बुधवार, 28 जुलाई 2010

संचित नहीं करते

अश्क आँखों में सदा संचित नहीं करते ।
लब तबस्सुम से कभी वंचित नहीं करते ।
प्यार में जोखिम उठाने की रवायत है ,
प्यार करते हैं मगर अनुचित नहीं करते ।
बात दिल की बोलते खामोश रह करके ,
लफ्ज में फिर भी कभी अनुदित नहीं करते ।
है जिन्हें प्यारी बहुत महबूब की इज्जत ,
प़क दामन दाग से कलुषित नहीं करते ।
उम्र की बंदिश लगाकर आशिकी में भी ,
इश्क को सीमाओं में सीमित नहीं करते ।
प्यार में गुस्ताखियाँ हों लाजिमी हैं कुछ ,
पर सजा देकर बड़ी दण्डित नहीं करते ।
टूट कर यूँ दिल कभी जुड़ते नहीं फिर से ,
आइना -ए- दिल कभी खंडित नहीं करते ।
व्यर्थ है उपकार गिनना उंगलियाँ छूकर ,
प्यार में उपकार को अंकित नहीं करते ।
रूठना अक्सर मनाना मान जाना भी ,
प्यार में महबूब को क्रोधित नहीं करते ।
प्यार की खुशबू फिजा में फैलती है जब ,
नफरतों से यह फिजां दूषित नहीं करते ।
प्यार में गुंजाइशें होती नहीं शक की ,
बेबजह दिल को कभी शंकित नहीं कटे ।
जो मिला पाकर उसे खुशहाल होते हैं ,
जो नहीं पाया तो दिल कुंठित नहीं करते ।
चाँद तारे तोड़ने के वायदे करके ,
झूठ के ख्याली किले निर्मित नहीं करते ।
प्यार में भूलें हमेशा माफ़ करते हैं ,
याद कर करके इन्हें चिन्हित नहीं करते .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें