सोमवार, 19 जुलाई 2010

अधूरी कविता -2

आप सभी को मम्मी ने आने को बोला है ,

शाम हमारे साथ डिनर खाने को बोला है ,

बड़े अनुग्रह से पापा ने किया निवेदन है ।

मैंने पूछा नाम तो थोडा सा शरमाई वो ,

उसे बुलाया पास तो आने में सकुचाई वो ,

बड़ी देर मैं नाम बताया उसने 'गुंजन ' है ।

बेलन लाकर मैंने जिस क्षण उसे थमाया था ,

बड़ी अदा से लेकर बेलन उसने मुस्काया था ,

थैंक्यू कहकर उसने फैंकी तिरछी चितवन है ।

समझी जबतक बात रह गया मैं इकदम हैरान ,

कहने को कुछ कहता जबतक हो गई अंतर्ध्यान ,

पीछे अपने छोड़ गई वो इक मन - मंथन है ।

कुछ दिन से उसका मेरे घर आना जाना है ,

मेरी बीवी को उसने निज चाची माना है ,

लगता दोनों में कई जन्मों का बंधन है ।

जब भी मिलता समय दौड़कर वह आ जाती है ,

घर में रक्खा भोजन ले खुद चट कर जाती है ,

उस पर चलता नहीं किसी का कोई नियंत्रण है ।

उसकी कोई बात किसी को बुरी नहीं लगती ,

जिस दिन आती नहीं अगर तो कमी बड़ी खलती ,

लगने लगा सभी को उससे इक अपनापन है ।

धीरे धीरे वह मुझसे भी बात लगी करने ,

बिन मौसम दिन रात जूही के फूल लगे झरने ,

नाच उठा घर आँगन सारा हर्षित कण -कण है .

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