सोमवार, 26 जुलाई 2010

नहीं उठाते वो

फोन लगाता हूँ मैं फिर भी नहीं उठाते वो ।
ना जाने क्यों इतना ज्यादा मुझे सताते वो ।
हरदम ही इंगेज फोन करने पर आता है ,
रब ही जाने किस से घंटों बतियाते हैं वो ।
ऐसा भी तो नहीं कभी नाराज हुए हों मुझसे ,
लेकिन जब भी मिलते मुझसे कतराते हैं वो ।
इतनी सुन्दर उनकी मर मर जाता हूँ मैं ,
लेकिन जी उठता हूँ फिर से नजर उठाते हैं वो ।
मुझ पर इतना सितम नहीं अच्छा लगता है उनका ,
ना ही आते हैं ना मुझको पास बुलाते हैं वो ।
फिर भी उनका इन्तजा रहता है मुझको हरदम ,
हर पल लगता बस अब मुझको फोन लगाते हैं वो .

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