शनिवार, 17 जुलाई 2010

दोहे -9

आँखों में आंसू लिए होठों पर मुस्कान ।
इस दुनिया से कर गए दो प्रेमी प्रस्थान ।
मिलने में बाधक रहा रूढ़ी ग्रस्त समाज ।
जिसको निज कुकृत्य पर आई कभी न लाज ।
अंग्रेजी में भेजता मुख्यालय परिपत्र ।
फिर हिंदी कैसे भला फैलेगी सर्वत्र ।
मंदिर में अल्लाह नहीं न मस्जिद में राम ।
सबका मालिक एक है ये कैसा पैगाम ।
अलग अलग हैं रास्ते अलग अलग हैं नाम ।
सजदा सब उसको करें पर सजदा बदनाम ।
सबके अपने कायदे अपने ही क़ानून ।
हर मजहब पर नाम पर होते लाखों खून ।
मन माफिक मिलता नहीं कभी कभी किसी को प्यार ।
कभी मिले इनकार तो कभी मिले इकरार ।
इस दुनिया में प्यार का नहीं जरा भी मोल ।
लगे सुहाना इस तरह बजे दूर का ढोल ।
सब कुछ हासिल है यहाँ सिवा प्यार के बोल ।
पैसे के बल पर सुलभ इसका करना मोल ।
दुनियां में जो ढूंढते अब भी सच्चा प्यार ।
उनकका जीवन व्यर्थ है जीना भी बेकार .

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