बुधवार, 14 जुलाई 2010

मुझे सताने में

तुम्हें भला क्या मिल जाता है बोलो मुझे सताने में ।
एक झलक दिखला कर अपनी यकबयक छुप जाने में ।
तुम ही होते हो परदे के पीछे छुपे हमेशा ही ,
ये महसूस किया है मैंने हरदम आने जाने में ।
वादा करके भी आने का मगर नहीं आते जब ,
आंसू छलक उठा करते हैं धोड़ा भी मुस्काने में ।
तुम आते ही होगे शायद काम आगया होगा कुछ ,
सारा वक्त गुजरता मेरा खुद को ही समझाने में ।
दिन तो कट जाता है फिर भी रात मगर कठिनाई से ,
नींद नहीं आती पलकें थम जाती है झपकाने में ।
इश्क का रोग लगाया तुमने तुम्हें दावा का पता नहीं ,
तुम क्या जानो क्या कर बैठे हो गलती अनजाने में .

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