जब निगाहें निगाहों से टकरा गईं ।
देखती ही रहीं जैसे पथरा गईं ।
होश आया अचानक कि ये क्या हुआ ,
सोच कर मन ही मन में वो घबरा गईं ।
न इन्हें होश था न उन्हें होश था ,
वक्त ठहरा हुआ जैसे मदहोश था ,
थी उमंगें उमड़ती हुईं साँसों में ,
हर कोई इक जुनू में बेहोश था ,
मुहब्बत की ऐसी थी खुशबू उडी ,
उम्र भर के लिए रूह महका गईं .
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