सोमवार, 12 जुलाई 2010

बंद घरों में रहने वाले

बंद घरों में रहने वाले खुली हवा में आकर देखो ।
बाहर बहुत सुहाना मौसम तन मन को नहला कर देखो ।
अन्दर से तो बंद रखा है ,बाहर से कोई कैसे खोले ,
आने वाला लौट न जाये दरवाजे से आकर देखो ।
पानी ,हवा ,रौशनी ,मौसम नहीं किसी की जागीरें हैं ,
सांस -सांस यों जीने वालों अपने को आजमाकर देखो ।
जनपथ से जाती है सीढ़ी सड़क राजपथ तलक यहाँ ,
गलियारों में चलने वालो चौबारों तक आकर देखो ।
पढ़ कर खबर मौत की तुमने समझा कोई इश्तहार है ,
शायद कोई अपना ही हो फिर से नजर जमकर देखो ।
औरों की आँखों के आंसू हो सकता है पानी हों ,
स्वाद लबों पर आ जायेगा अपना लहू बहाकर देखो ।
खुली किताबें बहुत पढ़ चुके बंद किताबें भी तो खोलो ,
लफ्ज -लफ्ज में अर्थ नया है वाक्य -वाक्य अजमाकर देखो ।
मंदिर ,मस्जिद ,गुरूद्वारे ,गिरजाघर तो मिटटी भर हैं ,
रब तो पास तुम्हारे ही है अपने भीतर जाकर देखो ।
गीता और कुरआन ,बाइबिल ,गुरुग्रंथ रब की वाणी है
मजहब कहाँ सिखाते नफरत सच्ची प्रीत जगाकर देखो .
दिल के रिश्तों को क्या कहिये कच्चे धागे कांच का दर्पण ,
कभी दोबारा से न जुड़ते इनको मत चटका कर देखो ।
माना मैंने बहुत कठिन है जीवन की गुत्थी सुलझाना ,
पर चुटकी में हल होती है थोडा सा मुस्काकर देखो ।
फूलों की खुशबू से बढ़ कर प्यार की खुशबू होती है ,
सारा जीवन महक उझेगा थोड़ी सी महका कर देखो .

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