गुरुवार, 15 जुलाई 2010

मन ही मन -10

होंठों पर खामोशी चटक जाती है /
ठीक धरती की तरह सूखा पड़ने पर /
दर्द बहने लगता है बाढ़ सा /
तट बंधों को तोड़कर ।

न जाने क्यों लोग उसे /
पाना चाहते हैं /
जिसके खोने का डर /
हमेशा रहता है ।

गीली लकड़ियों की तरह जलाते लोग /
महज धुधियाने के लिए ही /
तो नहीं होती जिन्दगी ।

खुले दरवाजे पर पर्दा /
कितना रहस्मयी होता है /
रहस्य होते ही हैं परदे में ।

जाते -जाते मुस्कराना धीमे से /
सारी उम्र के लिए कितना बड़ा /
आश्वासन होता है आने का /
आश्वासन होते ही हैं उम्र भर के लिए ।

आप ,आप जैसे कहाँ होते हैं /
लोग जैसा कहते हैं /
आप वैसे होते हैं ।

हरियाली कहाँ हरदम हरियाली रहती है /
घटाएं भी कहाँ हरदम बरसतीं हैं /
मौसम तो बदलते ही हैं वक्त की तरह आदमी के .

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