वह फकत नजरों से मेरी हो गया बस दूर है ।
पर मिरे दिल में उसी का झिलमिलाता नूर है ।
मैं भला कैसे भुला सकता हूँ उसकी याद को ,
जिन्दगी जिसकी मुहब्बत के नशे में चूर है ।
वह मुआफी दे मुझे या गुनाहों की सजा ,
फैसला उसका तहे दिल से मुझे मंजूर है ।
ये उदासी ,ये तड़प बेचैनियाँ दिन रात की ,
इक सफ़र के वास्ते सामान ये भरपूर है ।
जानता हूँ मैं उसे पाना बड़ा आसान है ,
पर बहुत खोने का पहले बन चुका दस्तूर है .
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