शनिवार, 17 जुलाई 2010

दोहे -12

अपनी -अपनी घडी सभी की वक्त सभी का जुदा जुदा ।
किस वक्त निकाले सूरज चंदा मुश्किल में पद गया खुदा ।
जब से उनकी बन गई बिल्डिंग आलिशान ।
इधर उधर वह खोजते अपनी ही पहचान ।
कर्जा लेकर बढ़ गया उन पर इतना ब्याज ।
अब सब्जी में डालते मुश्किल से वह प्याज ।
वेतन सा काटने लगा जबसे भारी लोन।
अब जल्दी से काटते जब भी करते फोन ।
ना जाने किस दौड़ में शामिल है इन्सान ।
जिससे उसके छीन गई होंठों की मुस्कान ।
अपने हाथों खो दिया उसने मन का चैन ।
इधर उधर अब घूमता होकर के बेचैन ।
तुमसे मिलकर मी गया मेरे दिल को चैन ।
वर्ना तो ये रात दिन रहता था बेचैन ।
जाने कैसी लग गई मेरे दिल को लत ।
इश्क मुहब्बत के सिवा नहीं और चाहत ।
सब कुछ मंहगा हो गया पर सस्ता ईमान ।
बिकने को तैयार सब क्रय करलें श्रीमान ।
तेरा मेरा कुछ नहीं रुपया सब का मी ।
रुपया गर है पास में सबका मन लो जीत ।
भाई भाई के बीच में रुपये की दीवार ।
एक खड़ा इस पार है दूजा है उस पार ।
आकर्षण और प्रेम में बहुत बड़ा है भेद ।
जैसे पुस्तक हो कोई उसके सम्मुख वेद.

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