बुधवार, 14 जुलाई 2010

मेरे मन की मैं जानूं पर तेरे मन की तू .

मेरे मन की मैं जानूं पर तेरे मन की तू ।
मैं तो तुझको छूना चहुँ तू भी मुझको छू ।
तुझको छूकर महक गया है तन मन वैसा ही ,
संदल छूकर हाथ किसी के बस जाए खुशबू ।
मुझ पर तेरा जाने कैसा नशा छ गया है ,
मुझे नजर आती है अब तो तू ही तू हर शू।
जब से तुझको देखा दिल में बेचैनी सी है ,
अपने जज्बातों को रखना मुश्किल है काबू ।
तुम चाहो तो मुझे समझ लो पागल दीवाना ,
लेकिन क्या जानो तुमने क्या कर डाला है जादू ।
वैसे तो मेरी बातों का मतलब है सीधा ,
लेकिन तुम्हें नजर आयेंगे कितने ही पहलू .

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