शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

मन ही मन -13

औरत एक किताब होती है /
सभी कहते हैं /
अक्सर हम यह गलती करते हैं /
जहां औरत होनी चाहिए /
वहां किताब रख देते हैं /
जहां किताब होना चाहिए वहां औरत ।

पहले बोले बिना रहा नहीं जाता था /
अब रहा जाता है बोले बिना /
शब्द कितने व्यर्थ हो जाते हैं /
अंतराल में ।

चाँद हँसता है रात भर /
पहले भी हँसता था /
जब हम हँसते थे /
अब हम नहीं हँसते /
चाँद हँसता है हम पर ।

सभी कुछ तो वही है /
हम भी वही तुम भी वही /
आखिर हमारे बीच क्या बदला है /
शायद हवा ।

सड़क कितना भ्रम पैदा करती है /
जैसे चलती हो /
जब इसका प्रयोग चलने के लिए /
नहीं करता है कोई .

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