सोमवार, 12 जुलाई 2010

ये जिन्दगी क्या है

तुम गए तो यूँ लगा ये जिन्दगी क्या है ।
दर्दे दिल मेरा मेरे दिल की ख़ुशी क्या है ।
रात भर जलती रहीं सब बत्तियां घर की ,
सुबह तक जगा तो जाना रौशनी क्या है ।
होंठ हँसते हैं तो पलकें भीग जाती हैं ,
कुछ समझ आया नहीं ये बेबसी क्या है ।
याद आती ही गई जो भूलना चाहा ,
कोई बतलाये मुझे ये बेरुखी क्या है ।
है सभी कुछ पास मेरे इक सिवा तेरे,
सोचता रहता हूँ हरदम ये कमिं क्या है ।
अब नहीं आता नजर कुछ है नजर में तू ,
या खुदा तू ही बता ये बेखुदी क्या है .

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