गुरुवार, 15 जुलाई 2010

कल जब तुम मेरे पास थीं

कल जब तुम मेरे पास थीं /
मैं सदा तुम्हारा अस्तित्व नकारता रहा /
असंभव को अनवरत पुकारता रहा /
पर तुम जो मेरे लिए अनपढ़ गवांर थीं /
कड़ाके की शर्दी में मेरे लिए किसी से पूछ कर /
सलाइयों पर उन से मेरे लिए अपना उपेक्षित /
प्यार बुनती रहती थीं /मरते द्वारा उड़ाया गया उपहास /
चुपचाप सुनती रहती थीं /
तुमने जाने अनजाने में कई बार /
स्वेटर खोल डाला था /मेरी आँखों में /
बस प्यार की एक चमक भर देखने के लिए /
अपनी शक्ति को तौल डाला था /
तुम मेरी हर इच्छा को पूरा करने की /कोशिश करती थीं /
पर मैं तुम्हारी आँखों की नमी का /
अर्थ नहीं समझ पाया था /
क्यों कि तुम मेरे लिए अनपढ़ गवांर थीं ।
और मैं किताबी शिक्षा को महत्त्व देता था /
अर्थ देह की सुन्दरता में करता था /
मैंने तुम्हें कितना प्रताड़ित किया था /
पर तुमने इसे सहज ही लिया था /
और अब जब कि /
तुम मेरे पास नहीं हो /
मुझे बहुत रुलाती हो /
बीते हुए वक्त की याद दिलाती हो /
पर बीता हुआ वक्त कभी वापिस नहीं आता है .

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