मंगलवार, 27 जुलाई 2010

सजा मुझको मिली है

प्यार करने की सजा मुझको मिली है ।
कर रहा है वह बराबर बेरुखी है ।
सोचता हूँ ये मुझे क्या हो गया है ,
नींद आँखों में नहीं कुछ भी बची है ।
उठती रही है इक कसक दिल में सदा ,
आ रही है पेश कैसे जिन्दगी है ।
दूर तक फैला हुआ कैसा अंधेरा,
जो नहीं दिखता कहीं भी रौशनी है ।
काश ऐसा भी हुआ होता किसी दिन ,
वह ज़रा महसूस करता दर्द भी है .

1 टिप्पणी: