रोज देखता हूँ मैं छुपकर उन्हें निकलता घर से ।
मगर मिलाते नहीं नजर वो ना जाने किस डर से ।
सुबह से लेकर शाम तलक मैं राह उन्हीं की तकता ,
मगर निकल जाते हैं वो हर दम ही इधर -उधर से ।
जब तक उनको जी भर कर मैं देख नहीं लेता हूँ ,
भूत प्यार का नहीं उतरता तब तक मेरे सर से ।
मुझे पता है अभी उमर है उनकी कितनी कमसिन ,
लेकिन उनको जो भी देखे पाने को मन तरसे ।
ऊपर वाले से मैं इतनी दुआ सदा करता हूँ ,
उन्हें दूर ना करना गोया मेरी कभी नजर से .
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