहसास /
और अहसास तुम्हें देखने पर /
प्राण आते हैं अहसासों में तब ।

भरोसा ही तो है अपने भरोसे पर /
तुम भी मुझे प्यार करते हो /
जैसे मैं तुम्हें करता हूँ ।

तुम भी सोचती होगी /
जैसे मैं सोचता हूँ /
तुम क्या सोचती हो ।

अभी अभी कोई गया है यहाँ से /
गंध बसी हुई है माहौल में /
खामोशी व्याप्त है सागर में ।

उसने एक बार होंठों से चूमा था /
अब कहाँ रह गया हूँ मैं /
वैसे का वैसा .

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