शनिवार, 17 जुलाई 2010

दोहे -2

आलोचक आलोचना जब करते निर्दोष ।
हर रचना के देखते वह केवल गुण दोष ।
पुरस्कार जब से हुए सांठ -गाँठ की देन ।
साहित्य में उनका महत्त्व ज्यों सागर में फैन ।
कविता के अस्तित्व का जबसे उठा सवाल ।
आयोजित कवि - गोष्ठी में मचता सदा बवाल ।
कविता के जबसे हुए अलग -अलग उपनाम ।
कवियों में छिड़ने लगा नित-नवीन संग्राम ।
अपने -अपने ज्ञान पर सबको घोर घमंड ।
मौक़ा पाकर दे रहे कवि इक दूजे को दंड ।
कविता का जबतक कवि जानेगा नहीं मर्म ।
कविता करने का नहीं वह अपना सकता धर्म ।
जो रचना आनंद दे हरे और का दुःख ।
वह कविता सर्वोच्च है कालजयी प्रमुख ।
व्यलती से रचना बड़ी या रचना से व्यक्ति।
यह उत्तर बिलकुल सरल जिसकी जितनी शक्ति।
भाषा -शैली से बड़ा अभिव्यक्ति का मान ।
बिन दोनों के पर नहीं रचना की पहचान .

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