शनिवार, 17 जुलाई 2010

दोहे -8

रिश्ते सारे हो गए वस्तु में तब्दील ।
रुपया जिसके पास था उसने करली डील ।
मन से हर दम पास है तन से मीलों दूर।
मिलने को तड़पें मगर फिर भी हैं मजबूर।
चिट्ठी -पत्री तक नहीं न कोई सन्देश ।
मेरी राशि कुम्भ है उनकी राशि मेष ।
इक दूजे का जुड़ गया जबसे मन का तार ।
फूट पड़ा संगीत नव बजने लगा सितार ।
सूरत देखे हो गया लम्बा अरसा एक ।
अपने अपने दायरे अपनी अपनी टेक ।
मैंने खोली खिड़कियाँ उसने खोले द्वार ।
देखा अब तक प्रेम का ये अद्भुत व्यवहार ।
एक तरफ से छेनता देता दूजी ओर
उसकी कृपा का कभी पाया किसने छोर ।
उन्हें किसी से हो गया निसंदेह ही प्यार ।
वर्ना वह क्यों देखते दर्पण बारम्बार ।
ना जाने किस बात पर वो मुझसे नाराज ।
कसमें वाडे प्यार वफ़ा लगते झूठे आज ।
तन्हाई है आजकल आते हैं वो याद ।
पर उन तक जाती नहीं इस दिल की फ़रियाद ।
छुप छुप कर वो देखते नहीं रूबरू अब ।
उन पर जब से आ गया यौवन बड़ा गजब ।
मेरे दिल में उठ रहा ये कैसा तूफ़ान ।
अपने पर काबू नहीं लगता अब श्रीमान ।
उन्हें न जब तक देख लूँ आता नहीं है चैन ।
उनकी वह ही जानते वो कितने बेचैन .

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