गुरुवार, 15 जुलाई 2010

आज फिर मैं तनहा हो गया हूँ

आज फिर मैं तनहा हो गया हूँ /
सोचता हूँ उस दिन की ताः ही /
मेरे सर में फिर दर्द हो /
तुम्हारी नाजुक नाजुक कोमल उँगलियों के /
शीतल शीतल स्पर्श द्वारा माथे को /
धीरे -धीरे सहलाया जाए /
मेरी मदहोश हो रहीं पलकों पर /
कोई सपना सुनहरा सा जन्म ले /
क्यों कि आज फिर मैं तनहा हो गया हूँ ।
मेरे कानों में फिर कोई गीत शहद घोले /
मेरे ख्यालों में पायल की रुनझुन बोले /
और फिर मैं अपने होने के अहसास /
को भूल जाऊं /
क्यों कि आज फिर मैं तनहा हो गया हूँ ।
आज फिर तेरे क़दमों की आहट/
मेरी तन्हाई भंग कर दे /
मेरे मुरझाते हुए जीवन में /
सतरंगी रंग भर दे /
और फिर आकाश को मैं अपनी /कल्पना मैं कैद कर लूँ /
तारों को मुट्ठी में बंद कर लूँ /
वक्त को अपने आगोश में /तंग कर लूँ /
क्यों कि आज मैं फिर तनहा हो गया हूँ .

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