बुधवार, 14 जुलाई 2010

हम नेता बन जाते

काश कि हम नेता बन जाते ।
जी भर के हम रिश्वत खाते ।
बड़े बड़े बंगलों में रहते ,
कारों कसे हम आते जाते ।
सरकारी ठेकों को अपने ,
रिश्तेदारों को दिलवाते ।
जनता चाहे रोटी मरती ,
हम तो हरदम ही मुस्काते ।
कागज़ पर स्कीमें बनतीं ,
रुपया सारा चट कर जाते ।
जनता को सपने दिखला कर ,
चुनाव समय पर ही हम आते ।
देश भक्ति की बातें करते ,
और कमीशन जी भर पाते ।
हिंदी की करते सदा वकालत ,
बच्चों को इंग्लिश पढवाते .

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