आपका जब से मेरे दिल में ठिकाना हो गया
देखते ही देखते दुश्मन जमाना हो गया ।
अब हवाएं भी शहर की करतीं हैं सरगोशियाँ ,
हर जुबां पर मेरा ही काबिज फ़साना हो गया ।
हर गजल ,हर शेर में बस आपका ही जिक्र है ,
लफ्ज का जबसे मिजाज आशिकाना हो गया ।
हर तरफ महसूस होती आपकी मौजूदगी,
आजकल मैं किस कदर खुद से यगाना हो गया ।
अब नहीं आता मेरे ख्यालों में कोई दूसरा ,
आपकी सूरत का जबसे दिल दीवाना हो गया ।
पूछिए न अब मेरे दीवानगी की इन्तहां ,
आयना भी गुफ्तगू का इक बहाना हो गया ।
फासले कम होगये दूरियां भी कम हुईं ,
हर ख़ुशी का एक दम रुख दोस्ताना हो गया .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें