गुरुवार, 22 जुलाई 2010

अपनी शैली है

गुलशन में जितने फूल खिले हैं सबकी अपनी शैली है ।
दूर -दूर तक इसी लिए तो खुशबू इतनी फैली है ।
भँवरे भी मस्ती में अपनी गुनगुन गाते हैं ,
रंगबिरंगी तितली के दल मधुर पराग खाते हैं ,
यहाँ खोल दी खुशियों की ज्यों रब ने थैली है ।
यहाँ नहीं कोई रंजिश है जैसी मिलती इंसानों में ,
होंठों से मधुरस टपकाते नफरत दिल के तहखानों में ,
ऊपर से है साफ़ पैरहन मगर रूह तो मैली है .

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