शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

दोहे -१

जिन्हें नहीं सुरताल का किंचित सा भी ज्ञान ।
उनको भी मिलने लगे तिकड़म से सम्मान ।
जिसकी जैसी गायकी उसकी वैसी तान ।
मत तौलो इक बाँट से सबको एक समान ।
किसकी क्या उपलब्धियां किसका कितना ज्ञान ।
पुरस्कार देते समय सदा रहे यह ध्यान ।
हर पद की महिमा अलग हर पद का निजमान।
हर पद की गुरुता अलग हर पद का स्थान ।
जब भी कोई संस्था दे कोई सम्मान ।
व्यक्ति के कृतित्व को बारीकी से छान ।
पुरस्कार से यों कोई होता नहीं महान ।
हो सकता है भूल से पर उसका अपमान ।
श्रोताओं का भूल से मत समझो कम ज्ञान ।
रचना की बारीकियां लेते हैं पहचान ।
रचनाएं भाषण नहीं न जादू का खेल ।
श्रोतागण होकर विवश जिसको लेंगे झेल ।
अच्छा लिखने की जगह मन में लिए छपास ।
इक दिन में हैं चाहते छूना ये आकाश ।
पढने की फुर्सत नहीं न लिखने का अभ्यास ।
प्रस्कार के वास्ते करते सतत प्रयास ।
आयोजन की खोज में संचालक बेचैन ।
गली -गली में घूमते बेचारे दिन रैन .

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