मंगलवार, 13 जुलाई 2010

प्यार से बोलो या बोलो बेरुखी से

प्यार से बोलो या बोलो बेरुखी से ।
है मुझे मतलब तुम्हारी दोस्ती से ।
तुम मेरी नजरों से चाहे दूर रहना ,
पर नहीं रहना कभी भी जिन्दगी से ।
तुम मिलो या ना मिलो मर्जी तुम्हारी ,
युएँ नहीं मिलना लगो जो अजनबी से ।
छंद तारे तोड़ कर न दे सकूँगा ,
चाहता हूँ पर तुम्हें संजीदगी से ।
ये वफ़ा क्या है हकीकत जनता हूँ ,
दर्दे दिल कहता नहीं हूँ हर किसी से ।
तुम भले ही सजदा -ए-हक़ छीन लेना ,
पर नहीं महरूम करना बंदगी से .

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