शनिवार, 17 जुलाई 2010

दोहे -5

इतने वर्षों बाद भी वह आता है याद ।
जिसको देखा था महज हुआ न था संवाद ।
तरह -तरह के खाब हैं तरह तरह के ख्याल ।
तरह तरह की उलझनें उलझे हुए सवाल ।
मेरी आँखों में बसी उसकी ही तस्वीर ।
है मेरा मालिक खुदा वह मेरी तकदीर ।
जो तेरा न हो सका उसकी करके याद ।
रेमूरख क्यों कर रहा निज जीवन बर्बाद ।
पति -पत्नी के बीच में नहीं और का काम ।
सुबह कलह गर हॉट है सुलह होत है शाम ।
आंसू सारे पी गए जज्ब कर गए गम ।
मुस्कानों के साथ साथ जुदा हुए थे हम
मेरी आँखों में बसा जब से उसका रूप
ठंडक बरसाती लगे मई जून की धुप ।
काली नागिन से सदा बिखराए निज केश ।
यौवन की दहलीज पर अब कैसा उपदेश ।
खुली हुई है खिड़कियाँ खुला हुआ है द्वार ।
आने वाला आएगा लगता है इस बार ।
हरी भरी हैं वादियाँ खिली -खिली है धूप ।
निखरा -निखरा सा लगे प्रकृति का ये रूप .

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