शनिवार, 17 जुलाई 2010

दोहे -६

बच्ची का क्या दोष है उसका क्या है पाप ।
जिससे न स्वीकारते उसके ही मां बाप ।
पत्थर कैसे हो गया मां का नाजुक दिल ।
अपनी बच्ची की बनी जो खुद ही कातिल ।
बच्ची लावारिश पड़ी रोटी थी नादाँ ।
कुत्ता रक्षक बन गया जैसे हो भगवान् ।
मानव पशु सम हो गया पशु जैसे इंसान ।
कुत्ते के इस प्यार पर मानवता कुर्बान ।
ज्यादा भावुक मत बनो भावुकता बदनाम ।
भावुकता के आये हैं अब तक दुष्परिणाम ।
तुझसे मिलने की लिए मन में छ प्रबल ।
जाने कितने कट गए कल आज और कल ।
रह -रह कर सूरत तेरी मुझको आती याद ।
पर कैसे तुझसे करूँ मैं दिल की फ़रियाद ।
तेरी सूरत पर फ़िदा मेरे मन का चोर ।
चोरी किस तरह से करे पहरे चरों ओर।
मेरे दिल में हो गया जब से उसका वास ।
अपनी मुट्ठी में लगे ज्यों सारा आकाश ।
नफरत के नासूर का एक मात्र उपचार ।
सच्चे मन से सौंपिए औरों का अधिकार .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें