सोमवार, 12 जुलाई 2010

घर नहीं होता

ईंट पत्थर से बना घर घर नहीं होता ।
खाब आँखों का हकीकत हर नहीं होता ।
मर गए लाखों पतंगे जलके शम्मा पर ,
ये वो चाहत है जिसे कुछ डर नहीं होता ।
नींद आती है तो बस ये आ ही जाती है ,
हर समय इसके लिए बिस्तर नहीं होता ।
जिसने की सच्ची दुआ खाली नहीं जाती ,
पर दुआओं में असर अक्सर नहीं होता ।
मान जिसे कहते हैं उस औरत के सीने में ,
दिल धड़कता है कोई पत्थर नहीं होता ।
बात छोटी सी अगर चुभ जाती है दिल में ,
हर वक्त टीसती है मगर नश्तर नहीं होता .

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