गुरुवार, 22 जुलाई 2010

तेरी तस्वीर

आखिर कब तक दिल बहलायें हम तेरी तस्वीर लिए ।
सारी दुनिया दुश्मन जैसे हाथों में शमशीर लिए ।
जग के सारे रिश्ते -नाते तुम्हें तोड़कर आना होगा ,
घुट -घुट कर दिन रात जियें क्यों पैरों में जंजीर लिए ।
दीवानों ने कब मानी हैं उंच -नीच की दीवारों को ,
कितने आंसू और बहायें विरहा की तकदीर लिए ।
जीना लगता है बेमानी मिला तिरा जो साथ नहीं ,
ऐसा जीना भी क्या जीना आंसू की जागीर लिए ।
पैरों के कांटे तो सारे इक इक कर हैं खींच लिए ,
मगर अभी भी जीते हैं हम दिल में कितने तीर लिए .

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