बुधवार, 14 जुलाई 2010

शादी को अनुबंध न समझो

शादी को अनुबंध न समझो ।
देहों का संबंद न समझो ।
यह तो जनम जनम का रिश्ता ,
महज इसे सौगंध न समझो ।
शादी इक संसका है यारो ,
दो रूहों का प्यार है यारो ।
कभी ख़त्म न होने वाला ,
ऐसा इक अधिकार है यारो ।
शादी कोई प्रतिबन्ध नहीं है ,
समझोता या द्वन्द नहीं है ।
शादी तो है पूर्ण समर्पण ,
रस्मों का प्रबंध न समझो .

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