बुधवार, 21 जुलाई 2010

अधूरी कविता -5

हिरनी जैसी चाल उफनती नदिया सा यौवन ,
नागिन जैसे बाल सुगन्धित काया ज्यों चन्दन ,
बदली जैसी मडराती फिरती गलियन -गलियन है ।
वैसे उसका मुखड़ा बिलकुल भोला भाला है ,
परियों जैसा रूप रंग सांचे में ढाला है ,
उसकी सूरत में मरियम का सा होता दर्शन है ,
उसका दामन पाक साफ़ लगती सीता -सी है ,
निर्मल मन करनी पवत्र पावन गीता -सी है ,
उसपर शक गंगा पर जैसे दोषारोपण है ।
जो देखे इकबार दृष्टि टिककर रह जाती है ,
देखूं बारम्बार यही इच्छा रह जाती है ,
बरबस लेता खींच किसी को भी आकर्षण है ।
दिन भर करती धमाचौकड़ी पैर नहीं थकते ,
शाम ढले घर आती सबकी नजरों से छुपके ,
उस पर चलता नहीं किसी का भी अनुशासन है ।
वह जब खोई -खोई होती अपने आप ख्यालों में ,
या फिर खोई होती उलझे हुए सवालों में ,
तब रह -रह खनकाती चूड़ी खन-खन खन -खन है ।
बैठे -बैठे ही अक्सर वह रोने लगती है ,
धीरे -धीरे अपना आपा खोने लगती है ,
रब जाने छा जाता कैसा दीवानापन है .

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