गुरुवार, 22 जुलाई 2010

बदली भागी जाए

सुनकर सावन के आने की बदली भागी जाए ।
आगंतुक के अभिनन्दन में पपीहा गीत सुनाये ।
नाच रहा है आनंदित हो पत्ता -पत्ता बूटा -बूटा ,
शाख -शाख पर जुगनू जैसे अगणित दीप जलाए ।
वायु फिरती द्वारे -द्वारे सुख सन्देश सुनाती ,
वसुंधरा भी आकुल होकर अपनी नजर उठाये ।
आया सावन तो बिजली ने छोड़ी ज्यों आगौनी ,
लिपट -लिपट बदली ने भी आंसू खूब बहाए ।
मिलकर दो दिल तृप्त हो गए बरसों के ज्यों बिछुड़े ,
नील गगन ने हर्षित होकर सतरंगी हार चढ़ाए .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें