आप सभी को मम्मी ने आने को बोला है ,
शाम हमारे साथ डिनर खाने को बोला है ,
बड़े अनुग्रह से पापा ने किया निवेदन है ।
मैंने पूछा नाम तो थोडा सा शरमाई वो ,
उसे बुलाया पास तो आने में सकुचाई वो ,
बड़ी देर मैं नाम बताया उसने 'गुंजन ' है ।
बेलन लाकर मैंने जिस क्षण उसे थमाया था ,
बड़ी अदा से लेकर बेलन उसने मुस्काया था ,
थैंक्यू कहकर उसने फैंकी तिरछी चितवन है ।
समझी जबतक बात रह गया मैं इकदम हैरान ,
कहने को कुछ कहता जबतक हो गई अंतर्ध्यान ,
पीछे अपने छोड़ गई वो इक मन - मंथन है ।
कुछ दिन से उसका मेरे घर आना जाना है ,
मेरी बीवी को उसने निज चाची माना है ,
लगता दोनों में कई जन्मों का बंधन है ।
जब भी मिलता समय दौड़कर वह आ जाती है ,
घर में रक्खा भोजन ले खुद चट कर जाती है ,
उस पर चलता नहीं किसी का कोई नियंत्रण है ।
उसकी कोई बात किसी को बुरी नहीं लगती ,
जिस दिन आती नहीं अगर तो कमी बड़ी खलती ,
लगने लगा सभी को उससे इक अपनापन है ।
धीरे धीरे वह मुझसे भी बात लगी करने ,
बिन मौसम दिन रात जूही के फूल लगे झरने ,
नाच उठा घर आँगन सारा हर्षित कण -कण है .
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