बुधवार, 21 जुलाई 2010

अधूरी कविता -३

जब भी मैं कुछ लिखने बैठूं कलम छिपा लेती ,
होता यदि मैं परेशान तो खूब मजा लेती ,
पर सूरत से जाहिर करती अनजानापन है ।
उसकी आँखों में तिरती नित नयी शरारत है ,
पकड़ी जाती नहीं कभी भी उसे महारत है ,
कोई करे शिकायत तो बन जाती दुश्मन है ।
इतना सब होने पर भी वह अच्छी लगती है ,
करती यों व्यवहार कि छोटी बच्ची लगती है ,
उसका हर दुःख दर्द भिगो देता सबका मन है ।
यदि होती नाराज मनाना हो जाता मुश्किल ,
ऐसी वैसी बात नहीं सह पाता भावुक दिल ,
खाना पीना छोड़ शुरू कर देती अनशन है ।
इसीलिये उसकी हर इक जिद पूरी होती है ,
पूरी करने की सबकी मजबूरी होती है ,
सम्मोहित कर लेता बातों का सम्मोहन है ।
उसकी प्यारी -प्यारी बातें मन हर लेती है ,
कैसा भी हो जख्म ह्रदय का झट भर देती है ,
करती है मुस्कान सदा अमृत उत्सर्जन है ।
एक सांस में जाने कितने प्रश्न किया करती ,
हर उत्तर पर वह कितनी ही बहस किया करती ,
उसकी प्रखर बुद्धि पर करता मन अभिनन्दन है ।

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