सोमवार, 12 जुलाई 2010

सागर पुकारे

आस भरी वाणी में सागर पुकारे ।

कभी तो मिलेंगे क्षितिज के किनारे ।

वचनों कि नौका की धुंधली सी छाया ,
बह रही प्यार की लहर के सहारे ।

छोड़ आई तट पर जो यादों के साए ,
उदास -उदास आँखों से उनको निहारे ।
इक दिन रुकेगा ये तूफां समय का ,
मंजिल पे होंगे तब कदम हमारे ।
यूँ ही फिर न हमको भटकना पड़ेगा ,
बताएँगे रस्ता गगन के सितारे ।
हौंसला पस्त होंने न देंगे कभी भी ,
ताकत बनेंगे अब आंसू हमारे .

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