शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

मुहब्बत मुझे इस कदर है

नशा -ए-मुहब्बत मुझे इस कदर है ।
न उसके सिवा कुछ भी आता नजर है ।
तसव्वुर उसी का उसी की है बातें ,
जमाने की बातों से दिल बेखबर है ।
नजर में भी वो है नज़ारे में भी वो ,
जिधर देखता हूँ वो दिखता उधर है ।
बड़ी खूबसूरत लगे जिन्दगी ए ,
बना है वो जबसे मेरा हमसफ़र है ।
वही मेरी पूजा वही है इबादत ,
उसी की दुआओं का मुझ पे असर है ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें