गुरुवार, 22 जुलाई 2010

मेरी ख्वाहिशें

मेरी तंग -दस्ती में पैदा हुईं मेरी ख्वाहिशें /
कर्ज की आब -ओ -हवा में /
कुछ इस तरह बढीं /
ज्यों बढ़तीं हैं हदस किसी हादिल की /
देखकर औरों की शान -ओ -शौकत /
तंग दर तंग होती गई चादर /
निकलते गए पैर बाहर /
जैसे किसी बचालन औरत का /
निकलता है बाहर कदम /
लांघकर घर की मुक़द्दस दहलीज /
मैंने चेहरे पर ओढली नकाब /
महज धोखा देने के लिए आईने को /
क्यों कि आइना वही दिखाता है /
जो उसके सामने होता है /
और वह नहीं दिखाता जो नहीं होता है आदमी .


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