सोमवार, 12 जुलाई 2010

किसी के प्यार में

क्या क्या नहीं सहता रहा हूँ मैं किसी के प्यार मैं ।
शायद छपे इसकी कहानी भी कभी अखबार में।
जो दौलतें सरे ज़माने की न दे पाइन ख़ुशी ,
बेशक मिलीं हैं वह फकत महबूब के दीदार में ।
उछली बहुत तूफ़ान में पर साथ था जब यार का ,
महफूज थी कश्ती बराबर तैरती मझधार में ।
रहने दिया बेदाग दामन पर कभी सोचा न था ,
धोना पड़ेगा एक दिन ये आंसुओं की धार में ।
अब याद भी आता नहीं कुछ याद करता हूँ अगर ,
पीछे बहुत कुछ रह गया है वक्त की रफ़्तार में ।
जिसकी मुहब्बत पर हमेशा ही रहा मुझको गुरुर ,
वह थी अछानक बिक गई यूँ दौलते बाजार में .

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