गुरुवार, 22 जुलाई 2010

जब निगाहें निगाहों से टकरा गईं .

जब निगाहें निगाहों से टकरा गईं ।
देखती ही रहीं जैसे पथरा गईं ।
होश आया अचानक कि ये क्या हुआ ,
सोच कर मन ही मन में वो घबरा गईं ।
न इन्हें होश था न उन्हें होश था ,
वक्त ठहरा हुआ जैसे मदहोश था ,
थी उमंगें उमड़ती हुईं साँसों में ,
हर कोई इक जुनू में बेहोश था ,
मुहब्बत की ऐसी थी खुशबू उडी ,
उम्र भर के लिए रूह महका गईं .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें