शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

मन ही मन -11

सुगंध की तरह फ़ैल न जाता /
काश खिला भी होता कभी /
फूल सा ।

पुनर्जन्म के भरोसे कितना कुछ /
झेल लेते हैं आज का /
पुनर्जन्म पर सभी तो विश्वास/
नहीं करते ।

घटाएं एक साथ हर जगह तो नहीं बरसतीं /
घटाएं हवा के संग चलतीं हैं /
हवा भी तो एक साथ नहीं बहती हर जगह /
फिर तो तुम्हारी मजबूरी है ।

भला अपने को देखना आईने में /
कितना आश्वस्त करता है खुद /
आईने कहाँ आश्वस्त होते हैं खुद ब खुद ।

पीना भी कितना न्रार्थक होता है /
जब तलक होश खो न जाये /
तुम्हें पाकर होश ही कहाँ रहा पीने का ।

हम कहाँ खुल कर मिलते हैं /
उघडते पर्त दर पर्त /
प्याज की तरह आंसुओं के साथ .

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