सोमवार, 12 जुलाई 2010

हम बहुत नजदीक थे

कल तलक तो हम बहुत नजदीक थे ,आज लेकिन बढ़ गईं कुछ दूरियां हैं ।

चाह कर भी मिल नहीं सकते कभी हम ,दरम्यां दीवार सी मजबूरियाँ हैं ।

सोचते थे ख़त लिखेंगे एक दिन हम ,पूछ लेंगे हाल -ए-दिल इक दूसरे के ,

पर कभी न दी इजाजत बंदिशों ने ,लांघ न पाए मुक़द्दस दायरे तक ।

आयने में शक्ल अपनी देखते हैं ,करते हैं अंदाज ओढ़ी उम्र का ,

वक्त कितना बेरहम है झुर्रियों सा ,जो कभी देता नहीं मोहलत जरा भी ।

कि कदाचित देखते हम भी पलटकर ,कुछ कदम चलते पुरानी राह पर ही ,

पर कहाँ देते दिखाई नक्श -ए -पा ,एक भटकन के सिवा कुछ भी नहीं ।

आंसुओं से धो सको तो धोलो यादें ,या कि सीधे चल पडो आगे ही आगे ,

ये बिना सोचे कि मंजिल दूर कितनी ,और पावों में पड़ेंगे कितने छाले ।
प्यार तो बस प्यार है नहीं शर्त कोई ,खुशबू तो अहसास का इक नाम है बस ,
ये भला छूने की कोई चीज कब है ,बंद आँखों से दिखाई दे खुली तो कुछ नहीं .

1 टिप्पणी: