गुरुवार, 15 जुलाई 2010

मन ही मन -9

फूल खिलते हैं मुरझाते हैं /
बिलकुल एक जिन्दगी की तरह /
आदमी की ।

मानना चाहो तो मानेगा कैसे /
बच्चों की तरह जिद किये है /
भला बच्चे आसानी से /
कब मानते हैं ।

कल तुम मेरा सपना थीं /
आज सपने में तुम हो ।

भूल सकता हूँ तुम्हें /
यदि याद न आने का वादा करो /
तुम वादा कभी नहीं करतीं /
जानता हूँ ।

मैं हमेशा एक गीत सुनता हूँ /
पता नहीं किसी और को /
क्यों नहीं सुनाई देता मेरी तरह ।

तुम सावन भादों के आंसू बहती रहीं /
और मैं आसिक गरीब की झुग्गी की तरह बह गया /
जब तुम विदा हुईं थीं .

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