सोमवार, 19 जुलाई 2010

दुनिया बुरी हो गई

ना जाने क्या हुआ कि दुनिया बुरी हो गई ।
मुंह में जिसके राम बगल में छुरी हो गई ।
जिस मुरली की धुन पर राधा गोपीन नाचीं ,
आज कोलाहल युक्त बड़ी बेसुरी हो गई ।
धर्म कर्म की पृथ्वी जिस पर टिकी हुई थी ,
अपने पद से विचलित सच की धुरी हो गई ।
सारे रिश्ते नाते केवल देह हो गए हैं ,
परिभाषा मन की जब से इन्द्रपुरी हो गई ।
टहनी पर इक कलि भला खिलती भी कैसे ,
माली के हाथों ही घायल पांखुरी हो गई ।
पैर जमा कर जिस धरती पर खड़े हुए थे हम ,
आज अचानक पैरों के नीचे गहरी भुरभुरी हो गई ।
जिस प्रवृत्ति के लिए जहां ने जाना हमको ,
जाने किसकी नाहर लगी जो आसुरी हो गई .

1 टिप्पणी:

  1. टहनी पर इक कलि भला खिलती भी कैसे ,
    माली के हाथों ही घायल पांखुरी हो गई ।

    -बहुत बढ़िया!

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